अतुल विनोद:-
कोरोना ने जीवन की बुनियाद ही बदल दी| मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है लेकिन अब उसे निकटता के स्थान पर दूरी बनाकर जीने को मजबूर होना पड़ा है| मुश्किल ये है कि कुछ दिन तो हमने अकेलेपन के साथ गुजार दिए, लेकिन डिस्टेंसिंग के साथ हमें लंबे समय तक जीना सीखना होगा| 70/75 दिन नहीं बल्कि साल 2 साल भी हमें इसी तरह जीना हुआ तो क्या होगा?
लॉक डाउन खुलने के बाद अपने प्रिय जनों के साथ पहले की तरह से घुलना मिलना अब आसान नहीं है| जरा सी नजदीकी भी अब मुसीबत का सबब बन सकती है| अब हम चेहरे ढक कर जीने को मजबूर हैं| भीड़ भरे बाजारों, सिनेमा घरों, चौपाटियों और रेस्त्रां की सैर खतरे से खाली नहीं है| किसी दोस्त से गल बहियां करना, एक साथ एक गाड़ी में बैठ कर लंबी सैर पर निकलना, जहां चाहे वहां खा लेना, जहां चाहे वहां पी लेना| रेल में, रैलियों में, भीड़ के बीच आसानी से बेखौफ खड़े हो जाना| यहां तक कि एक दूसरे का झूठा भी खा लेना, ये सब अब शायद यादें ही रह जाए|
हम उस देश के निवासी है जिसमें जिसने जहां चाहा वहां थूक दिया| लेकिन अब थूकना भी क्राइम हो चुका है| हम सब भीड़ के आदी हैं| हम सब भेड़ की तरह एक साथ चलना चाहते हैं| भीड़ के आदी हो चुके लोगों के लिए फिजिकल डिस्टेंसिंग किसी सजा से कम नहीं.
अकेलापन हमेशा बोरियत भरा होता है लेकिन भारतीय दर्शन एकांत का हिमायती है| अटल बिहारी वाजपेई ने अपनी एक कविता में कहा था कि पृथ्वी पर मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जो भीड़ में अकेला और अकेले में भीड़ से घिरा हुआ अनुभव करता है| भारतीय अध्यात्म इससे भी ऊपर जाने की वकालत करता है| एकांत कोई सजा नहीं है| एकांत उपलब्धि है| चाहे हम भीड़ में हो या अकेले| मार्केट में हो या किसी निर्जन वन में| हमारे अंदर का एकांत हमेशा मौजूद रहता है| यह एकांत प्राप्त होता है| यह साधना, उपासना और संयम से हासिल होता है| एकांत मजबूरी नहीं बल्कि अनुभूति और उपलब्धि होता है|
एकांत में हम आनंद से सराबोर होते हैं शांत और सहज होते हैं|
अकेलेपन में हमें नकारात्मक भाव घेर लेते हैं| डर भय और चिंता सताने लगती है| एकांत नकारात्मकताओं से मुक्त होता है| वहां सिर्फ शांति और सहजता होती है| अच्छे विचार होते हैं| सकारात्मक भाव होते हैं|
ना तो झल्लाने की जरूरत है नहीं बरसने की| अकेलेपन को एकांत में बदल दीजिए|
एकांत प्राप्त करने के लिए सबसे पहले डिजायर्स को कम करना पड़ेगा| जो है उसी को परमात्मा की कृपा मानकर जीने की आदत डालना पड़ेगी| शिकायतों की आदत बदलना पड़ेगी| जो मिला है उस पर कृतज्ञता व्यक्त करनी पड़ेगी|
उम्मीद न टूटने दें, मजबूरी को मजबूती बना लें| लोग साथ छोड़ दें लेकिन एकांत कभी साथ नहीं छोड़ता| एकांत को अपना दोस्त बना ले एकांत को समझें | एकांत ही सच्चा साथी है, अकेलापन नहीं| अकेलेपन को एकांत में रूपांतरित करने की कला में माहिर बन जाएँ|
हिम्मत रखें| अपने दिमाग के दास न बने बल्कि उसे अकेलेपन से एकांत में परिवर्तित करने के लिए प्रशिक्षित करें|
इस निराशा की घड़ी में सिर्फ आध्यात्मिक एकांत की आशा ही आपका संबल बनेगी|


