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कुंडलिनी का जागरण

अध्यात्म का मतलब है हमारी आंतरिक वास्तविकता और ध्यान का अर्थ है हमारी इस आंतरिक वास्तविकता को उजागर करना , कुंडलिनी हमारे शरीर की एक आंतरिक सत्ता का सुप्त स्वरूप है, यह एक शक्ति है एक चेतना है जिसका क्रियाशील स्वरुप श्वास प्रश्वास के लिए जिम्मेदार है हम चाहे जागते रहे सोए या ध्यान में रहे यह क्रियाशील चेतना हमारे अंदर की प्राण ऊर्जा को नियंत्रित करती रहती है | हमारी श्वास को लगातार चलाती रहती है हम इडा और पिंगला नाड़ी / दो श्वास नली के जरिए श्वास लेते और छोड़ते हैं |

कुंडलिनी का जागरण क्या है ?
हमारी चेतना इडा और पिंगला के साथ सुषुम्ना नाड़ी से श्वास लेने लगती है , तो मानो कुंडलिनी शक्ति क्रियाशील हो गई | चेतना का सुप्त रूप (कुंडलिनी शक्ति) जागृत होती है तो हमारी श्वास प्रश्वास की प्रक्रिया पर उसका और अधिक अधिकार हो जाता है | हमारे शरीर की अन्य गतिविधियों को भी वह कंट्रोल में ले लेती और इसी को हम कुंडलिनी की स्वाभाविक क्रिया कहते हैं | यह सारी क्रियाएं अकस्मात शुरू हो जाती हैं और बिना किसी प्रयास के बिना किसी बाहरी ज्ञान के स्वतः ही होती रहती है |
खास बात यह है कि जो क्रियाएं हम प्रयत्न से करते हैं इधर उधर से जानकारी लेकर करते हैं उन सारी क्रियाओं , योग ध्यान, आसन , प्राणायाम का ज्ञान हमारे अंदर ही हमारी सूक्ष्म चेतना के पास स्वाभाविक रूप से होता है | कुंडलिनी को लेकर जो किताबें हैं उनमें कई तरह की जानकारियां होती है , कई तरह की कल्पना भरी बातें होती है लेकिन उनमें से शायद ही बहुत ज्यादा या बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है |
जब तक आपको कुंडली का स्वाभाविक एक्सपीरियंस नहीं होगा तब तक आप किताबों में लिखी हुई बातों से कुछ भी हासिल नहीं कर पाएंगे ना ही उन्हें समझ पाएंगे | आमतौर पर यह किताबें कट कॉपी पेस्ट होती है कुंडलिनी जागृति के लिए आपको लंबे समय तक ध्यान , मुद्रा महामुद्रा बंद प्राणायाम क्रियाओं की प्रैक्टिस कराई जाती है , लेकिन इसके बावजूद भी कुंडलिनी जागृति की कोई गारंटी नहीं होती , उसके पीछे भी कुछ कारण होते हैं आप कितनी ही प्रेक्टिस करें कितना ही प्राणायाम करें , क्रियाओं , बंध , मुद्राओं , मंत्रों का अभ्यास करें लेकिन कुछ खास पहलुओं पर ध्यान दिए बगैर ऐसी क्रियाएं लाभ देने की बजाय नुकसानदायक साबित हो जाती है | कई बार तो ऐसे अभ्यास से हम अपना नुकसान कर लेते हैं | क्योंकि बिना अनुग्रह के हठ पूर्वक लगातार जिद में की गई क्रियाएं ही कुंडलिनी को जागृत नहीं कर सकती | हां यदि कुंडली जागृत हो जाए तो यह सारी स्वाभाविक रूप से होने लगती है |
आध्यात्मिक जागरण , स्प्रिचुअल रागिनी और कुछ भी नहीं है सिर्फ और सिर्फ कुंडलिनी की जागृति है जब कुंडलिनी जागृत होती है या हमारी आध्यात्मिक चेतना जागृत होती है तो वह अनेक तरह के क्रियाओं के जरिए , अनेक तरह की प्रक्रियाओं के जरिए , अनेक तरह के शारीरिक मूवमेंट के जरिए, अनेक तरह के आसन के जरिए, अनेक तरह की हाथों की, आंखों की जीभ की भाव भंगिमाओं के जरिए ,अलग-अलग तरह की आवाजों के जरिए ,अलग अलग तरह की ध्वनियों के जरिए, अलग-अलग तरह की प्रतिक्रियाओं के जरिए, आपके शरीर को योग अग्नि से तपाती है | इसका उल्टा यदि हम यह क्रियाएं खुद करें तो इससे कुंडलिनी जागृत हो जाएगी यह कहा नहीं जा सकता , कुछ तथाकथित गुरु ,योगी, संत, साधु कुंडलिनी जागृति के लिए अनेक तरह की क्रियाओं का अभ्यास कराते हैं , अनेक तरह के प्राणायाम बंध व मुद्राओं के बारे में बताते हैं लेकिन इसके बावजूद भी वह किसी की कुंडली जागृत करा पाए इसकी गारंटी नहीं ले सकते
अतुल विनोद