साक्षी बनिए, अपने अंदर ही मिलेगा शांति और आनंद का स्रोत! P अतुल विनोद
Be a Witness Find Peace and Happiness within Yourself
जिओ खुल कर जिओ| भारतीय सनातन संस्कृति हमें प्रेम के साथ जीने का संदेश देती है| अपने आप में आनंदित हो जाए|
उसकी दी हुई भूमिका को ही अपनी इच्छा बनालें| अपनी नई इच्छाएं पैदा ना करें| जब आप ईश्वर की दी हुई भूमिका का निर्वहन करेंगे तो आपको महसूस होगा कि आप स्वयं के राजा हैं|
बाहर की परिस्थितियों से कोई फर्क नहीं पड़ता यदि आप अपने अंदर के वास्तविक स्वरूप से परिचित हैं|
बाहर की दुनिया में प्रेम ही आनंद का स्रोत है| अंदर की दुनिया में आत्मा आनंद का समुद्र है|
प्रेम रास्ता है आनंद मुकाम है| परमात्मा सत, चित, आनंद है|
हमारी आत्मा, परमात्मा का अंश है इसलिए वो भी सत, चित आनंद है|
आनंद के बिना सब अधूरा है|
love, compassion, courage, self-sacrifice, humility सब कुछ आनंद के बिना व्यर्थ हो जाएंगे|
परमात्मा बादलों में नहीं रहते, भगवान इस आकाश में कहीं किसी स्थान पर निवास नहीं करते| परमात्मा तो हमारी बंद आंखों के अंधेरे के ठीक पीछे बैठे हैं|
परमात्मा परम चेतना है, वो अस्तित्व है|
जब परमात्मा के आनंद को हम देखते हैं, तो हम भी आनंद में हो जाते हैं|
जब हमारी आत्मा का विस्तार होता है, तो पता चलता है कि हम हर जगह हैं| तब हम उस परम चेतना के साथ एकाकार होने लगते हैं|
जब बाहर के सुख से पार पहुंचने की क्षमता आ जाए, तो आनंद अपने आप अवतरित हो जाता है|
आनंद खुशी नहीं जो हमारे चेहरे के हाव भाव में दिखाई दे|
A divine joy feeds the brain, the heart, and the soul.
यदि उस परम आनंद का पता चल जाए, तो दुनिया की कोई भी संपत्ति आपके सामने आ जाए, आप उस संपत्ति के लिए उस आनंद को छोड़ना नहीं चाहेंगे|
जिन्हें सहज ध्यान उपलब्ध नहीं हुआ वो नहीं जान सकते कि वास्तविक आनंद क्या है|
वास्तविक आनंद चिरस्थाई है| ये शरीर के साथ भी रहेगा और शरीर छूट जाने के बाद भी|
“Consciousness of God-peace is never-ending”
जब हम इस शरीर को सब कुछ मान लेते हैं| तो हमारा आनंद संकुचित होता चला जाता है| शरीर भाव आनंद के ऊपर डाला हुआ पर्दा है|
अहंकार हमें आनंद से नीचे सुख-दुख की अवस्था में ले जाता है|
जीवन में पैसा, पावर, फ्रेंड्स कुछ भी मिल जाए, लेकिन वास्तविक आनंद इनके जरिए प्राप्त नहीं हो सकता| तो फिर उसे क्यों न प्राप्त किया जाए जिसे हासिल करने के लिए किसी जरिए की जरूरत ना पड़े|
हमारी प्रसन्नता छोटी-छोटी बातों पर निर्भर है| मटेरियल से प्राप्त प्रसन्नता हमेशा शॉर्ट टर्म होती है|
“Material objects and the satisfaction of material desires are temporal therefore all happiness deriving from them is temporal”
खाना, सुनना, देखना, महसूस करना, स्पर्श करना, इन सबसे जो सुख मिलता है वो थोड़ी देर में ही गायब हो जाता है|
जब आपको परम आनंद का पता चल जाता है, तब आप इस विश्व में मौजूद किसी जीव,व्यक्ति या वस्तु से नफरत और घृणा नहीं कर सकते| तब परमात्मा की हर रचना में उसकी खूबसूरती नजर आती है|
"Unattracted to the sensory world, the yogi experiences the ever new Joy of Being, His soul engaged in the union with Spirit, he attains indestructible Bliss.
“Bhagavad Gita”
परमात्मा ने इस दुनिया को अपने मनोरंजन के लिए बनाया है| उसके बच्चों को भी इस दुनिया में मनोरंजन ही ढूंढना है| उसने इस दुनिया को किसी को दुख देने के लिए नहीं बनाया| अफसोस कि उसकी बनाई हुई दुनिया में उसी के बच्चों ने अपने हाथों से सुख-दुख निर्मित कर लिए|
जैसे हमारे बच्चे, अपनी नादानी से चोटिल हो जाते हैं, बच्चे निरर्थक चीजों के लिए जिद करते हैं, रोते हैं| कई बच्चे तो बेवजह की जिद के कारण खुद को और अपने मां-बाप को तकलीफ़ देते हैं|
हम भी उस परमात्मा के नादान बच्चे हैं, जो निसार चीजों के लिए खुद को भी दुख दे रहे हैं| हमारे दुखी होने से हमारा पिता परम पिता परमेश्वर भी कष्ट पाता है|

