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कुछ पाने की दौड़--🏃

पाने की दौड़ बेकार है| कई बार ठहरने से भी सब मिल जाया करता है| 

हमारा जीवन एक दौड़ बन गया है,  हम सोचते हैं कि कुछ भी पाना हो हमें उसके लिए दौड़ना ही पड़ेगा|  यदि हम कुछ पा लेते हैं तो हमें ऐसा लगता है कि यह हमारी दौड़ का ही परिणाम है हम दौड़े, हमने पसीना बहाया, इसलिए हमें  हासिल हुआ|  हमारी सफलता हमें अपनी बुद्धिमानी और मेहनत का नतीजा लगती है|  लेकिन इस दुनिया में कितने लोग हैं जो लगातार दौड़ रहे हैं, मेहनत कर रहे हैं?

हो सकता है कि वह आपसे ज्यादा बुद्धिमान हैं, उनके पास आप से ज्यादा दिमाग है| इसके बावजूद भी उन्हें मिल नहीं रहा|  आपको कुछ मिला है उसका घमंड मत कीजिए, क्योंकि आपको मिलने के पीछे आपकी योग्यता और मेहनत ही नहीं थी बल्कि एक तीसरा फैक्टर भी था| 

हम भ्रम में होते हैं कि हमारे करने से कुछ मिलता है, करने से मिलता होता तो 90 फ़ीसदी लोग करते ही रहते हैंl लेकिन मिलता नहीं है| यह जो तीसरा फैक्टर है यह बहुत महत्वपूर्ण है|  इसे आप किस्मत कह लीजिए, ईश्वर की कृपा कह लीजिए, भाग्य कह लीजिए या  संयोग| इसकी मौजूदगी है तभी तो कोई व्यक्ति बहुत अच्छे वातावरण में, अच्छे घर में पैदा होता है और कोई व्यक्ति दूषित वातावरण में, अति दरिद्रता में पैदा होता है| 

हर चीज करने से नहीं मिलती| “जिद करो दुनिया बदलो” भौतिक जगत का यह सूत्र वाक्य हो सकता है, आध्यात्मिक जगत में इसका कोई अस्तित्व नहीं है| अध्यात्म का विज्ञान कहता है कि आपको जो कुछ भी मिलता है उसके पीछे तीसरी ताकत की बहुत बड़ी भूमिका होती है| इसलिए कभी भी अपने कर्म पर अंधविश्वास मत करो| ऐसा मत सोचो कि हम जो कर रहे हैं उसका उसी तरह परिणाम आएगा जैसा हमने सोच रखा है| यह दुनिया अनिश्चित है यहां कब किसको क्या कैसे मिलेगा? इस बात का कोई दावा नहीं कर सकता| 

अध्यात्म कहता है कि किसी चीज के पीछे बहुत ज्यादा मत भागो| अक्सर हम जिस लक्ष्य के पीछे जिस चीज,लग्जरी या व्यक्ति के पीछे बहुत तेजी से भागते हैं वह हमसे दूर होता चला जाता है| ज्यादातर मामलों में हमें वह हासिल नहीं होता| हमें वह हासिल हो जाता है जिसके बारे में हमने कभी सोचा भी नहीं| अपनी जिंदगी को पीछे पलट कर देखिए, आपकी जिंदगी में 90 फ़ीसदी वह हुआ है जो आपने नहीं चाहा और दस प्रतिशत वो जो आपने चाहा|

जब आपने जाने का सोचा था तो आप नहीं जा पाए |लेकिन जब आप हताश होकर बैठ गए तो अचानक कोई ऐसा मौका आया कि आप वहां पहुंच गए जहां आप जाना चाहते थे|

कई बार हम कोई काम तुरंत करना चाहते हैं लेकिन उस वक्त वो काम का नहीं होता| इसके बाद हम हाथ पर हाथ धरकर निराश होकर बैठ जाते हैं|अचानक ऐसा मौका आता है जब काम आसानी से हो जाता है|

आपके हाथ में यदि कर्म करना है तो सिर्फ कर्म  पर फोकस करें रिजल्ट पर नहीं|  गीता में भी श्री-कृष्ण ने कर्म करने की बात कही है  परिणाम का नियंत्रण ईश्वर के हाथ में है|



जिसे हम भौतिक जीवन में बहुत ज्यादा तवज्जो देते हैं अध्यात्म में ऐसी चीजें दो कौड़ी की है| क्योंकि  ऐसी सभी चीज़े एक न एक दिन हम से पूरी तरह दूर हो जाएगी|  इसका मतलब यह नहीं है कि हम अपनी  सुख सुविधाएं और  बुनियादी जरूरतें पूरी ना करें| करें लेकिन साधना को साध्य ना समझें |

जिन चीजों के पीछे हम भागते हैं वो जीवन की परम संपदा नहीं है| परम लक्ष्य हासिल करने के लिए हमें भागने की जरूरत नहीं है ठहरने की जरूरत है|

हम अक्सर किसी विचार को आसरा बनाकर किसी लक्ष्य को हासिल करना चाहते हैं या विचारों को छोड़कर ध्यान में जाना चाहते हैं| दोनों ही स्थिति में कहीं हम कुछ पकड़ते हैं और कहीं हम कुछ छोड़ने की कोशिश करते हैं| आध्यात्म के रास्ते पर ना तो कुछ पकड़ना है ना ही कुछ छोड़ना है| बस ठहरना है, एक स्थान पर रुक जाना है, जितनी भी लहरें हैं उन्हें शांत कर देना हैं वो भी आन्तरिक स्तर पर|

जिन चीजों को हम जीतना चाहते हैं आखिरकार वही हार का कारण बनती है|  क्योंकि वह जिस कीमत पर मिलती है वह कीमत उस जीत पर बहुत भारी है लक्ष्य को हासिल करने की दौड़ में न जाने हम कितनी बेचैनी और परेशानियों को मोल ले लेते हैं| 

एक सेठ पूरी उम्र धन दौलत कमाने में लगा रहा उसने सोचा कि जब अंतिम समय आएगा तब मैं इस धन दौलत का भरपूर उपयोग करूंगा| दान दक्षिणा दूंगा | आनंद का भोग करूंगा, देश विदेश यात्रा करूंगा|  उसने उस धन दौलत को  कमाने में पूरी उम्र लगा दी| उसे लगा कि अब जीवन का अंतिम दौर आ गया है| उसने सोचा कि अब इस धन दौलत का उपयोग किया जाए| लेकिन अचानक उसके सामने सेहत खड़ी हो गई| सेहत ने कहा कि मैं जाती हूं| मेरा समय पूरा हो गया| सेठ ने कहा कि सेहत तुम्हारी तो इस वक्त मुझे बहुत जरूरत है| क्योंकि तुम्हारे बिना मैं धन दौलत का उपभोग कैसे कर पाऊंगा? सेहत बोली जब मैं थी तब तुमने मेरी परवाह नहीं की| अब जब तुम्हें मेरा ख्याल आया है तब मेरे जाने का वक्त आ गया है| अब मैं रह नहीं सकती अब तुम्हें मेरे बिना ही रहना पड़ेगा|

इसलिए ना तो किसी चीज के लिए इतना भागो कि  कि जीवन का सामान्य  उपभोग ही खत्म हो जाए| खुद को अपना जीवन का रचयिता मानने की कोशिश मत करो|   जिसको भी जीवन में कुछ मिला है तो उसमें कहीं ना कहीं कोई संयोग है| उसके अंदर का ठहराव है| उसका प्रारब्ध, संस्कार, देशकाल और  परिस्थितियां हैं| सिर्फ मेहनत और योग्यता ही नही|  ठहरो आज जो है उसका भी आनंद लो| उसे भी समझो| उसे भी महसूस करो| जो करना है वह जरूर करो| लेकिन करने में इतना ना बह जाओ कि जो हाथ में है उस को खो दो|