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मालकियत

आप कभी मालिक नहीं बन सकते…..जीवन की हकीकत 

अतुल विनोद: 

हम हर पसंदीदा चीज के स्वामी  हो जाना चाहते हैं| हमारी ओनरशिप की आदत ही हमारी सबसे बड़ी समस्या भी है|  दरअसल हमने हमारे इतिहास में जागीरदारों, जमीदारों, राजाओं, महाराजाओं और मालिकों को हमेशा शक्तिशाली  और  ग्लोरियस देखा है|  इसलिए हमारे मन में भी किसी चीज को पा लेने के बाद उसका मालिक बन जाने की आदत गहरी जड़ों में समाई हुई है| 

व्यक्ति,वस्तु, स्थान, पद, प्रतिष्ठा जो भी हमें  अच्छा लगता है हम फौरन उस पर आसीन हो जाना चाहते हैं|  हम चाहते हैं कि वह सदा सदा के लिए हमारा हो जाए हम उसके मालिक बन जाए|  लेकिन जब हम अपने जीवन के ही मालिक नहीं बन सकते तो फिर हम किसी व्यक्ति या वस्तु के मालिक कैसे बन सकते हैं?  

मालिक बनने की हमारी तमन्ना ही हमारी दुश्मन बन जाती है|  दुनिया में मौजूद वास्तु से लेकर जीव जंतु  तक कोई भी किसी दूसरे की अधीनता स्वीकार नहीं करता  हरेक का अपना एक स्वतंत्र अस्तित्व है और वो अपने स्वतंत्र अस्तित्व के साथ ही जीना व आगे बढ़ना चाहता है| 

अधिकारवाद का सबसे बड़ा शिकार हमारे रिश्ते होते हैं|  पति पत्नी पर अधिकार जताता है, पत्नी पति पर अधिकार जमाती है|  सात फेरों का बंधन पूरी जिंदगी किसी के ऊपर सवार होने का अधिकार दे देता है|  मालकियत की यही आदत रिश्तों पर भारी पड़ जाती है| रिश्ते स्वाभाविक और सरल होने की बजाय भारी हो जाते हैं| 

न सिर्फ पति पत्नी एक दूसरे पर अधिकार जताना चाहते हैं, प्रेमी प्रेमिका भी कुछ ही समय में एक दूसरे  पर अधिकार जताने लगते हैं|  एक व्यक्ति यदि लगातार आपसे अच्छे ढंग से, प्रेम से बात करे, आपका सहयोग, सम्मान करें तो आप उसपर अपना अधिकार समझने लगते हैं आप की उम्मीदें बढ़ जाती हैं| कुछ दिन बाद वो ऐसा ना करें तो आपको बुरा लगता है और आप फिर उससे शिकायतें करते हैं| उसे दोष देते हैं| अरे भाई उसकी मर्जी अब वो ऐसा नहीं करना चाहता| जितना उसने आपको दिया उतना भी तो मुफ्त का था… किसी ने आपको प्यार किया अचानक वो आपसे दूरी बना ले तो आपका दिल टूट जाता है| आप गजल गाने लगते हैं भूलना था तो फिर इकरार किया ही क्यूं था..बेवफा तूने मुझे प्यार किया ही क्यूं था| 

पति पत्नी और प्रेमी प्रेमिका तो एक दूसरे से निपट लेंगे…... लेकिन अधिकारवाद का शिकार बच्चे सहज ही बन जाते हैं|  बच्चे शक्तिविहीन होते हैं| आपकी बात का विरोध नहीं कर पाते| आपके ऊपर आश्रित होते हैं| इसलिए आप उनके ऊपर चढ़ जाते हैं| आप चाहते हैं कि आपके बच्चे ठीक वैसा ही करें जैसा आप चाहते हैं| आपको अपने बच्चों की खिलाफत जरा भी पसंद नहीं| क्योंकि आप उनको भोजन देते, कपड़े देते हैं|  

बच्चे पैदा करके उनको पालना उनके ऊपर एहसान करना नहीं है यह प्रकृति की व्यवस्था का अंग है| एक छोटा बच्चा भले ही वह आप से कमजोर हो लेकिन वह भी आपकी मालकियत बर्दाश्त नहीं करना चाहता| आपके घर वह पैदा हुआ है तो यह अवसर है| ईश्वर ने आपको उसे पालने का, उसे अच्छी तरह रखने का, उसके साथ हंसने खेलने का, उसके बालपन का आनंद लेने का एक मौका दिया है| यह एहसान है आप पर| आपको एक प्यारा बच्चा मिला है वरना दुनिया में ऐसे भी लोग हैं जिन्हें तमाम मन्नतों के बाद भी बच्चे नहीं मिलते| 

बच्चा आपकी हुकूमत में मजबूरी में रहता है, लेकिन अंदर ही अंदर आपकी हुक्मरानी  उसे घायल करती रहती है| आगे चलकर यही स्वामित्व उसे आप के खिलाफ खड़ा कर देता है| बच्चों का पालन पोषण करें उसका दमन ना करें|  वह पढ़ने में कमजोर है उसका व्यक्तित्व आपकी अपेक्षाओं से मेल नहीं खाता तो भी आपको उस पर अत्याचार करने का हक नहीं है क्योंकि वह अपनी किस्मत अपना भविष्य अपना मुकाम लेकर पैदा हुआ है आपका कर्तव्य सिर्फ उसका लालन-पालन करना है आप जो बेहतर कर सकते हैं वह करिए लेकिन दमन से नहीं अंदर ही अंदर सेवक बनकर|

बच्चे पालना अपने आप में पर्याप्त हैं लेकिन बच्चे के ऊपर लद जाना उनके साथ अन्याय और अत्याचार है| 

हर व्यक्ति अपने आप में अनोखा है|  वह जैसा भी है मां बाप से मिले जींस, उसकी कंडीशनिंग, संस्कार, प्रारब्ध  और देशकाल परिस्थितियों के अनुसार है|  आप उसकी जगह होते तो आप भी वैसे ही होते | वह जैसा भी है इसमें उसका कोई दोष नहीं है| 

कोई भी व्यक्ति आपके अनुसार ना तो बन सकता है न हीं आपके अनुसार चल सकता है|  इसलिए ताकत और रिश्तो के दम पर किसी को अपने अनुसार हांकना बंद कीजिए|

आप अपने जीवन के ही मालिक नहीं है|  आपकी आत्मा को जन्म के बाद जो जो भी मिला है एक न एक दिन वो छिन जाएगा|  यदि आप अपने शरीर के मालिक होते तो आप उसे मरने के बाद अपनी आत्मा के साथ ले जा सकते| लेकिन आप नहीं ले जा पाते| धन संपदा रिश्ते नाते कुछ भी आप अपने साथ नहीं ले जा पाते| इसका मतलब यह है कि आप किसी के भी मालिक नहीं है| पल भर में ही आपकी धड़कने बंद हो सकती हैं, और जो भी कुछ आपने कमाया है जो भी कुछ बनाया है, जिस तरह के बीच संबंध स्थापित किए हैं, समाज में प्रतिष्ठा बनाई है, क्षण मात्र में आपसे छिन जाती है| 

ऐसे में जीने का बेहतर तरीका यही है कि हम भौतिक रूप से किसी भी चीज का मालिक देखते हुए भी खुद को उसका मालिक ना माने|  इतना सब कुछ जानते हुए भी यदि हमारे अंदर किसी वस्तु या व्यक्ति का मालिक होने का भाव है तो इससे बड़ी मूर्खता क्या हो सकती है|  

क्या वाकई आप इस धरती पर कहीं किसी चीज के मालिक हैं?  आपके स्वयं के अलावा इस दुनिया में मौजूद कोई और ऐसा अस्तित्व नहीं जिसके मालिक हों | और आपका वह स्वयं क्या है जिसके आप मालिक है क्या वह शरीर है? नहीं, क्या वह मन है? नहीं| क्या वह आपका मस्तिष्क है? नहीं| क्या वह आपका ज्ञान है? नहीं तो क्या है वो ?  उस क्या का जवाब शब्दों से नहीं मिल सकता| उस क्या का जवाब आपको खोज से मिलेगा,  अनुभव से मिलेगा, आत्म जागृति से मिलेगा|