क्या साधारण मनुष्य भी ईश्वर का अवतार बन सकता है? अवतार कौन है?
ATUL VINOD:-
सनातन धर्म कहता है कि हर व्यक्ति अपने गुण और कर्म से देवता और अवतार बन सकता है| जब हम वास्तविक धर्म के अनुसार ईश्वरीय गुणों को अपने अंदर प्रकट कर लेते हैं तब इसी शरीर से देव बन जाते हैं| इसी शरीर में दिव्य गुणों का अनुभव किया जा सकता है| मनुष्य देव और सिद्ध की संज्ञा में पहुंचते ही अलौकिक और अद्भुत सामर्थ्य से भर जाता है| उसके अंदर इस दुनिया की बुराइयां घटाने की ताकत आ जाती है|
भारतीय दर्शन में पूर्ण ब्रह्म कहलाने के लिए 16 कलाओं का वर्णन है| मनुष्य में लगभग 8 कलाएं स्वाभाविक रूप से होती हैं| कलाओं की संख्या इससे ऊपर जैसे-जैसे बढ़ती चली जाती है वैसे वैसे व्यक्ति देवत्व की तरफ अग्रसर होता चला जाता है| मनुष्य यदि 10 कलाओं से युक्त हो जाए तो वह देवता कहलाने लगता है 12 कला से युक्त हो जाए तो सिद्ध कहलाने लगता है, 14 कलाओं से युक्त होकर भगवान, 16 कलाओं से युक्त होकर स्वयं साक्षात ईश्वर बन सकता है|
16 कलाओं में मनुष्य बीच में होता है| जैसे-जैसे वह बीच से ऊपर उठता चला जाता है वैसे वैसे उसके अंदर देवत्व आता चला जाता है| जो व्यक्ति अधर्म के खिलाफ खड़ा होता है और धर्म की स्थापना का प्रयास करता है| दुष्टों का दमन करता है और शिष्टों का पालन करता है वो आत्मशक्ति से भरता चला जाता है और ईश्वर का अवतार कहलाने लगता है|
हमने जितने भी अवतारों के बारे में सुना वो किसी न किसी मनुष्य के घर में ही पैदा हुए| वो दिखने में साधारण मनुष्य ही थे लेकिन उनके अंदर असाधारण शक्ति सामर्थ्य और संकल्प था|
हमारे अंदर दैत्य बनने की क्षमता भी है और दानव देव सिद्ध और अवतार बनने की भी|
इस दुनिया में जो भी अवतार कहे गए वह अधर्म के खिलाफ खड़े थे और धर्म की रक्षा के लिए लड़े थे|
अवतार का अर्थ ही है अधर्म का नाश और धर्म की रक्षा|
इस दुनिया में धर्म और अधर्म का घटना और बढ़ना लगा रहता है| समय-समय पर धर्म की हानि होती रहती है| हम मनुष्य में से ही कोई एक या अनेक अधर्म को कम करने का प्रयास करता है और धर्म की स्थापना में भूमिका निभाता है| इस कार्य में लगा हर व्यक्ति ईश्वर का अवतार ही है| अंतर सिर्फ उसके अंदर प्रकट होने वाले ऐश्वर्य का है|
ईश्वर के जितने भी अवतार होते हैं वो उसके अंश या सामान्य से अधिक कलाओं के कारण अवतार कहलाते हैं|
जो व्यक्ति जितना माया के अधीन है उतना ही साधारण मनुष्य और मानव है| जैसे-जैसे माया का पर्दा हटता चला जाता है/ माया की अधीनता कम होती चली जाती है ऐश्वर्य बढ़ता चला जाता है|
माया जिसके अधीन है वह पूर्णब्रह्म है|
और जो माया के थोड़ा बहुत भी अधीन है वह अवतार है| जितना अधिक माया का प्रभाव बढ़ता चला जाएगा उतना ही श्रेणी घटती चली जाएगी|
जो भी ब्रह्म का अंश अवतार, सिद्ध, पूर्ण ऐश्वर्य युक्त मनुष्य है वह भी 24 घंटे पूर्ण ईश्वरीय अवस्था में नहीं रह सकता| खास मौकों पर ही उसका ऐश्वर्य प्रकट होगा बाकी समय पर एक साधारण मनुष्य की तरह जीवन जीता हुआ दिखाई देगा |
हम मनुष्य अपने अंदर की कलाओं का संकोच करके मानव से नीचे पशु पक्षी कीट पतंग बन सकते हैं और अपनी कलाओं का विस्तार करके देवता, सिद्ध, अवतार और साक्षात ब्रह्म भी बन सकते हैं|
मनुष्य का उन्नति और अवनति का क्रम चलता रहता है| पशु पक्षी अपग्रेड होकर मानव बन जाते हैं| मानव क्रमानुसार अपग्रेड और डाउनग्रेड होते रहते हैं|
यदि हमें नीचे जाना है तो खाए पिए मौज करें| ईश्वर के बारे में सोचें ही ना| सिर्फ धन बटोरने में लगे रहे| येन केन प्रकारेण कैसे भी सुविधाएं बटोर रहे| और ऊपर जाना है तो हमें सच झूठ न्याय अन्याय धर्म धर्म के बारे में सोचते रहना पड़ेगा| हम बीच में खड़े हैं नीचे जाने के रास्ते हमेशा खुले हुए हैं| ऊपर जाने के रास्ते खोलना पड़ेंगे|

