ईश्वर की साधना किस क्रम से करें? पहले ब्रह्मा को पूजें? Vishnu को या शिव को? P अतुल विनोद

हम सब जानते हैं कि सनातन धर्म में एक ही परमात्मा की त्रिगुणात्मक शक्ति को ब्रह्मा, विष्णु, महेश कहा गया है|
एक ही परमात्मा जो सर्वव्यापी, सर्वग्राही और सर्वशक्तिमान है, जो निर्गुण और निराकार है| वो परमात्मा(इनविजिबल मैटर) + प्रकृति(विजिबल मैटर) के साथ मिलकर सृष्टि का सृजन, पालन और संहार करता है|
Brahma is the creator, Vishnu is the administrator and Mahesh is the destroyer
ईश्वरीय त्रिगुणात्मक परमात्मा शक्ति, त्रिगुणात्मक मैटर से मिलकर जगत् की सृष्टि, पालन और संहार करता है| इनविजिबल(+) और विजिबल मैटर(-) के मेल से ही “पावर सर्किट”(शक्ति चक्र) बन सकता है|
ब्रह्मा महासरस्वती से मिलकर निर्माण करते हैं विष्णु महालक्ष्मी से मिलकर पालन करते हैं और रुद्र महाकाली से मिलकर संहार करते हैं|
प्लस और माइनस का मेल हुए बगैर निर्माण, पालन और संघार नहीं हो सकता|
ब्रह्मा, विष्णु, महेश रूपी ईश्वर(पुरुष) को सृजन पालन और संहार के लिए सरस्वती, लक्ष्मी और काली की रुपी प्रकृति(स्त्री) जरूरत पड़ती है|
भारतीय दर्शन कहता है कि मूल स्वरूप में ईश्वर निष्क्रिय है| जैसे किसी बिजली के तार में प्रवाहित अकेला फेस किसी काम का नहीं है यदि उसके साथ अर्थ प्रवाहित ना हो|
आपके यहाँ बिजली विभाग तीन फेज़ कनेक्शन कर जाए लेकिन अर्थ का वायर कनेक्ट न करे तो क्या होगा? तीनो फेज़ किसी काम के नहीं तीनो को अर्थ चाहिए.. ब्रह्मा विष्णु महेश तीन फेस है इन तीनों को अपनी ताकत दिखाने के लिए सरस्वती लक्ष्मी और काली के रूप में तीन अर्थ चाहिए|
ऐसे ही निष्क्रिय(निरंजन) ईश्वर शक्ति से मिलकर ही सक्रिय होते हैं|
अपनी माया शक्ति से संचालित होकर वे जगदीश्वर होते हैं, यानि जगत्सष्टा, जगत पालक और जगत्संहर्ता होते हैं ।
जैसे सृष्टि का क्रम है सृजन, पालन और संहार, उसी तरह से हर पिंड का क्रम है जैसे मानव पहले वह जन्म लेता है, फिर उसका पालन, पोषण होता है, इसके बाद उसकी मृत्यु हो जाती है|
जब इन तीनों की साधना उपासना की बात आती है तो क्रम उल्टा हो जाता है, उसका भी एक विज्ञान है|
सबसे पहले 'महाकाली, महालक्ष्मी, फिर महासरस्वती'
ये तीनों नाम उपासना काण्ड के ग्रन्थों में इसी क्रम से आते हैं।
यदि कोई व्यक्ति बीमार पड़ जाए तो डॉक्टर सबसे पहले बीमारी का संहार महाकाली और रुद्र के रूप में करता है| डॉक्टर बहुत सावधानी से बीमार को बचाते हुए बीमारी को जड़ से उखाड़ने की कोशिश करता है| इस तरह बीमार की बीमारी को संघार करते हुए वह मरीज को बचाकर लक्ष्मी और विष्णु रूपी पालनकर्ता का काम करता है| आखिर में टॉनिक, न्यूट्रिशन और सप्लीमेंट देकर वो उस मरीज को नई जिंदगी देते हुए उसके शरीर के नवसृजन का ब्रह्म रुपी कार्य करता है|
गुरु सबसे पहले अपने शिष्य के अज्ञान का संघार करता है तब वह शिव और महाकाली के रूप में होता है| वही गुरु शिष्य के आत्मज्ञान को संरक्षित रखते हुए उसे बढ़ाने की कोशिश करता है तब वह विष्णु और लक्ष्मी के रूप में होता है और जब वह शिष्य को ज्ञान की नई बातें सिखाता है उसके नए स्वरूप से परिचय कराता है तो वह ब्रह्मा और सरस्वती का काम करता है|
सनातन धर्म कहता है कि साधना और उपासना का क्रम भी यही रहना चाहिए| सबसे पहले हम बुरी चीजों का त्याग करें,बुरी आदतों और दुर्गुणों का संहार करें |
अपने अंदर की अच्छाइयों, स्वस्थ्य और ज्ञान की रक्षा करते हुए उनका पालन पोषण करें और फिर नए ज्ञान का सृजन करें| अपनी आत्मशक्ति को पहचान कर उसे जागृत करें|

हम सब जानते हैं कि सनातन धर्म में एक ही परमात्मा की त्रिगुणात्मक शक्ति को ब्रह्मा, विष्णु, महेश कहा गया है|
एक ही परमात्मा जो सर्वव्यापी, सर्वग्राही और सर्वशक्तिमान है, जो निर्गुण और निराकार है| वो परमात्मा(इनविजिबल मैटर) + प्रकृति(विजिबल मैटर) के साथ मिलकर सृष्टि का सृजन, पालन और संहार करता है|
Brahma is the creator, Vishnu is the administrator and Mahesh is the destroyer
ईश्वरीय त्रिगुणात्मक परमात्मा शक्ति, त्रिगुणात्मक मैटर से मिलकर जगत् की सृष्टि, पालन और संहार करता है| इनविजिबल(+) और विजिबल मैटर(-) के मेल से ही “पावर सर्किट”(शक्ति चक्र) बन सकता है|
ब्रह्मा महासरस्वती से मिलकर निर्माण करते हैं विष्णु महालक्ष्मी से मिलकर पालन करते हैं और रुद्र महाकाली से मिलकर संहार करते हैं|
प्लस और माइनस का मेल हुए बगैर निर्माण, पालन और संघार नहीं हो सकता|
ब्रह्मा, विष्णु, महेश रूपी ईश्वर(पुरुष) को सृजन पालन और संहार के लिए सरस्वती, लक्ष्मी और काली की रुपी प्रकृति(स्त्री) जरूरत पड़ती है|
भारतीय दर्शन कहता है कि मूल स्वरूप में ईश्वर निष्क्रिय है| जैसे किसी बिजली के तार में प्रवाहित अकेला फेस किसी काम का नहीं है यदि उसके साथ अर्थ प्रवाहित ना हो|
आपके यहाँ बिजली विभाग तीन फेज़ कनेक्शन कर जाए लेकिन अर्थ का वायर कनेक्ट न करे तो क्या होगा? तीनो फेज़ किसी काम के नहीं तीनो को अर्थ चाहिए.. ब्रह्मा विष्णु महेश तीन फेस है इन तीनों को अपनी ताकत दिखाने के लिए सरस्वती लक्ष्मी और काली के रूप में तीन अर्थ चाहिए|
ऐसे ही निष्क्रिय(निरंजन) ईश्वर शक्ति से मिलकर ही सक्रिय होते हैं|
अपनी माया शक्ति से संचालित होकर वे जगदीश्वर होते हैं, यानि जगत्सष्टा, जगत पालक और जगत्संहर्ता होते हैं ।
जैसे सृष्टि का क्रम है सृजन, पालन और संहार, उसी तरह से हर पिंड का क्रम है जैसे मानव पहले वह जन्म लेता है, फिर उसका पालन, पोषण होता है, इसके बाद उसकी मृत्यु हो जाती है|
जब इन तीनों की साधना उपासना की बात आती है तो क्रम उल्टा हो जाता है, उसका भी एक विज्ञान है|
सबसे पहले 'महाकाली, महालक्ष्मी, फिर महासरस्वती'
ये तीनों नाम उपासना काण्ड के ग्रन्थों में इसी क्रम से आते हैं।
यदि कोई व्यक्ति बीमार पड़ जाए तो डॉक्टर सबसे पहले बीमारी का संहार महाकाली और रुद्र के रूप में करता है| डॉक्टर बहुत सावधानी से बीमार को बचाते हुए बीमारी को जड़ से उखाड़ने की कोशिश करता है| इस तरह बीमार की बीमारी को संघार करते हुए वह मरीज को बचाकर लक्ष्मी और विष्णु रूपी पालनकर्ता का काम करता है| आखिर में टॉनिक, न्यूट्रिशन और सप्लीमेंट देकर वो उस मरीज को नई जिंदगी देते हुए उसके शरीर के नवसृजन का ब्रह्म रुपी कार्य करता है|
गुरु सबसे पहले अपने शिष्य के अज्ञान का संघार करता है तब वह शिव और महाकाली के रूप में होता है| वही गुरु शिष्य के आत्मज्ञान को संरक्षित रखते हुए उसे बढ़ाने की कोशिश करता है तब वह विष्णु और लक्ष्मी के रूप में होता है और जब वह शिष्य को ज्ञान की नई बातें सिखाता है उसके नए स्वरूप से परिचय कराता है तो वह ब्रह्मा और सरस्वती का काम करता है|
सनातन धर्म कहता है कि साधना और उपासना का क्रम भी यही रहना चाहिए| सबसे पहले हम बुरी चीजों का त्याग करें,बुरी आदतों और दुर्गुणों का संहार करें |
अपने अंदर की अच्छाइयों, स्वस्थ्य और ज्ञान की रक्षा करते हुए उनका पालन पोषण करें और फिर नए ज्ञान का सृजन करें| अपनी आत्मशक्ति को पहचान कर उसे जागृत करें|