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क्या शिवलिंग पुरुष जननांग का प्रतीक है? P ATUL VINOD

शिव लिंग को जननांग मानने पर इतना बबाल क्यों? P ATUL VINOD
क्या शिवलिंग पुरुष जननांग का प्रतीक है?
क्या शिव लिंग ब्रम्हांड का प्रतीक है?
क्या शिवलिंग ही हिरन्यगर्भ है?
क्या शिवलिंग और शंकर की प्रतिमा अलग अलग देवता की मूर्ति हैं?
शिव शंकर और भोलेनाथ एक हैं या अलग अलग?

शिव को पुरुष जननांग कहने पर कुछ हिंदू विद्वानों को बढ़ा एतराज है| ये विद्वान शिवलिंग को  जननांग कहने पर न सिर्फ बौखला जाते हैं बल्कि इसके विरोध में लंबा चौड़ा भाषण देने लगते हैं या लेख लिख डालते हैं|  ये बात सौ फ़ीसदी प्रमाणित है  कि शिव लिंग किसी भी रूप में जननांग का प्रतीक नहीं है|  लेकिन इसे  जननांग का प्रतीक मानने पर भी  इतना क्रोधित होने की आवश्यकता नहीं है|  दोनों ही बातों पर आगे विस्तार से चर्चा करेंगे|

शिव की आराधना हम लिंग के रूप में करते हैं….  लोग समझते हैं कि लिंग यानी पुरुष जननांग…  लेकिन ऐसा नहीं है …ना तो “शिव”  शंकर,भोलेनाथ या महादेव जैसे कोई शरीर धारी देवता या अवतार हैं न ही लिंग उनका जननांग|

जब शिव मानव शरीर धारी अवतार ही नहीं तो फिर लिंग उनका जननांग कैसे हो सकता है? शिव को शंकर मान लेने के कारण ही यह भ्रम पैदा हुआ है| जबकि शंकर शिव के तीन स्वरुप ब्रम्हा, विष्णु के समान एक और देव स्वरुप हैं|

दरअसल भारत में शिव के नाम पर अनेक दर्शन प्रचलित हैं|  वैदिक दर्शन, अवैदिक दर्शन , शैव दर्शन, पाशुपत दर्शन, शिवाद्वेत दर्शन और तन्त्र दर्शन… इन सभी में शिव और उनके अवतारों को लेकर कुछ मिश्रित तो कुछ  विपरीत बातें कहीं गई हैं|

शिव की पूजा का इतिहास बहुत पुराना है मोहनजोदड़ो से खुदाई के दौरान मिली शिव की मूर्तियां बताती है कि सिंधु घाटी सभ्यता में भी शिव की पूजा की जाती थी।  यहां मिली भगवान पशुपति की ज्ञान और खास तरह की योग मुद्रा बताती है कि शिव ही आदियोगी हैं|  दरअसल मनुष्य जाति को शिव हमेशा ही योग की सिद्ध अवस्था में मार्गदर्शन देते हैं|

जिसकी चेतना जागृत है वो सहज रूप से इस बात को समझ सकता है कि आदियोगी शिव की शक्ति कुंडलिनी के रूप में क्रियाशील  होकर  योग, आसन, बंध, मुद्रा और प्राणायाम कराती हैं| योग की गहराई में विभिन्न यौगिक पोज़ अपने आप बनने लगते हैं| इस अवस्था में योग स्वयं ही घटित होने लगता है|  अष्टांग योग भी तब करने का विषय नहीं हो जाता|  अपने आप अष्टांग योग घटित होने लगता है|

शिवतत्व की इसी शक्ति और शिव रुपी अनुभूति को योगियों ने पार्वती-महेश्वर-योग के नाम से अलग अलग ग्रंथों के रूप में  लिपिबद्ध किया| योग वही है बस शब्दों का हेरफेर है और उसमे लेखक कुछ अपनी व्याख्या भी जोड़ देता है| मूल में पार्वती और महेश शंकर महादेव या महेश्वर का नाम होता है|

ये  शिव और कोई नहीं यह ऋग्वेद में वर्णित वही हिरण्यगर्भ हैं जिनसे  समूची सृष्टि  पैदा हुई|
हिरण्यगर्भ अंडाकार है|   विज्ञान की बिगबैंग थ्योरी भी इस सृष्टि की उत्पत्ति एक अंडाकार पिंड से मानती है|
यही अंडाकार हिरण्यगर्भ आकृति को उपनिषदों में परम ज्योति कहलाती है|
इसी आकृति  को हम लोग शिवलिंग के रूप में पूछते हैं|

हिरण्यगर्भ को  ऋग्वेद में सृष्टि का आरंभिक स्रोत माना गया|  योग में हिरण्यगर्भ को आदियोगी कहा गया| इसका  शाब्दिक अर्थ  प्रदीप्त गर्भ, अंडा या उत्पत्ति स्थान होता है|
हिरण्यगर्भ: समवर्तताग्रे भूतस्य जात: पतिरेक आसीत्।
स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम॥ --- सूक्त ऋग्वेद -10-121-1
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इस श्लोक के मुताबिक,  हिरण्यगर्भ यानी परम शिव वो सत्ता है जिससे सूर्य जैसे सभी तेजस्वी ग्रह, नक्षत्र, तारे और गैलेक्सी ब्रम्हांड आदि का जन्म हुआ| हिरण्यगर्भ  से ही सारी सृष्टि उत्पन्न होती है और इसी में समा जाती है| 

खास बात ये है कि जिस पिंड से सभी तत्वों की उत्पत्ति होती है वही पिंड सभी तत्वों में मौजूद होता है| जैसे सोने से हजार प्रकार के आभूषण बनाया जाए लेकिन आभूषण उस सोने से अलग नहीं हो सकते| उन सभी आभूषणों में सोना होता ही होता है| ऐसे ही परम शिव से हम सब बने हैं लेकिन हम सबके अंदर वो परम शिव मौजूद हैं ही|  हम उनसे अलग नहीं हैं| 

अब आप समझ गए होंगे कि शिवलिंग और कुछ नहीं बल्कि हिरण्यगर्भ है| एक अंडाकार आकृति जिससे सारी सृष्टि का सृजन हुआ| 

पुराणों में शिव के अनेक अवतारों के वर्णन है साथ ही  महेश, महेश्वर, शंकर, भोलेनाथ, महादेव, शिव शंकर  आदि को भी शिव बताया गया है|  इसमें कोई आपत्ति नहीं है क्योंकि शिव से  पैदा हुआ प्रत्येक तत्व, पिंड, जीव या व्यक्ति तात्विक रूप से शिव ही है| ऐसे में उनके अवतार तो और अधिक कलाओं के साथ उनके श्रेष्ठ अवतार हैं|

शिव को सदाशिव और परमशिव भी कहा जाता है क्योंकि शिव से ही इच्छा, ज्ञान, क्रिया रूपी ब्रह्मा, विष्णु, महेश पैदा हुए|

हिंदी भाषा में  लिंग  का मतलब जीवित प्रजाति की शारीरिक प्रकृति है| किसी शरीर की पुरुष, स्त्री या तटस्थ या उभय प्रकृति का निर्धारण|

चूंकि सारे  तत्व उस लिंग से ही पैदा हुए इसलिए  उनकी प्रकृति पुरुष, स्त्री या उभय होते हुए भी उनके पीछे लिंग लगाया जाता है|

हम नाम से भले ही कुछ भी हो लेकिन प्रकृति से हम या तो पुरुष लिंग कहलाएंगे स्त्रीलिंग या  उभयलिंग …  इस हिसाब से जो लिंग शब्द है वह शिव तत्व का  प्रतिनिधित्व करता है|

सबके अंदर वह जेंडर (लिंग) मौजूद है अंतर उसकी प्रकृति में है वह पुरुष प्रकृति का है महिला प्रकृति का है या  ट्रांस  प्रकृति का है|

विद्वानों को शिवलिंग शब्द को शिव के जननांग से जोड़ने पर ऐतराज है|  निश्चित ही एक विराट शब्द को क्षुद्र  बना देना किसी को रास नहीं आएगा| लेकिन शिवलिंग को जननांग बताने पर एतराज करने वाले अपने तर्कों में कुछ इस तरह की भाषा शैली का प्रयोग करते हैं जिससे ये प्रतीत होता है कि जननांग घृणित उपेक्षित और वर्जित श्रेणी में आते हैं|

जिन जननांगों को हम घृणा की दृष्टि से देखते हैं वो ईश्वरीय दृष्टि में किसी भी तरह से  निकृष्ट नहीं है| मानव सहित प्रत्येक जीव इन्हीं जननांगों के माध्यम से  पैदा होता है|  यही जननांग सृष्टि के सृजन का आधार हैं|  जननांग के ठीक पीछे कुंड है जहां पर ईश्वरीय, दैवीय शक्ति कुंडलिनी का निवास है|  जननांगों के ठीक पीछे मूलाधार चक्र है| 

जिन्हें  हम शरीर करने का निकास द्वार मानकर घ्रणित समझते हैं| क्या आपने सोचा है कि वही श्रजन का आधार क्यूं हैं?

जिस पुरुष जननांग से मूत्र निकलता है उसी से ओज और तेज का प्रतीक शुक्र भी निकलता है|
जिस स्त्री जननांग से अपशिष्ट निकलता है उसी मार्ग से बच्चे का जन्म भी होता है| 
स्त्री जननांग के ठीक पीछे गर्भाशय स्थित है यहीं पर  एक मानव के जीवन की  बुनियाद रखी जाती है|
जहाँ मल का संचय होता है उसे योग में कुंड कहा जाता है इसे विज्ञान में रेक्टम कहा जाता है|\
outer universe to inner universe: Sacrum - the holy bone
कुंडल..  कुंडी... बाउल … रेक्टम जो एक अंडाकार आकृति है इसी को कुण्डलिनी कहते हैं यही कुंड मानव की शक्ति का स्रोत है| 

Kundal (Kundi= Bowl = Rectum) + Inimai (Wellbeing, Happiness, Pleasure) = Kundalinimai = Kundalini which means Pleasure out of Bowl

भले ही शिवलिंग का  पुरुष जननांग से कोई संबंध नहीं फिर भी लिंग और योनि दोनों ही  भारत में पूज्य हैं इसके पीछे का विज्ञान आपको समझ आ गया होगा| 

इसलिए भारत में काम को  एक विशेष प्रक्रिया माना गया है  और उसके संतुलित,  संयमित और मर्यादित प्रयोग की वकालत की गई है|  भारत में शारीरिक संबंधों में अनेक तरह के  प्रतिबंध लगाने का मकसद भी यही है कि व्यक्ति उन्मुक्त होकर अपने सबसे महत्वपूर्ण केंद्रों को  गलती से भी किसी  नकारात्मक ऊर्जा वाले व्यक्ति के संपर्क में ना ले आए|  क्योंकि इस तरह के संबंध से  सात्विक व्यक्ति की ऊर्जा  तामसिक व्यक्ति में पहुंच जाती है और तामसिक व्यक्ति की ऊर्जा सात्विक व्यक्ति में पहुंच आती है|  गलत व्यक्ति से बनाया गया काम संबंध आपकी जन्म जन्मान्तर की संचित ऊर्जा का  क्षय कर सकता है| योगी और साधू की तपस्या का फल सम्बन्धित व्यक्ति में हस्तांतरित हो सकता है|
How To Move Your Kundalini Energy? - Big Picture Questions
लिंग यानि शिव तत्व

पुरुष लिंग यानि वर्तमान शरीर की प्रकृति पुरुष, और मूल प्रकृति लिंग या शिव तत्व
स्त्रीलिंग यानि वर्तमान शरीर  की प्रकृति FEMALE, और मूल प्रकृति लिंग या शिव तत्व
नपुंसकलिंग वर्तमान शरीर  की प्रकृति TRANS= उभय, और मूल प्रकृति लिंग या शिव तत्व
लिंग यदि पुरुष जननांग होता तो उसे स्त्री या उभय के साथ नही जोड़ा जाता|

लिंग शब्द के यूं तो अनेक अर्थ होंगे लेकिन उसके मूल में क्या है आप समझ गए होंगे|

इसी तरह योनी शब्द प्रजाति(स्पीसीज) से सम्बन्धित है जैसे इस दुनिया में ८४ लाख योनियाँ हैं|