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ऐसे निकलेगा कोरोना का डर…

ऐसे निकलेगा कोरोना का डर…  कुछ इस तरह लागू हो लॉक-ऑन
अतुल विनोद:- 
कोरोनावायरस के साथ कई तरह की परेशानियां जुड़ी हुई है|  अब तक कोरोना का कोई प्रभावी ट्रीटमेंट नहीं खोजा जा सका है| लोगों ने अपनी इम्यूनिटी के बल पर इसे मात देने में काफी हद तक सफलता हासिल की है| लोगों में बीमारी का डर तो है ही साथ ही सोशल और फिजिकल डिस्टेंसिंग के कारण रोजमर्रा के कामों में असहजता से और ज्यादा हतोत्साहित हैं| | 
महामारी के कारण लोग अकेलापन महसूस कर रहे हैं और इसके कारण शरीर, मन, मस्तिष्क और आत्मा, हर स्तर पर इसका प्रभाव देखा जा रहा है|  एंजायटी, डिप्रैशन, टेंशन, लोनलीनेस  से घिरे लोग अपने कैरियर और भविष्य को लेकर भी चिंतित हैं|

जहां पूरी दुनिया के देश इस महामारी को अपने-अपने मुल्कों से खदेड़ने की तैयारी कर रहे हैं| वही आम लोग अपने अंदर के डर को निकालने का प्रयास कर रहे हैं|  मनुष्य इस वक्त इतिहास के आजीविका से जुड़े हुए सबसे बड़े संकट के दौर से गुजर रहा है| सरकारे भी मजबूर है क्योंकि चाह कर भी स्थिति को नियंत्रण में नहीं ला पा रही है|

वायरस अकेला होता तो ठीक था लेकिन यह अपने साथ कई तरह के दुष्परिणाम लेकर घूमता है|   छोटी सी शारीरिक परेशानी होने पर भी दुश्चिंता घेर लेती है| व्यक्ति निराशा की गर्त में डूब जाता है| सरकारों के सामने संकट से कोरोना से जूझना ही नहीं है बल्कि इसके  साइड इफेक्ट्स को भी कंट्रोल करना है|

लोगों के सामने डराने वाले अनुभवों की कमी नहीं है| तनावपूर्ण हालात हौसले को पस्त कर रहे हैं| मानव जाति ने लंबे समय से विपरीत परिस्थितियां नहीं देखी|  यही वजह है कि लोग कठिन दौर में संघर्ष करना भूल चुके हैं| अब वह पीढ़ियां मौजूद नहीं रही जिन्होंने अनेक तरह के संकट देखे|  

नई पीढ़ी ने तो सिर्फ घूमना फिरना मौज मस्ती करना माहौल और पब संस्कृति देखी| नई पीढ़ी पूरी तरह से इस तरह के संकटों से अनजान है|  दोस्त रिश्तेदार भीड़भाड़ के आदी युवा मौका मिलते ही फिर से उसी परिस्थिति को पैदा कर देना चाहते हैं| इससे और ज्यादा संकट खड़ा हो जाता है|  गली मोहल्ले चौक चौराहों पर आप युवाओं की टोली को बिना किसी मास्क गपशप और हुड़दंग करते देख सकते हैं| 

जो लापरवाह है वे जुर्म कर रहे हैं| जो संजीदा है वह सोच सोच कर अपने दिमाग को कमजोर करके भी सरकार के सामने मुसीबत पैदा कर रहे हैं|

महामारी का जो प्रभाव है वो बुरी तरह से मन और मस्तिष्क पर छाया हुआ है|  हमें मानसिक स्वास्थ्य को लेकर गंभीरता से विचार करना होगा|

आने वाले समय में हमें लोगों के मानसिक स्वास्थ्य जोरदार तरीके से कार्य करना पड़ेगा|  लोगों में जिजीविषा की भावना पैदा करनी  पड़ेगी|  कम में जीना, संघर्ष, चुनौतियों के बीच सरवाइव करना लोगों को सिखाना पड़ेगा| 

इस तरह की आपदा के प्रबंधन के मामले में हम बहुत पीछे हैं|  हमने बाढ़, भूकंप और दंगों से निपटना तो सीख लिया, लेकिन कोरोना जैसी महामारी से निपटना हम  अभी तक हम नहीं सीख पाए|

मानसिक स्वास्थ्य को लेकर दुनिया भर में लॉकडाउन के पहले और बाद की स्थितियों पर रिसर्च हुई तो चौंकाने वाले नतीजे सामने आए|  अवसाद के मामले लगभग डेढ़ सौ प्रतिशत बढ़ चुके हैं तो चिंता भी दुगनी हो चुकी है|

सरकारों ने बिना सोचे समझे लॉकडाउन कर दिया और अचानक लॉकऑन कर दिया| लोग इसके लिए तैयार नहीं थे|  दोनों ही स्थितियां लोगों के लिए असहज और अचानक होने वाली ऐसी परिस्थिति थी जिसके साथ सामंजस्य बैठाना उनके लिए मुमकिन नहीं  है|

लोगों में कोरेंटिन रहना,  सोशल और फिजिकल डिस्टेंसिंग,  वायरस के प्रति सतर्कता और नई तरह की जीवन शैली   के प्रति जागरूकता की अभी भी कमी है|

लोगों को अकेले रहने की आदत नहीं है| समाज से कटकर रहना भी उन्होंने नहीं सीखा|  एक दौर था जब गांव में लोग महीनों तक बारिश के चलते देश दुनिया से कटकर रहते थे|  बारिश से पहले 4 महीने के राशन पानी की व्यवस्था कर ली जाती थी|  क्योंकि सड़कें नहीं होती थी बारिश के कारण कीचड़ इतनी हो जाया करती थी कि लोग गांव से बाहर नहीं निकल सकते थे|  लेकिन अब गांव के लोग भी कुछ दिन के लिए भी कट कर रहना भूल गए हैं| 

दुनिया भर में हुई शोध यह भी बताती है कि सोशल मीडिया जितना बड़ा साथी बन कर उभरा है उतना ही इसका दंश भी है|  24 घंटे स्क्रीन के साथ रहने से व्यक्ति कई तरह के मानसिक विकारों का शिकार हो जाता है|  वो  एक आभासी दुनिया में जीने लगता है| जो आने वाले समय में उसे सामाजिक और व्यावहारिक रूप से एडजस्ट होने में मुश्किलें पैदा करेगा|

महामारी से जुड़ी हुई खबरों से जुड़े रहना भी लोगों की मानसिक परेशानी को बढ़ाता है|  कुछ लोग दिन-रात टीवी या मोबाइल के जरिए मौत के आंकड़ों को देखते रहते हैं इससे उनके अंदर एक अनजाना डर पैदा हो जाता है| 

घर में लगातार एक साथ रहने से भी कई तरह की मुश्किलें सामने आती है| जब हम लोग एक दूसरे का मुंह लगातार देखते हैं| एक दूसरे की गतिविधियों के 24 घंटे से सहभागी बनते हैं तो  बोरियत महसूस होने लगती है| कई बार मानसिक तनाव से जूझ रहा व्यक्ति अपना गुस्सा अपने ही घर में रहने वाले किसी व्यक्ति के ऊपर निकालने लगता है और इससे तनाव और बढ़ जाता है| 

कोरोना से जुड़ी हुई बातों से बच्चे भी प्रभावित हो रहे हैं| वो दिन रात को कोरोना वायरस सुनते रहते हैं| ऐसे में मां-बाप की जिम्मेदारी है कि अपने बच्चों को निडर बनाए| उन्हें सजग और सतर्क तो बनाएं लेकिन उनके अंदर एक आत्मविश्वास पैदा करें| कोरोनावायरस से जुड़े सवालों के जवाब देते रहे उनसे संवाद करते रहे|

कोरोना  के इलाज में जुटे हुए डॉक्टर भी तनाव में हैं| अपने परिवार से दूर  है| शुरुआत में तो उन्होंने जी जान से काम किया| लेकिन कोरोना जिस तरह से बढ़ रहा है तो उन्हें भी अपने अंदर असुरक्षा महसूस हो रही है| आखिर कब तक पीपीई किट के बीच उन्हें इस तरह की विपरीत परिस्थितियों में काम करते रहना पड़ेगा| 

डॉक्टरों को भी लगातार मोटिवेट करने की जरूरत है उन्हें अतिरिक्त मानदेय देने के साथ-साथ बूस्ट करने की जरूरत है| उनके फैमिली मेंबर्स को भी मोटिवेट करने की जरूरत है| एक अच्छी टीम भावना के साथ सरकार के प्रोत्साहन और सामाजिक एप्रिसिएशन से डॉक्टरों को सहज रखा जा सकता है|