मृत्यु या मुक्ति …..
जन्म के साथ मनुष्य को पंचतत्वों का बना शरीर प्राप्त होता हैं l
शरीर के द्वारा हम जो भी इकठ्ठा करते हैं वो जीवन और इस इकट्ठे किये हुए का विसर्जन ही मरण है मरण अथार्त मुक्ति l
आत्मा को गर्भ मिलते ही जो मिलना शुरू होता है वही भौतिक जीवन है। इनसे पूर्ण मुक्ति मृत्यु है।
आत्मा की आगे की यात्रा के लिए इन सबसे मुक्ति आवश्यक है आत्मा से सब तरह के भौतिक आवरणो का हटना आवश्यक है l
वो सब जो हमने बटोरा है एक न एक दिन हमें उसे छोड़ना ही है .. जिसे हम अपना समझकर इतना अभिमान करते है सबसे पहले वो शरीर ही छूटता है।
पहले आत्मा को शरीर मिलता है। शरीर के साथ विचार, संस्कार, परिवार, रिश्तेदार, नातेदार मिलते है।
जीवन को सुचारु करने के लिए उपयुक्त सारी वस्तुएँ हमें मिलती हैं।
कपड़े, पढ़ाई लिखाई, रोजगार, मकान, दुकान, पत्नी, बच्चे यह सब हमें मिलते है।
किन्तु जब मृत्यु आती है तब यह सब छोड़ना पड़ता है।
असल में ये मृत्यु हमारी नहीं होती है, ये भौतिक शरीर और उससे जुड़ी पहचान की होती है। लेकिन हम संसार में खुद को इतना बांध लेते है की मृत्यु के समय ये सब छोड़ना बहुत कठिन मालूम पड़ता है l
मृत्यु तो एक नए जीवन की शुरुआत है। हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि भौतिक पहचान हम नहीं है। इसकी मृत्यु निश्चित है।
इस बोध से हम मृत्यु के साथ सहज होते चले जाते है l
जो हमने बटोरा है। उसे मानसिक रूप से छोड़ने में भी तकलीफ होती है। इसलिए हम इसे थोड़ा थोड़ा करके छोड़ते जाएं तो यह हमारे लिए सहज हो जाता है।
जितना हम इकट्ठा करते जाते हैं, अपने अस्तित्व के साथ जोड़ते चले जाते हैं उतना ही हम अपने आप को बांधते चले जाते हैं।
जो भी हमारे साथ जुड़ता है, वो एक नया बंधन क्रिएट करता है।
मान लीजिये हमनें कुछ नए रिश्तेदार बनाये कुछ नए दोस्त, यार बनाये, कुछ नए सम्बन्ध कायम किये, वह सब बंधन बनकर हमारे पीछे लग जाते हैं।
हमें डर सताने लगता है कि कहीं हमारा कोई अपना हमसे बिछड़ ना जाये, हमारा धन कम ना हो जाये l
हम शरीर और स्वास्थ्य बनाने के लिए भी बहुत कुछ करते हैं वो स्वास्थ्य भी एक दिन बंधन का कारण बन जाता हैl एक एक सामान जिसको हम खरीदते और बटोरते हैं उसके नष्ट होने का डर सताता ही है।
हम जितना गहरा संबन्ध बनाते है उतना ही उसे छोड़ना मुश्किल होता हैl
और यही बंधन मुक्ति की राह में बाधा है। मुक्ति की राह में बाधा बनने वाले इन संबंधो को मानसिक रूप से छोड़कर हम आज से ही अपनी मुक्ति की शुरुआत कर सकते हैं l
हम सहजता से मोह की मानसिक बेड़ियों को तोड़ सकते हैं। जो कुछ भी बंधन का कारण हैं एक ना एक दिन छूट जायेगा क्यों ना ''मैं '' स्वयं ही इसका त्याग कर दूँ lक्यों ना ''मैं ''इन सब बंधनो को तोड़ दूँ ?
''मैं '' अकेला ही आया और मरने के बाद अकेले ही जाना है। मेरे सारे बंधन मैं आज ही तोड़ देता हूँ और स्वयं को मुक्त करता हूँ l
इसका मतलब ये नहीं कि आप घर परिवार छोड़कर सन्यास लेंगे l
बल्कि आप एक अभिनेता की तरह काम करते रहेंगे, मौजुद रहेंगे,आप सबके साथ रहते हुए, अपनी ज़िम्मेदारी निभाते हुए नही सबसे मुक्त रहेंगे और आनंदपूर्वक रहेंगे l
वैसे भी दुनिया के लोग किसी की उपस्थिति बर्दाश्त नही करते जो उपस्थिति दर्ज कराता है। आकर्षण का केंद्र बनता है, दबदबा कायम करता है, दूसरों पर प्रभाव डालने का प्रयास करता है वो अन्य की जलन,कुढ़न का कारण बनता है। लोगों को आप नही आपकी शख़्सियत नही आपसे होने वाले लाभ से मतलब है।
अतुल विनोद
7223027059

