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काम क्रोध मद लोभ मोह से कैसे मुक्त हुआ जाए?



अतुल विनोद:- 

यह सब बुराई की श्रेणी में आते हैं इसलिए हम इन से पीछा छुड़ाना चाहते हैं। इनकी बुराई भी बहुत होती है लेकिन इनकी निंदा करने वाला भी इनसे मुक्त दिखाई नही देता।

चारों हमारे दुश्मन होते हुए भी गजब के दोस्त हैं। जितना इनसे दूर भागो उतना ही हमारा साथ देते हैं।

मनुष्य के अस्तित्व के साथ यह चारों चोली दामन की तरह चिपके रहते हैं।

सवाल यह है कि यह बुरे हैं तो फिर यह हमारे जीवन में आते ही क्यों हैं?

दरअसल संसार को चलाने के लिए इनकी बेहद आवश्यकता है।

भले ही धर्म इनसे दूर रहने की बात करें लेकिन प्रेक्टीकली यदि संसार इन चारों से मुक्त हो जाए तो उसका व्यवहार चल नहीं सकता।

पाप, दुराचार, अन्याय,  अत्याचार, बेईमानी चोरी के खिलाफ यदि हमारे मन में क्रोध नहीं होगा तो क्या होगा? हम इनका प्रतिकार नहीं करेंगे तब यह बढ़ते चले जाते हैं। बुरे के प्रतिकार के लिए क्रोध ज़रूरी है।

काम के बिना सृष्टि कैसे चलेगी? इसलिए हर जीव में काम भाव होता है। स्त्री पुरुष के साथ के लिए काम धुरी है। सृष्टि भी प्रकृति और पुरुष के मेल से चलती है जिसे हम शिव और शक्ति कहते हैं। मेल और फीमेल के मिलन से ही नव सृजन होता है। 

मद यानी अहंकार, मैं, गुरुर, अहम का भाव। इस मैं के कारण तो व्यक्ति मेहनत, मशक्कत करता है। अपने मैं को पोषित करने के लिए वह कर्म करता है, चीजों का निर्माण करता है, आविष्कार करता है

यदि दो व्यक्तियों में एक दूसरे के प्रति मोह नहीं होगा तो लोग एक दूसरे से आकर्षित नही होंगे। धरती का हमारे प्रति मोह ही तो है जिसके कारण गुरुत्वाकर्षण बल पैदा होता है। मोह रूपी ग्रेविटेशन ही हमे धरती से बांधे रखती है वरना हम आसमान में उड़ते रहते ज़मीन पर कुछ ठहरता ही नही। 

संसार की रचना करते वक्त ईश्वर ने प्रेम, मैत्री, करुणा और कृतज्ञता के साथ काम, क्रोध, मद, लोभ की रचना भी की।

प्लस और माइनस साथ चलते हैं। संसार में द्वैत खत्म हो जाएगा तो सिर्फ एक बचेगा।

एक यानि सिर्फ परमात्मा। दो होने के लिए विपरीत आवश्यक है। 

दुनिया चलाने के लिए ही दो की आवश्यकता पड़ती है और दोनों ही एक दूसरे के ऑपोजिट होने चाहिए।

गुण और अवगुण दोनों के पीछे एक ही उर्जा काम करती है।

उस ऊर्जा को कभी हम क्रोध के रूप में अभिव्यक्त करते कभी प्रेम के रूप में।

वही ऊर्जा गुण और अवगुण में विभक्त हो जाती है।

मनुष्य को कभी भी काम क्रोध मद लोभ मोह से दूर नहीं भागना चाहिए। क्योंकि यदि सिक्का वजूद में है तो उसके दोनों पहलू मौजूद रहेंगे।

हमे करना क्या है? सिक्के के उस भाग को रोशनी की तरफ करना है जिसको हमें देखना और दिखाना है।

जो भाग प्रकाश की तरफ होगा वह उज्जवल दिखाई देगा और जो उसके विपरीत होगा वह अंधेरे में दब जाएगा।

काम क्रोध मद लोभ को दबाने के लिए हमें अपने गुणों यानी प्रेम करुणा मैत्री और कृतज्ञता को बढ़ाना पड़ेगा और अवगुणों का निषेध करना पड़ेगा। 

यदि हम गुणों को बढ़ा लें तो अवगुणों की ऊर्जा अपने आप कम हो जाएगी। व्यक्ति यदि  अपने अवगुणों को ऊर्जा देना बंद कर दे तो गुण अपने आप बढ़ने लगेंगे।

एक बात ध्यान में रखने की है  चारों अवगुण समय-समय पर जोर मारते हैं, इनको समझना  है। क्रोध है तो उसके पीछे क्या है,  क्रोध से दूर मत भागिए, उसके कारण अहंकार को दूर कीजिये।

दूर भागने की बजाय इनका निरीक्षण और परीक्षण करना सही रास्ता है।

इनका निषेध इनके अंदर जाकर ही हो सकता है। इनको समझ कर कारण को मिटा दो तो इनसे बचा जा सकता है। 

क्रोध लोभ मद मोह का कारण अज्ञानता है। ज्ञान की रोशनी में अंधकार छिप जाता है। जब ईश्वर की व्यवस्था और संसार की नश्वरता समझ आ जाती है तो ऊर्जा का प्रवाह इनकी तरफ स्वाभाविक कम हो जाता है। बहुत ज्यादा चिंता की बात नहीं है। 

हम मनुष्य हैं तो हमारे साथ गुण अवगुण दोनों ही विद्यमान रहेंगे। हमें बस अपनी ऊर्जा की बागडोर थामनी है। उस ऊर्जा को निगमित करना है उसे अपने हाथ में लेकर सही दिशा में प्रवाहित करना हैं।