Atul vinod
अगर सभी आत्माओं को मोक्ष मिल जाये तो क्या पृथ्वी से जीवन ही खत्म हो जाएगा? क्योंकि फिर जन्म कौन लेगा?
मोक्ष के बारे में जो भी बातें हो रही हैं वो उनके द्वारा होती हैं जिन्हें मोक्ष नही मिला, क्योंकि मिल गया होता तो वे बताते कैसे क्यूंकि वो तो हमेशा हमेशा के लिए इस दुनिया से निकल गए होते।
इसलिये असली मोक्ष क्या हैं उसके बारे में हम सब लोग पढ़ सुनकर जो बता रहे हैं वो प्रमाणिक हो यह जरूरी नहीं है। मोक्ष का एक अर्थ आवागमन से मुक्ति है। आवागमन से मुक्ति कौन चाहता है? यदि आपसे कह दिया जाए कि आप हमेशा हमेशा के लिए मृत्यु को प्राप्त हो जाएंगे तो क्या आपको अच्छा लगेगा? क्या आप हमेशा के लिए मरना चाहेंगे, सामान्यतः मोक्ष का जो अर्थ लगाया जाता है उसका तो मतलब यही है कि परमानेंट डेथ। यानी आत्मा का अस्तित्व खत्म होकर परमात्मा में विलीन हो जाना।
जबकि आत्मा के बारे में कहा जाता है कि वह कभी नष्ट नहीं होती। मोक्ष की कल्पना मनुष्य के मस्तिष्क का विलास है या उसे सही ढंग से समझा नही गया? जब मानव को इस जीवन में कुछ भी सार नजर नहीं आता तो वह पूरी तरह खत्म हो जाना चाहता है। और उसी को मोक्ष समझता है ताकि झंझट से मुक्ति मिले। क्या कोई सफल, सुखी व्यक्ति मोक्ष की बात करता सुनाई देता है? शायद नही।
ईश्वर भी चाहे तो पूरी दुनिया को खत्म करके उसे अपने में विलीन कर ले । लेकिन वह ऐसा क्यों नहीं करता? सीधी सी बात है कोई भी आत्मसत्ता पूर्णतः विलीन नहीं हो सकती। आपका वर्तमान की पहचान से जुड़ा जो (विचारों व अनुभवों का डेटा)अस्तित्व है, मृत्यु के बाद इसी संसार में रह जाता है और फिर किसी नए जीवन में प्रवेश करके उसे चेतना(चेतना=मन + प्राण + आत्मा) देता है। यह सृष्टि की सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा है।
मोक्ष का अर्थ आत्मा की परमानेंट मृत्यु नहीं है। मोक्ष का अर्थ हो सकता है हमारे वास्तविक स्वरूप आत्मा का अनुभव, आत्म-स्वरूप की जानकारी। इसी को सम्भवतः मुक्ति कहते हैं। आत्मा तो बार-बार इस दुनिया में आएगी जन्म लेगी, फिर चली जाएगी, अच्छे कार्य होंगे तो प्रमोट होकर अच्छे लोक में जा सकती है।
इस दुनिया में अनेक ग्रह है जहां पृथ्वी से ज्यादा अच्छी जिंदगी है। जैसे भारत के अलावा ऐसे कई देश हैं जहां पर भारतीयों से ज्यादा अच्छी तरह से लोग जिंदगी जीते हैं।
इस दुनिया में कई ऐसे ग्रह हैं जहां और अच्छी ज़िन्दगी नसीब हो सकती हैं, अभी तो हमने परमात्मा की इतनी बड़ी श्रष्टि का एक अंश भी नही जाना फिर क्यों खुदको पूरी तरह खत्म कर लें। जब तक वह है तब तक हमारी आत्मा का अस्तित्व है। अगले जन्म में आत्मा की गति या तो और अच्छी होगी या निम्न स्तर की होगी, आत्मा मनुष्य से निचले स्तर पर भी जा सकती है। आप मोक्ष की बात कर रहे हो हो सकता है फिर से , जीव जंतु बन जाएं। मनुष्य को मोक्ष के रूप में अगले जन्म में फिर मानव रूप में और बेहतर भूमिका की कामना और प्रार्थना के साथ अपने कर्म में लगे रहना चाहिए।
स्वयं ईश्वर भी निरंतर सृजन में लगा हुआ है इस पूरी सृष्टि को नियोजित करने में लगा हुआ है। जीव, जंतु, ग्रह, नक्षत्र, तारे सौरमंडल, गैलेक्सियां, यूनिवर्स इन सब को चलाने वाला ईश्वर खुद कहीं विलीन नहीं हो रहा । आप क्यों उस में विलीन होकर मोक्ष की प्राप्ति चाहते हैं। जब तक वो है तब तक आपकी आत्मा है। जो शाश्वत है उसका मोक्ष कैसा? सब कुछ परमात्मा पर छोड़ दीजिए।
मोक्ष मुक्ति निर्माण आदि शब्दों के भ्रम जाल में पढ़कर सच से मुंह मत मोड़िये, मुक्ति, मोक्ष एक ऐसा लॉलीपॉप है जिसका स्वाद किसी ने नहीं लिया लेकिन उसके टेस्ट के बारे में वर्णन सब करते हैं।
मैं गलत भी हो सकता हूँ।


