जीवन में यदि आगे बढ़ना है तो आर्टिफिशियल व्यक्तित्व से काम नहीं चलेगा|
अतुल विनोद
आजकल के मोटिवेशन स्पीकर्स आपको पर्सनैलिटी डेवलपमेंट के बहुत सारे टिप्स देंगे| सेमिनार में वर्कशॉप में आपको इंग्लिश में बात करना सिखाया जाएगा आपको शिष्टाचार के गुर सिखाए जाएंगे लेकिन यह सब सीमित होता है|
लिमिटेड नॉलेज और लिमिटेड नॉलेज के साथ जो पर्सनैलिटी बनती है वह अधूरी होती है| आप यूट्यूब वीडियो देखकर, आर्टिकल्स पढ़कर, मोटिवेशनल सेमिनार के जरिए अपनी पर्सनैलिटी में कुछ नई चीजें ऐड कर लेते हैं| आप अपने हाव-भाव बदल लेते हैं आप बातचीत का नया तरीका सीख लेते हैं| लेकिन यह सब
नकली होता है| यह सब आर्टिफिशियल होता है| इससे मानवीय व्यक्तित्व का पूरा विकास नहीं हो सकता|
हर जगह एक सा व्यक्तित्व व आपकी एक सी क्षमताएं काम नहीं देती , ना ही उसी तरह का रिजल्ट देती हैं| हर फील्ड की कार्य शैली तथा कार्य स्थल का वातावरण एक दूसरे से अलग होता है। पर्सनैलिटी डेवलपमेंट के नए टूल्स एंड टेक्निक्स आपको सीमित फायदा तो दे सकते हैं लेकिन वर्तमान की चुनौतियों से निपटना जीवन के हर क्षेत्र में सहज रूप से अपनी भूमिका को
निभाना इसके लिए जरूरी है एक गहरे व्यक्तित्व की|
आप कितना ही अपनी पर्सनैलिटी को किसी सांचे में ढालने की कोशिश करें| लेकिन आपके अंदर के भाव कभी ना कभी सामने आ ही जाते हैं| आपके अंदर के काम क्रोध लोभ मोह अहंकार समय-समय पर रिफ्लेक्ट हो ही जाते हैं| आप इन्हें दबाकर सिर्फ और सिर्फ एक खंडित व्यक्तित्व के स्वामी बन सकते हैं|
जब तक आप अपनी भावनाओं को अच्छे ढंग से नहीं समझेंगे अपने व्यक्तित्व के अलग-अलग पहलुओं को अंदर से नहीं पहचानेंगे| जो अनावश्यक है उसको जड़ से नहीं हटाएंगे और जो आवश्यक है उसकी जड़ों को नहीं सीचेंगे तब तक ट्रांसफॉरमेशन नहीं हो सकेगा
काम क्रोध मोह लोभ और अहंकार, ये जब भी आवेशित होते हैं तो हमारे शरीर में केमिकल चेंज होते हैं| हमारे अंदर के हॉरमोन चेंज हमारी बुद्धि को प्रभावित करते हैं| यदि इनका प्रभाव पॉजिटिव है तो यह हमारी लाइफ को सही दिशा में ले जाते हैं और यदि इनका प्रभाव नेगेटिव है यह हमारी लाइफ को बर्बाद भी कर सकते हैं|
काम ऊर्जा ही है जो सृष्टि के सृजन और प्रेम का कारक है| यह ऊर्जा सकारात्मक रूप से प्रवाहित हो तो प्रेम की उच्चतम अभिव्यक्ति बन जाती है|
लेकिन जब यह बेकाबू हो जाए तो हमें नीचा भी गिरा सकती है| इसी तरह क्रोध है जो बिना कारण के अनियंत्रित हारमोंस की वजह से पैदा हो और विकृत हो तो जीवन को नीचे ले जा सकता है|
लेकिन यदि यही क्रोध अव्यवस्था, अन्याय, अत्याचार के खिलाफ हो या अनुशासन मेहनत लगन परिश्रम का कारक(काज़) हो तो
नुकसान की जगह फायदा करता है|
लोभ मानव मात्र के कल्याण का हो| जब लोभ सिर्फ मैं के लिए होता है तो खतरनाक होता है| लेकिन जब लोभ हम सब के लिए होता है, मानव मात्र के लिए होता है, पूरी पृथ्वी के लिए होता है, संपूर्ण कायनात के लिए होता है तो यही लोभ परमात्मा की सृष्टि में सकारात्मक भूमिका निभाता है|
हर व्यक्ति का व्यक्तित्व किसी न किसी रूप में किसी खास तरह के भाव, आवेग और आवेश से प्रभावित रहता है| और यही आवेश कभी उसकी तरक्की का कारण बन जाता है और कभी पतन की वजह बन जाता है|
प्रत्येक व्यक्ति किसी ना किसी एक, अनेक आवेशों या विकारों के प्रभाव के अधीन होता है। जब काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह आवेश बनकर अच्छा काम कराते हैं तो जीवन सार्थक हो जाता है| यही जब अप्राकृतिक और असामाजिक कार्य कराते हैं तो जीवन नरक हो जाता है| व्यक्ति को अपने भावों को अपनी ताकत
बनानी चाहिए ना की कमजोरी|
आवेशों और विकारों में फर्क की लकीर बहुत छोटी होती है| जैसे किसी असाध्य काम को करना स्वाभिमान बन जाता है तो किसी असाध्य कार्य को पूरा करने का केवल दावा करना अहंकार बन जाता है। क्रोध के आवेश में रण भूमि में शत्रु की हत्या करना वीरता है| क्रोध या अभिमान वश स्वार्थ के लिये किसी की हत्या करना दण्डनीय अपराध होता है।
कुछ आवेश माता पिता से संस्कारों के रूप में जन्मजात होते हैं, तो कुछ संगति और वातावरण के कारण अपने आप पनप उठते हैं। मानव की जरूरतें भी उस के अर्जित आवेशों के मुताबिक ही बनती है|
काम क्रोध मद लोभ मोह ही है जिनके कारण कोई झगडालु, ईर्षालु, लालची, दबंग, डरपोक या रसिक बन जाता है तो कोई वीर, निडर, दयालु और दानवीर बन जाता है।
आवेश दुधारी तलवार की तरह हैं। आत्म सम्मान के आवेश से प्रेरित हो कर ही कुछ लोग वीरता और साहस के काम कर जाते है, जिस के कारण व्यक्ति, परिवार और समाज गर्वित होता है और इस के उलट कुछ अहंकार के कारण छोटी सी बात पर ही दूसरों की हत्या कर देते हैं और फाँसी पर लटक जाते हैं।
आवेग नियन्त्रण--
यदि भाव आवेगों पर नियन्त्रण ना किया जाये तो वह विकार बन कर सब से बड़े दुश्मन बन जाते हैं और जीव को विनाश की ओर धकेल देते हैं। अपने आवेशों को नियन्त्रित करना, और विपक्ष के नकारात्मक आवेशों को सकारात्मक बनाना ही किसी व्यक्ति की क्षमता और सफलता का असल प्रमाण होता है। इसी को
दक्षता और एक्सीलेंसी कहते हैं।
आवेशों को साधना के जरिए स्वेछिक अनुशासन से, यम नियमों से नियन्त्रित किया जा सकता है ताकि उनका सकारात्मक लाभ उठाया जा सके। काम को संतुलन, स्वच्छता, और सदाचार से| क्रोध को सत्य और अहिंसा से| लोभ को संतोष और अस्तेय की भावना से| मोह को वैराग्य, निष्पक्ष्ता और कर्तव्य परायणता से और अहंकार को अपरिग्रह, सरलता, ज्ञान शालीनता व सेवा सहयोग से कंट्रोल
में रखा जा सकता है। यम नियम का लगातार अभ्यास ही प्राणी को पशुता से मानवता की ओर ले जाता है। जब तक आलस्य और अज्ञान की परिवृतियों को यम नियम से नियन्त्रित नहीं किया जायेगा मानव का व्यक्तित्व संतुलित नहीं हो सकता।
श्रीमद् भागवद गीता में मानव के आत्म विकास के चार विकल्प योग साधनाओं के रूप में बताये गये हैं कर्मठ व्यक्ति कर्म योगको, ईश्वर के प्रति lश्रद्धालु भक्ति मार्ग को, तर्कवादी राज योग से अपने निर्णय तथा कर्म का चयन करेंगे और योगी संन्यासी और दार्शनिक साधक ज्ञान योग से ही कर्म करेंगे।
मध्य मार्ग इन सभी साधनाओं का कॉम्बीनेशन है।
हम पर्सनेलिटी डेवलपमेंट की आधुनिक तकनीकों से व्यक्तित्व की वास्तविक कमियों को आर्टिफिशियल ढंग से छुपा देते हैं लेकिन इससे व्यक्ति की योग्यताएं विकसित नहीं होती| बनावटी शिष्टाचार कॉस्टयूम और वर्क कल्चर सिर्फ और सिर्फ बाहरी आवरण हैं| यह आपके वास्तविक व्यक्तित्व को कुछ समय के लिए ढक सकते हैं लेकिन एक न एक दिन आप की पोल खुल जाएगी|
हमारे धर्म के मूल में समरसता सद्भाव सहयोग है ना की कंपटीशन| एक दूसरे के साथ शह और मात का खेल दोनों का ही नुकसान करता है| परस्पर सहयोग से ही दुनिया चलती है लेकिन आजकल परस्पर सहयोग नहीं सिखाया जाता| भारतीय दर्शन एकाकीपन नहीं एकीकरण का हिमायती है|
व्यक्ति की पब्लिक और पर्सनल लाइफ में भी बहुत अंतर होता है| यदि कोई व्यक्ति जो समाज में ईमानदार, सत्यवादी और चरित्रवान होने का दावा करता है वो अपने निजी जीवन में बेइमान, झूठा या व्यभिचारी भी रह सकता है। यह व्यक्तित्व का विकास नहीं विनाश है क्योंकि अन्दर बाहर व्यक्ति को एक समान ही होना चाहिये।
ज्ञान को केवल प्राप्त कर लेना ही मानव जीवन का लक्ष्य नहीं है। शिक्षा और शिष्टता के सदाचारी गुणों को दैनिक क्रियाओं में कंटीन्यूअस अडॉप्ट करना(अपनाना) भी जरूरी है। केवल ये जान लेना कि इमानदारी और सत्य का पालन करना चाहिये पर्याप्त नहीं
जब तक इमानदारी और सत्य को मन, वचन तथा कर्म से जीवन के हर प्रत्यक्ष और अपर्त्यक्ष रूप में अपनाया और दर्शाया ना जाये।
भारतीय जीवन शैली व्यक्ति को परिवार, समाज और पर्यावरण के कल्याण और पूर्ण विकास की ओर विकसित करती है।
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