ईश्वर का खुलासा ...दिए जवाब क्यों खत्म नहीं होता कोरोना? क्या भगवान् खुद करेंगे कोरोना का संहार?
P अतुल विनोद
दरअसल उस भक्त के अंदर कोरोना के प्रति डर पैदा हो गया| जहां डर है वहां परमात्मा का वास नहीं हो सकता| ह्रदय में ईश्वर के प्रति संदेह पैदा हो गया| भक्ति डगमगा गई| भगवान अदृश्य हो गए| जहाँ भगवान आकर बैठते थे वो जगह डर रूपी दानव ने ली|
डर और भय ने उस भक्त के वाइब्रेशन को कमजोर कर दिया| मन के जो सिग्नल्स परमात्मलोक तक पहुंचते थे, वहां तक नहीं पहुंच पा रहे थे|
सिग्नल स्ट्रैंथ कमजोर पड़ चुकी थी| बार-बार पुकारने के बाद भी परमात्मा सामने नहीं आए| भक्त पूरी तरह कोरोना में उलझ गया|
दिन रात कोरोना की बातें सुनता-देखता और पढ़ता| कोविड-19 पूरी दुनिया के लिए एक अबूझ पहेली है| उसके लिए भी कोरोना एक रहस्यमय दानव बन गया|
वो सोचने लगा यह विषाणु मायावी और शक्तिशाली है| इसके आते ही ईश्वर भी रफूचक्कर हो गए|
मनुष्य नाम की प्रजाति इस वायरस से बेहद डरी हुई दिखाई दे रही थी. लिहाजा, वो खुद भी डर गया था | आखिर एटमी हथियार रखने वाला बड़ा से बड़ा देश भी इस वायरस के आगे फेल दिखाई दे रहा था|
वायरस से बचने के तौर-तरीके इम्युनिटी बढ़ाने और इसके साथ जीने को लेकर इंटरनेट सामग्रियों को पढने के बाद भी चैन नहीं आ रहा था|
100 में से 95 लोग ठीक हो कर आ रहे थे| लेकिन 5 लोग नहीं आ पाते. वो डर रहा था कि कहीं वो उन 5 लोगों में शामिल न हो जाए जो कोविड को मात नहीं दे सके|
धीरे-धीरे समय निकलता गया. उसका डर कुछ कम हुआ| उसने अपनी जीवनशैली ठीक की| खुशी के स्तर को बढ़ाया| सोचा एक दिन मरना तो है ही, फिर क्यों डर-डर के मरुँ? जी भर जियूं और प्रभु की भक्ति करूं| अनुशासन में रहूं, फिर जो होगा सो देखा जाएगा|
धीरे-धीरे उसके अंदर का वाइब्रेशन ठीक होने लगा| सिग्नल स्ट्रैंथ बढ़ी तो परमात्मा से फिर संपर्क हो गया|
भक्त ने पूछा, प्रभु आप कहां चले गए थे? क्या आप भी कोरोना से डरकर अपने घर में छिप गए थे? हमारी तरह कहीं आप भी तो लॉकडाउन नहीं हो गए?
ईश्वर बोले, नहीं ऐसा नहीं है| मैं तो वहीं था जहां पहले तुमसे मिला करता था| मैं कभी कहीं नहीं जाता| बस तुम्हारे और मेरे बीच डर की एक दीवार खड़ी हो गई थी| मेरे होते हुए भी तुम्हारे सिग्नल्स मुझे पकड़ नहीं पा रहे थे|
भक्त बोला प्रभु आप तो सब जानते हैं कोविड-19 से पूरी दुनिया परेशान है| सब चाहते हैं कुछ भी हो यह वायरस खत्म हो जाए|
ईश्वर ने कहा कि क्या इस वायरस को खत्म कर देने से क्या लोग सुधर जाएंगे? क्या ये देश हथियारों का जखीरा नष्ट कर देंगे? आपस में लड़ना बंद कर देंगे? क्या दुनिया के सभी मानव प्रकृति के नियमों के अनुसार जीना शुरु कर देंगे? इस बात की क्या गारंटी है कि मनुष्य कोरोना वायरस ख़त्म होते ही पहले जैसा नहीं बन जाएगा?
भक्त मौन था .. उसे मालूम था लोग नहीं सुधरेंगे
भगवन बोले ... तो फिर मैं मनुष्य के लिए किसी वायरस को क्यों खत्म करूं?
मैं तो जीवन का समर्थक हूं, जहां जीवन है वहां मैं हूं, वायरस में भी तो मैं ही हूं. मेरे लिए क्या वायरस? क्या इंसान? क्या जानवर? क्या कीट पतंगे?
मैं छोटे या बड़े में भेद कैसे कर सकता हूँ? विषाणु भी मेरी ही प्रकृति का हिस्सा है|
तुम ये कैसे उम्मीद कर सकते हो कि मैं विषाणु को पूरी तरह खत्म कर दूं ? और क्यों?
तुम इंसान मेरे लिए क्या खास कर रहे हो? मेरी व्यवस्था बनाने की वजह बिगाड़ ही रहे हो| जो तुम्हे ज्यादा फेबर करूँ?
परमात्मा तो सब का रक्षक होता है| वो तो शेरों की भी रक्षा करता है, पक्षियों और जहरीले सांपों की भी|
कोविड-19 से तुम इंसानों को खतरा हो सकता है, मुझे नहीं| मानव COVID को मारने पर आमादा हैं, लेकिन मैं नहीं|
कोविड-19 हमेशा से था. अपने अंदर आने के लिए आप मानवों ने उसे न्योता दिया|
जानवरों को काट-काट कर खाने को किसने कहा था?
शेर यदि बस्ती में आता है तो इंसानों को खतरा नजर आता है| लेकिन मैं उसे आने से नहीं रोकूंगा|
आपकी प्रार्थनायें काम नहीं आएंगी, क्योंकि इंसानों को और जानवरों को मैंने अलग-अलग स्थान दिए हैं| आपने उनके स्थान पर अतिक्रमण किया तो वो आपकी टेरेटरी में आएंगे ही|
वायरस के रहने का स्थान जानवरों का शरीर है. आपने जानवरों के शरीर पर अतिक्रमण किया तो वो आपके शरीर में आएंगे ही|
वो तो शुक्र मनाओ कि तुम मानवों पर कोई प्राकृतिक आपदा नहीं आई| कोरोना तो तुम्हें सोचने-समझने और बचने का समय भी देता है, आपदाएं नही देतीं| सोचो तुम्हारे देश आपस में लड़ने लगेंगे तब क्या होगा? एक बम से उतने लोग मर जायेंगे जितने कोरोना १०० साल में नही मार पायेगा|
माफ करना, मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता|
लेकिन भगवन…. भक्त बोलता रह गया और भगवान अंतर्ध्यान हो गए|
भक्त सोचने लगा, सच ही तो कह रहे हैं भगवान. बेहतर यह है कि हम खुद मूल्यांकन करें, ईश्वर के संदेश को समझें| अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है. अनुशासन, प्राकृतिक जीवन शैली और ईश्वर से नजदीकी ही हमें बेहतर जिंदगी जीने दे सकती है|
इसके बावजूद इस दानव की चपेट में आ गए तो संभावना है कि हम 100 में से उन 95-97 लोगों में से होंगे जो इसे मात दे देते हैं|
इतना सब कुछ करने के बाद भी कोई सरवाइव न कर सके तो फिर तो यही कहा जाएगा कि उसका समय आ गया था और समय से कोई लड़ भी नहीं पाया|
वो और गहरे में गया| सोच रहा था कि कोविड-19 ने कुछ सिखाया भी है कि नहीं ?
कोविड-19 ने लॉकडाउन करा कर प्रकृति के स्वच्छ और सुंदर नजारे से भी हमें रूबरू कराया है|
इसने हमें जिंदगी के प्रति नजरिए को चेंज करने का सबक भी दिया है| बाहर की दुनिया से ज्यादा अंदर की दुनिया पर ध्यान देने को भी कहा है|
इतना ही नहीं लोगों को पहली बार खुद को जानने का, अपने परिवार के साथ समय बिताने का मौका इसी कोविड-19 से मिला है|
कम से कम कुछ बातों के लिए तो हम कोविड-19 धन्यवाद दे ही सकते हैं|
विज्ञान भी तो ये बात मानने को मजबूर हो गया कि हम प्रकृति के आगे अभी बच्चे हैं|
उसने सोचा, अब प्रकृति के सामने नतमस्तक हो जाओ, ज्यादा शिकवे-शिकायतें करने की जगह समर्पण कर दो| इस महामारी ने हमें परस्पर निर्भरता के संसार से रूबरू कराया है| वक्त हमें छोटे बड़े में भेद करना भुला देता है|
दादाओं की दादागिरी खत्म हो जाती है|
ईश्वर की व्यवस्था में सबका स्थान है| इसलिए मिलकर चलो, साझीदार बन कर चलो| जीव जंतुओं को भी जीने तो स्वाद और व्यवस्था के लिए किसी का घर और शरीर मत चट करो|
