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कैसे भावनाएं पड़ जाती हैं इम्यून सिस्टम पर भारी?

कैसे भावनाएं पड़ जाती हैं  इम्यून सिस्टम पर भारी?  और फिर जिंदगी…..
 
:- अतुल विनोद
 
यदि मन शांत हो और अंदर विश्वास हो तो बड़े से बड़ा  रोग भी जा सकता  है|   कमजोर मन और अविश्वास छोटे से छोटे रोग को भी बड़ा बना सकते हैं|
 
व्यक्ति की नकारात्मक चेष्टाओं के आगे  रामबाण दवाई भी फेल हैं|  छोटे से छोटे रूप के डर से व्यक्ति अपने अंदर ऐसी रासायनिक क्रिया उत्पन्न करता है जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है|
 
आत्मविश्वास, निर्भयता और शांति इम्यून सिस्टम के लिए टॉनिक का काम करती है|
 
हमारे ब्लड सरकुलेशन पर बहुत कुछ डिपेंड करता है| 
 
गुस्सा डर और चिंता हमारी धड़कनों को बढ़ा देती है और ब्लड सरकुलेशन अनियंत्रित हो जाता है| हमारे पाचन पर भी हमारे विचारों का सीधा प्रभाव पड़ता है|
 
डर से हमारा गला सूख जाता है|  पाचक रस कमजोर पड़ जाते हैं| 
 
चिंता भय डर की भावनाएं  न सिर्फ मनोरोगी बनाती है बल्कि शरीर को भी कमजोर कर देती है|
 
हमारे शरीर का प्रत्येक सेल हमारे दिमाग का छोटा  रूप है|  हमारी चिंताएं  हमारे हर एक सेल को कमजोर करती है|
 
भय की भावनाएं बचपन में प्रवेश करती है|  इसलिए बच्चों को शुरुआत से ही निडर साहसी बनाने पर काम करना चाहिए|
 
हमारी मानसिक स्थिति हमारे शरीर के अंगों पर प्रतिक्रिया करती ही है| हमारा विश्वास हमारे हर एक सेल को शक्ति से भर देता है| उत्साहजनक बातें रग-रग को प्रफुल्लित कर देती हैं|
 
ईश्वर ने हमें कर्म करने का अधिकार दिया है| उस कर्म में अपने आप को उत्साहित और साहसी रखना भी शामिल है| 
 
हमें रोग जितने नहीं मारते उतने भय मारते हैं|  जो हो गया सो हो गया कोई गलती हो गई तो हो गई| अब पछतावा करके और चिंतित क्यों होना| आपने जो किया उसका नतीजा ईश्वर तय करेगा|  इसलिए वर्तमान को संभाले आपके हाथ में कर्म करना है|  तो ऐसे कर्म करें जिससे उत्साह, निडरता, साहस बढ़े |
 
अच्छी मनोदशा से अच्छी दवा कोई नहीं हो सकती|
 
हमारा डर हमारे डर को ताकत देता है| हम जिस से डरते हैं उसे लगातार शक्तिशाली बनाते जाते हैं|  इसलिए हारने से डरने वाला व्यक्ति हमेशा हारते रहता है| मन से मस्तिष्क हारता है|  मन भावनाएं हैं  मस्तिष्क मशीन|
 
मस्तिष्क मन की भावनाओं की उर्जा से ही चलता है|   संशय से साहस का नाश होता है|
 
विजय के भाव से विजय ही मिलती है| भले व्यक्ति हार जाए लेकिन उसके भाव नहीं हारते और उस हार में भी वह अपनी जीत देखता है|
 
बेफिजूल की चिंताओं कल्पना हार और भय के सभी स्रोतों को बंद कर दें|
 
संकट में हाथ पर हाथ रखकर बैठने से कोई फायदा नहीं|  संकट में और दुगनी ऊर्जा से काम करना चाहिए|  डर कर अपनी शक्तियों को कम ना करें| 
 
भय से घबराहट और बेचैनी पैदा होती है और व्यक्ति अपने मकसद से दूर होता चला जाता है और इसीलिए वह अनसक्सेसफुल हो जाता है|
 
गरीबी के विचारों से दूर रहिए अपने आप को संपन्न मानिए आपको ईश्वर ने जीने के लिए बहुत कुछ दिया है|
 
भय का राक्षस बहुत भयंकर है|  इसको साहस के देवता से निपटाया जा सकता है|
 
“कायर तो जीवित मरत...दिन में बार हजार”
 
चिंता छोड़ो और बस अपने काम में जुट जाओ|
 
चिंता तनाव जलन घृणा निराशा हताशा बदले की भावना यह सब भय  की संताने हैं|
 
आप जिस चीज की चिंता करते हैं शायद वह कभी ना हो लेकिन जिन कार्यों को आप अपने हाथ में लेते हैं उनके होने की संभावना बहुत ज्यादा है|
 
आप जैसी आशा करेंगे वैसे बन जाएंगे| सृष्टिकर्ता ने आप को सबसे श्रेष्ठ को चुनने की आजादी दी है|  आप अपने लिए सबसे श्रेष्ठ चुने|  आप अच्छे से अच्छे की कामना करें|  ना मिले तब भी निराश ना हो क्योंकि जीवन तब भी आपके पास है|
 
संपन्नता मन की मूर्ति है|  मन में संपन्नता की मूर्ति को बैठा लीजिए| बाहर की धन दौलत तो उस संपन्नता की मूर्ति का साइड इफेक्ट मात्र है|  
 
चिंता से बड़ी कोई मूर्खता नहीं|  सफलता नहीं भी मिले| कभी कुछ हानि हो भी जाए तो उसे भी प्रिय बना लें उसमें भी कहीं ना कहीं आनंद और प्रसन्नता की कोई किरण जरूर होती है|
 
आप बस प्रतीक्षा करो आपको सेहत और संपन्नता जरूर मिलेगी|संदेह करने की कोई जरूरत नहीं संदेह भी एक तरह का भय है|
 
आप कभी अपने भौतिक दुश्मनों को अपने घर में बैठाते हैं| तो फिर मानसिक दुश्मनों को क्यों अपने साथ लिए घूमते हैं?
 
अपने आप को उत्साहित करते रहो उत्साह को आशा को विजय को साहस को अपना दोस्त बनाइए|  दुश्मनों को अपने पास भटकने भी न दीजिए|