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भगवान दिखता क्यों नहीं ?

अतुल विनोद
इस दुनिया मे दो तरह शक्तियां कार्यरत हैं । जिन्हें प्रकृति और पुरुष कहते है। सामान्य भाषा में समझें, जैसे शरीर दिखता है लेकिन शरीर रूपी इस उपकरण में बैठी हुई आत्मा नहीं दिखती। जैसे तार दिखता है लेकिन तार में प्रवाहित बिजली दिखाई नहीं देती। वैसे ही परमात्मा से संचालित प्रकृति दिखती है लेकिन परमात्मा(पुरुष) दिखाई नहीं देता।
जो अदृश्य है वह कभी दृश्य नहीं हो सकता और जो दृश्य है वह कभी अदृश्य नहीं हो सकता। एक दिखाई देगा तो दूसरा अदृश्य हो जाएगा। अद्रश्य को देखने के लिए अद्रश्य आँख चाहिए जिसे छटवी इन्द्रिय कहते हैं|
जिस तरह हम सिर्फ शरीर में आत्मा के अस्तित्व का अनुमान लगा सकते हैं। उसका आभास कर सकते हैं। उसका अनुभव कर सकते हैं। उसकी प्रजेंट को समझ सकते हैं।
जिस तरह हम किसी उपकरण के चलने पर उस उपकरण में बिजली के प्रवाह को समझ सकते हैं। उसका अनुमान लगा सकते हैं। बिजली को देखा नही जा सकता तो क्या उसका अस्तित्व नही है। बिजली उपकरणों की गति में, बल्ब के प्रकाश के पीछे मौजूद है । ये स्वतः प्रमाणित है।
परमात्मा भी अदृश्य सत्ता है वह विश्वात्मा है जो हम सब के पीछे कार्य कर रही है। हम सब के जीवित होने का अर्थ, हम सबके चलाएमान होने का अर्थ, हम सबके हर तरह के कार्यकलापों का अर्थ यह है कि हमारे पीछे वह परमात्मा रूपी शक्ति कार्य कर रही है।
वह स्वप्रमाणित है, हम सब के पीछे उसी की शक्ति है। मनुष्य में वह ज़्यादा है तो पत्थर में बहुत कम, लेकिन है हर जगह। उसी की शक्ति से आप श्वास ले रहे हैं। तो उसी की शक्ति से आप चैतन्य हुए हैं। उसी की शक्ति से ये दुनिया पैदा हुई , वैज्ञानिकों ने तो नही की। चेतना से जड़ पैदा हुआ जड़ से चेतना नहीं|