Type Here to Get Search Results !

हैलो, कभी हंस भी लिया करो

P अतुल विंनोद

हम कितना ही चिंतित हो जाए,  अपनी समस्याओं के सागर में डूब जाए,  विचारों में खोए रहे|  परेशानियों के दलदल से बाहर निकलने की कोशिश करते रहें|  लेकिन यह सब बेमानी है,  क्योंकि सोचने से कुछ बदलता नहीं|  होगा वही जो सृष्टि का विधान होगा|  सोचने की बजाय कुछ बेहतर कर सको तो ज्यादा ठीक,  वरना आपके गंभीर विचार आपको सिर्फ और सिर्फ हताशा दे सकेंगे|


कितनी बार हमने सुना कि जीवन एक अभिनय है, हम सिर्फ एक अभिनेता हैं संसार एक रंगमंच और परमात्मा निर्माता और निर्देशक है |  महान से महान व्यक्ति सफल से सफलतम लोग आखिर में यही कह गए कि सब कुछ देश काल परिस्थिति और विधाता के ऊपर निर्भर करता है|  

बड़े-बड़े दार्शनिक, ,साधु संत, महात्मा, महर्षि सभी ने आखिर में यही पाया कि संसार निसार है और जीवन एक सरिता है, जो बहती चली जाती है|  अपने आप उसे दिशा मिलती चली जाती है और वो 1 दिन र समुद्र में जाकर मिल जाती है| 

क्यों ना उस नदी की तरह बन जाए|  क्यों ना कुछ गुनगुनाए, थोड़ा हंसे, मुस्कुराए|  जब जीवन मनोरंजन ही है तो मनोरंजन को ही जीवन का मुख्य आधार क्यों ना बनाएं|

भक्ति करें या काम| योग करें या भोग| सब कुछ सहज रूप से ईश्वर को समर्पित करते हुए अपने आप को अभिनेता मानते हुए आनंद की मस्ती में खो जाने में क्या बुराई है?

कुछ हो या ना हो लेकिन जीवन को आनंद का उत्सव तो बनाया ही जा सकता है|  जीवन एक गीत है जिसे गुनगुनाना सबके हाथ में है |  छोटा हो या बड़ा, अमीर हो या गरीब, बच्चा हो या बुरा, हर व्यक्ति गुनगुना सकता है| 

आखिर इतनी गंभीरता से हमें मिला क्या?  मुंह बना लेने से ईश्वर प्रसन्न नहीं हो जाता|  न जाने कब से हम हंसे नहीं|  पेट पकड़कर खिलखिला कर हंसना तो शायद हम भूल ही गए|

सीरियसनेस कुछ भी नहीं देती|  फिर भी हम चेहरे पर गंभीरता  का लबादा ओढ़ कर बैठे रहते हैं| हम सोचते हैं कि हमारी चिंताओं से किसी को कोई फर्क पड़ेगा लेकिन याद रखो चेहरे पर मुस्कुराहट रखो यहाँ गम का खरीदार कोई नहीं|

इतना क्यों सोचते हो?  दुनिया में आए हो तो जी लो कुछ कर लो|  बहुत ज्यादा मान्यता,सिद्धांत, परंपराएं, संस्कृति, सभ्यता भी बंधन बन जाती है|  

इसलिए भारतीय सनातन धर्म  ने मनुष्य को जीने के कई मार्ग दिए|  जो व्यक्ति प्रेम को पसंद करता है तो सनातन धर्म में प्रेम से जीने को श्रेष्ठ बताया|   जो व्यक्ति भाव के साथ जीना चाहता है उसके लिए भक्ति और भाव योग का मार्ग दिखाया,  सनातन धर्म कहता है कि हर एक रास्ता उस तक जाता है| 

तुम परमात्मा के लिए कुछ मत करो बस अपने लिए करो| तुम बस अच्छे ढंग से जी लो| अपने आप को समझ कर इस जिंदगी का आनंद उठा लो| तुम गाओ गुनगुनाओ, नाचो ये भी तुम्हारी भक्ति बन जाएगी|
हमारा धर्म हमें गीत गुनगुनाने, नाचने, आनंद से रहने, मस्ती में रम जाने से नहीं रोकता|

चेहरे पर मुस्कान आती है लेकिन वह भी यदा-कदा| जैसे मुस्कुराना एक बोझ है|  हम मुस्कुराते हैं तो ऐसे जैसे अपने आप पर भी एहसान कर रहे हैं|  प्रफुलता का भाव हम भूल चुके हैं|  जबकि प्रफुल्लता हमारा नेचर है|

जब हम बच्चे थे तो कैसे सहज रूप से मुस्कुराते थे? हंसते थे, नाचते थे, खेलते थे, भागते दौड़ते थे| क्योंकि उस वक्त ऊर्जा का प्राकृतिक प्रवाह हमारे अंदर होता था|  समय के साथ जिम्मेदारियों, परेशानियों, मुसीबतों ने गंभीरता का आवरण ओढा दिया| या यूं कहें कि हमने खुद गंभीर बनना शुरू कर दिया|
इतनी सारी शर्तें, ,सरहदें, सीमाएं, नियम, कायदे और कानून|  

इसलिए हमारे धर्म ने हमें सिद्धांत के विपरीत भी सिद्धांत दिए|  रास्तों के विपरीत भी रास्ते दिए|  आकार दिया तो निराकार भी दिया|  

तुम इसे मानो या उसे मानो|  तुम कृष्ण को मानो या राम को मानो|  तुम राधा को मानो या दुर्गा को मानो|  तुम बजरंगी को मानो  यह भोलेनाथ को मानो|

तुम जैसा जीना चाहते हो वैसे ही आदर्श तुम्हें नजर आ जाएंगे|  बस तुम जीना सीख लो| 

किसी धर्म ने कभी किसी से नहीं कहा कि गंभीर रहो, सोचते रहो चिंता में डूबे रहो|  धर्म तो कहते हैं कि तुम्हारी चिंता से होगा क्या?  धर्म तो कहते हैं कि तुम करने वाले हो ही नहीं तो फिकर किस बात की?  धर्म तो कहता है कि तुम अपनी सारी जिम्मेदारी को भगवान को क्यों नहीं सौंप देते? और खुद खाली क्यों नहीं हो जाते? 

धर्म कहता है तुम बस जियो|  सुख से जियो|  शांति और आनंद से जियो| आनंद तुम्हारा अधिकार है|  सुख और दुख से ऊपर उठकर आनंद के भागी बन जाओ|

आध्यात्मिक आनंद की प्राप्ति जब होगी तब होगी|  लेकिन आज इसी वक्त इस क्षण, क्या हम दिल खोल कर मुस्कुरा सकते हैं?  हम सहज, शांत, निर्मल होकर छोटी-छोटी बात पर हंस सकते हैं?  क्या हम गीतों की मधुर तान पर नाच सकते हैं?

इतना मत सोचिए परमात्मा बहुत विराट है|  आपकी छोटी-छोटी बातों का रिकॉर्ड नहीं रखता|  ना हीं आपके मरने के बाद तो आप से पूछेगा कि आपने इतना आनंद क्यों लिया? आप इतने क्यों मुस्कुराए? आप इतना क्यों नाचे? आप इतना क्यों हसे? 

बस यही तो है जो पाप नहीं है|  जिसमें किसी और दूसरे का नुकसान नहीं है|  जिससे प्रकृति नाराज नहीं होती| 

गीत, नृत्य, रास, लीलाएं, प्रेम सब हमारी संस्कृति का हिस्सा है| फिर किस बात का डर? 

हम उत्सव धर्मी लोग हैं|  छोटी-छोटी बातों में भी हम उत्सव मनाते हैं| उत्सव हमारी संस्कृति और सभ्यता का हिस्सा हैं|  भारतीय संस्कृति जीती जागती संस्कृति है|  हसती बोलती संस्कृति है| 

आनंद के लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं है|  बस अपनी जिम्मेदारियों को उस परमात्मा पर छोड़ने की जरूरत है| वो है हम सबकी जिम्मेदारी का निर्वहन करने के लिए| लेकिन इसका मतलब अलसी बन जाना नहीं.. अपना कर्म करना लेकिन अनासक्त होकर|  जब वो चिड़ियों को  चहचहाने से नहीं रोकता तो फिर हमें क्यों रोकेगा? 

हमारे उपनिषद कहते हैं कि ईश्वर परम आनंद है,  यह सृष्टि उसकी लीला है|  वह इस दुनिया में सब कुछ जीने का मौका देता है|  पूरा अवसर देता है|   

कभी देखा आपने की उसने कभी किसी की जीवन शैली में हस्तक्षेप किया हो?

वो कहता है जिओ| प्रकृति को समझो| प्रकृति हमेशा हर हाल में शांत रहती है| वैसे ही तुम भी प्रसन्न रहो| बहते रहे निर्झर झरझर.. गुनगुनाते हुए| पानी की तरह बन जाओ| 

वो रस है|  जब परमात्मा नीरस और बोझिल नहीं है तो हम क्यों है? 

जीवन एक खेल है इसे खेल भावना की तरह लो|  दूसरों की तरह जीवन जीने की लालसा में रहने से क्या फायदा|  बेवजह का कंपटीशन| बेवजह की तुलना, बराबरी की इच्छा| दौड़ में आगे निकल जाने की  लालसा|  हर व्यक्ति अलग है| उसका  संस्कार अलग है| प्रारब्ध अलग है| आप अपने आप में यूनीक हैं| 
बाकी लोगों की खुशियों में भी अपनी खुशी देखें|  क्योंकि आपके आसपास के लोग यह दुनिया खुश रहेगी तो आप भी खुश रहेंगे| वो भी आपकी ही दुनिया के अंग है| खुश रहिए, खुशियां लौटाइए, खुशियां बढ़ाइए, खुशियां फैलाइए|