भाव साधना के 9 राज्य
हम सब के जीवन जीने के कई तल है लेकिन इन सारे तलो में सबसे महत्वपूर्ण तल है भाव तल , भावनाओं का तल , फीलिंग्स और इमोशन्स का तल , भावनाओं पर पूरा जीवन टिका हुआ है । आमतौर पर हम सब भौतिक जगत में भौतिक चीजों के प्रति अलग अलग तरह की भावनाओं से भरे हुए होते हैं ।
जब पसन्द की वस्तुएं हमारे पास होती हैं तो भावनाएं सकारात्मक होती हैं और वह चीजें हमसे दूर जाने लगती हैं तो भावनाएं नकारात्मक होने लगती हैं ।
हम भौतिक चीजों को ज्यादा महत्व देने लगते हैं और उन वस्तुओं के प्रति बेहद लगाव रखने लगते हैं उसे राग कहते हैं , जहां राग होगा वहां द्वेष ईर्ष्या और घृणा जरूर होगी । आमतौर पर मनुष्य राग , द्वेष , ईर्ष्या घृणा वैमनस्यता के बीच झूलता रहता है । किन्ही की चीजों के प्रति उसका राग होता है और कहीं कहीं वह द्वेष की भावना से घिरा रहता है । किसी से बेहद लगाव और किसी से द्वेष ।
साधना में जब व्यक्ति आगे बढ़ता है तो वो भाव जगत में प्रवेश कर जाता है , यहां उसके लिए सब कुछ परमात्मा हो जाते हैं । उसकी सारी प्रवत्तियां भगवान को प्राप्त करने के लिए एक हो जाती है और उस परमात्मा को जानना चाहती हैं उसे स्पर्श करना चाहती है उसमें रमना चाहती हैं ।
भौतिक चीजों से भाव हटने लगते हैं , परमतत्व, परमात्मा के प्रति अनन्य प्रेम जागृत होने लगता है । व्यक्ति उसके साथ जीने लगता है उसके अंदर खुद को और अपने अंदर उसको देखने लगता है । तब उसके जीवन में 9 तरह के अनुभव 9 तरह के भाव पैदा होते हैं ।
साधना में सबसे पहले कर्म का राज्य आता है फिर साधन राज्य आता है फिर ज्ञान राज्य आता है लेकिन सबसे ऊपर का राज्य जो आता है उसे सिद्ध भाव राज्य कहते हैं ।
इसी भाव राज्य के 9 अनुभव होते हैं ।
1: पहला अनुभव होता है शांति का शांति का मतलब है सहनशीलता , क्षमा जब शांति का अनुभव आता है व्यक्ति सुख दुख से ऊपर उठ जाता है मान अपमान लाभ हानि जीत हार बुराई बढ़ाई जीवन मृत्यु से लड़ने की ताकत उसमे आ जाती है ।
2: अव्यर्थ कालत्व : दूसरा अनुभव शांति के बाद होता है वह व्यर्थता का अनुभव , फिर भी फिजूल के कामों में बे फिजूल की बातों में मन नहीं लगता । फिर समय पास करने की जरूरत नहीं रहती फिर बोरियत महसूस नहीं होती किसी दूसरे की बुराई भलाई से कोई मतलब नहीं रहता व्यक्ति अपने आप में मस्त हो जाता है उसे प्रकृति परमात्मा सत्य संस्कार की बातें ही अच्छी लगती है क्योंकि यह सब परमात्मा का अव्यक्त रूप है । परमात्मा और प्रकृति जहां-जहां जिन जिन बातों में जिन जिन रूपों में दिखाई देते हैं वह सब अच्छे लगने लगते हैं ।
3 : तीसरा अनुभव है विरक्ति सामान्य मनुष्य छोटी-छोटी बातों में खुशी ढूंढता है छोटे छोटे खिलौनों से लगा होता है । लेकिन भाव राज्य में रहने वाला व्यक्ति ऐसी बातों से दूर होने लगता है जो उसके और परमात्मा के बीच में आते हो
4: मान शून्यता : आम व्यक्ति छोटी-छोटी बातों से बुरा मान जाता है जरा सी बात से उसका अपमान हो जाता है जरा सी बात उसकी शांति भंग करती है जरा सी बात से अपने आप को हीन समझने लगता है लेकिन भाव राज्य में बैठा हुआ व्यक्ति मान अपमान से परे हो जाता है खुद को राह में पड़े हुए इनके से भी छोटा मांगता है वृक्ष के समान सहनशील हो जाता है बुराई करने वाली की भी भलाई करता अच्छा करना भला करना उसका स्वभाव बन जाता है अपने सम्मान को शून्यता पर ले आता है अपने अहंकार को सीमित कर देता है । खुदको रास्ते मे पड़े हुए तिनके से भी छोटा समझने लगता है ।
5: आशाबन्ध : इस राज्य में व्यक्ति आशावादी हो जाता है उसे यकीन होता है एक ना एक दिन उसे परमात्मा का आशीर्वाद , परमपिता की कृपा जरूर हासिल होगी उसका प्रेम मिलेगा ही उसकी कृपा प्राप्त होगी ही ।
6 : समुत्कण्ठा : यहां व्यक्ति सिर्फ आशा के भरोसे ही नहीं पड़ा रहता बल्कि उसके मन में एक आग होती है एक तरफ होती है बेचैनी होती है उसे प्राप्त करने की ।
7: नाम रट : ऐसा व्यक्ति हमेशा हर हाल में उस परमात्मा से जुड़ा रहता है उसके तार और परमात्मा के तार आपस में कनेक्ट रहते हैं दिन रात उस परमपिता के चिंतन में मग्न रहता है । उस परमात्मा की याद दिलाने वाली परमात्मा का एहसास दिलाने वाली हर वस्तु उसे सुख देने लगती है । परमात्मा की बनाई हुई सृष्टि से भी उसे प्यार होता है सृष्टि के अंदर मौजूद सब कुछ परमात्मा का जान कर वह खुश होता रहता है ।
8 :आसक्ति : जैसे जुआरी जुए में , शराबी शराब में आसक्त हो जाता है वैसे ही सिद्ध भाव राज्य में पहुंचा हुआ व्यक्ति उस सृष्टिकर्ता से लग जाता है उसमें आसक्त हो जाता है ।
9 : ऐसा व्यक्ति परमात्मा की बनाई हुई हर वस्तु से प्रेम करने लगता है । ऐसा व्यक्ति उन स्थानों पर जाने लगता है और वहां जाकर आनंद प्राप्त करने लगता है जहां पर परमात्मा के होने के लक्षण उसे दिखाई देते हैं ।
अतुल विनोद *
हम सब के जीवन जीने के कई तल है लेकिन इन सारे तलो में सबसे महत्वपूर्ण तल है भाव तल , भावनाओं का तल , फीलिंग्स और इमोशन्स का तल , भावनाओं पर पूरा जीवन टिका हुआ है । आमतौर पर हम सब भौतिक जगत में भौतिक चीजों के प्रति अलग अलग तरह की भावनाओं से भरे हुए होते हैं ।
जब पसन्द की वस्तुएं हमारे पास होती हैं तो भावनाएं सकारात्मक होती हैं और वह चीजें हमसे दूर जाने लगती हैं तो भावनाएं नकारात्मक होने लगती हैं ।
हम भौतिक चीजों को ज्यादा महत्व देने लगते हैं और उन वस्तुओं के प्रति बेहद लगाव रखने लगते हैं उसे राग कहते हैं , जहां राग होगा वहां द्वेष ईर्ष्या और घृणा जरूर होगी । आमतौर पर मनुष्य राग , द्वेष , ईर्ष्या घृणा वैमनस्यता के बीच झूलता रहता है । किन्ही की चीजों के प्रति उसका राग होता है और कहीं कहीं वह द्वेष की भावना से घिरा रहता है । किसी से बेहद लगाव और किसी से द्वेष ।
साधना में जब व्यक्ति आगे बढ़ता है तो वो भाव जगत में प्रवेश कर जाता है , यहां उसके लिए सब कुछ परमात्मा हो जाते हैं । उसकी सारी प्रवत्तियां भगवान को प्राप्त करने के लिए एक हो जाती है और उस परमात्मा को जानना चाहती हैं उसे स्पर्श करना चाहती है उसमें रमना चाहती हैं ।
भौतिक चीजों से भाव हटने लगते हैं , परमतत्व, परमात्मा के प्रति अनन्य प्रेम जागृत होने लगता है । व्यक्ति उसके साथ जीने लगता है उसके अंदर खुद को और अपने अंदर उसको देखने लगता है । तब उसके जीवन में 9 तरह के अनुभव 9 तरह के भाव पैदा होते हैं ।
साधना में सबसे पहले कर्म का राज्य आता है फिर साधन राज्य आता है फिर ज्ञान राज्य आता है लेकिन सबसे ऊपर का राज्य जो आता है उसे सिद्ध भाव राज्य कहते हैं ।
इसी भाव राज्य के 9 अनुभव होते हैं ।
1: पहला अनुभव होता है शांति का शांति का मतलब है सहनशीलता , क्षमा जब शांति का अनुभव आता है व्यक्ति सुख दुख से ऊपर उठ जाता है मान अपमान लाभ हानि जीत हार बुराई बढ़ाई जीवन मृत्यु से लड़ने की ताकत उसमे आ जाती है ।
2: अव्यर्थ कालत्व : दूसरा अनुभव शांति के बाद होता है वह व्यर्थता का अनुभव , फिर भी फिजूल के कामों में बे फिजूल की बातों में मन नहीं लगता । फिर समय पास करने की जरूरत नहीं रहती फिर बोरियत महसूस नहीं होती किसी दूसरे की बुराई भलाई से कोई मतलब नहीं रहता व्यक्ति अपने आप में मस्त हो जाता है उसे प्रकृति परमात्मा सत्य संस्कार की बातें ही अच्छी लगती है क्योंकि यह सब परमात्मा का अव्यक्त रूप है । परमात्मा और प्रकृति जहां-जहां जिन जिन बातों में जिन जिन रूपों में दिखाई देते हैं वह सब अच्छे लगने लगते हैं ।
3 : तीसरा अनुभव है विरक्ति सामान्य मनुष्य छोटी-छोटी बातों में खुशी ढूंढता है छोटे छोटे खिलौनों से लगा होता है । लेकिन भाव राज्य में रहने वाला व्यक्ति ऐसी बातों से दूर होने लगता है जो उसके और परमात्मा के बीच में आते हो
4: मान शून्यता : आम व्यक्ति छोटी-छोटी बातों से बुरा मान जाता है जरा सी बात से उसका अपमान हो जाता है जरा सी बात उसकी शांति भंग करती है जरा सी बात से अपने आप को हीन समझने लगता है लेकिन भाव राज्य में बैठा हुआ व्यक्ति मान अपमान से परे हो जाता है खुद को राह में पड़े हुए इनके से भी छोटा मांगता है वृक्ष के समान सहनशील हो जाता है बुराई करने वाली की भी भलाई करता अच्छा करना भला करना उसका स्वभाव बन जाता है अपने सम्मान को शून्यता पर ले आता है अपने अहंकार को सीमित कर देता है । खुदको रास्ते मे पड़े हुए तिनके से भी छोटा समझने लगता है ।
5: आशाबन्ध : इस राज्य में व्यक्ति आशावादी हो जाता है उसे यकीन होता है एक ना एक दिन उसे परमात्मा का आशीर्वाद , परमपिता की कृपा जरूर हासिल होगी उसका प्रेम मिलेगा ही उसकी कृपा प्राप्त होगी ही ।
6 : समुत्कण्ठा : यहां व्यक्ति सिर्फ आशा के भरोसे ही नहीं पड़ा रहता बल्कि उसके मन में एक आग होती है एक तरफ होती है बेचैनी होती है उसे प्राप्त करने की ।
7: नाम रट : ऐसा व्यक्ति हमेशा हर हाल में उस परमात्मा से जुड़ा रहता है उसके तार और परमात्मा के तार आपस में कनेक्ट रहते हैं दिन रात उस परमपिता के चिंतन में मग्न रहता है । उस परमात्मा की याद दिलाने वाली परमात्मा का एहसास दिलाने वाली हर वस्तु उसे सुख देने लगती है । परमात्मा की बनाई हुई सृष्टि से भी उसे प्यार होता है सृष्टि के अंदर मौजूद सब कुछ परमात्मा का जान कर वह खुश होता रहता है ।
8 :आसक्ति : जैसे जुआरी जुए में , शराबी शराब में आसक्त हो जाता है वैसे ही सिद्ध भाव राज्य में पहुंचा हुआ व्यक्ति उस सृष्टिकर्ता से लग जाता है उसमें आसक्त हो जाता है ।
9 : ऐसा व्यक्ति परमात्मा की बनाई हुई हर वस्तु से प्रेम करने लगता है । ऐसा व्यक्ति उन स्थानों पर जाने लगता है और वहां जाकर आनंद प्राप्त करने लगता है जहां पर परमात्मा के होने के लक्षण उसे दिखाई देते हैं ।
अतुल विनोद *

