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जानवरों से कुछ सीखें 🦁


शेर जंगल का राजा होता है| जंगल में शेर से ज्यादा शक्तिशाली और कोई नहीं।

जंगल ही नही इंसानी बस्ती में भी शेर पहुंच जाएं तो वह इंसानों की दुनिया को भी तबाह कर सकते हैं। इतना शक्तिशाली होने के बाद भी शेर जंगल में हमेशा अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते हुए दिखाई नही देता।

क्या आपने देखा कि शेर बेफिजूल में जंगल के जानवरों को मार रहा है? क्या आपने देखा इसे जमीन पर रेंगने, घूमने वाले छोटे छोटे जीव जंतुओं का शिकार कर रहा है?  इसलिए कि उसे उसमें आनंद आता है। नहीं, शेर शिकार तभी करता है जब उसे भूख लगती है। 24 घंटे में एक बार। फिर जरूरत पड़ने पर ही किसी जानवर का शिकार करता है। इसके बाद वह किसी को नहीं छेड़ता।

जंगल मनुष्य की सभ्यता से ज्यादा बेहतर व्यवस्था का प्रदर्शन करते हैं।

जंगल में जानवरों के बीच यूं ही संघर्ष नहीं होता न जाने कितनी प्रजातियां जंगल में रहती हैं । लेकिन सब शांति आनंद और अपनी मस्ती में प्रकृति के साथ।

यदि जंगल में संघर्ष होते रहते जंगल कब के नष्ट हो जाते। ईको सिस्टम ध्वस्त हो जाता।

जानवर मनुष्य की तरह स्वार्थी नहीं। जानवर मनुष्य की तरह अपनी सत्ता स्थापित करने के लिए सीमाओं को तहस नहस करता। न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाए जानवर उसी में खुश होता है।

जानवर को ना तो महल खड़े करने हैं ना ही सुख सुविधाओं का अंबार खड़ा करना है।

मनुष्य प्रजाति, जिसने अपनी अलग सत्ता और सभ्यता विकसित कर रखी है। वह अपनी सत्ता और संप्रभुता स्थापित करने के लिए क्या नहीं करता? इंसान इंसान पर बेवजह हमले करता है, इंसान इंसान से लड़ता है। इंसान इंसान की सभ्यता को चौपट करने की प्लानिंग करता है। इंसान न्यूनतम जरूरतों पर नहीं जीता। इंसान को लगातार अपनी जरूरतें बढ़ाते रहना है। अपना देश बसाकर भी इंसान खुश नहीं होता। उसे दूसरों देश की सीमा का उल्लंघन करना है।

 उसे दूसरे के राज्य पर अधिकार जताना है। उस पर संप्रभुता हासिल करनी है। इतना ही नहीं इंसान इतना गया बीता है कि वह दूसरे देशों की व्यवस्था को चौपट करने के लिए खुलकर नहीं लड़ सकता तो महामारी अब फैलाने का षड्यंत्र रचता है।

यदि इंसान जानवरों से कुछ सीख सकें तो शायद पृथ्वी सुखी हो सके और इंसानी सभ्यता बच सके।

वरना वह दिन भी दूर नहीं जब लोग एक दूसरे की सभ्यताओं को खुद ही नष्ट कर डालेंगे।

एक देश दूसरे देश को निगल जाएगा और आखिर में इंसान के नाम पर कुछ भी नहीं बचेगा।

कुछ तो सीखें जानवरों से।
अतुल विनोद*