विकास दुबे..राज-नीति औऱ अपराध ...कैसे मुक्त होंगे इस गठजोड़ से ?
राजनीति नैतिकता से चलेगी या विकास दुबे जैसे कुख्यात अपराधियों से?
विकास दुबे का अंत हो गया| होना ही था| पुलिस से जो पंगा लिया था| बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाती | पकड़ा जाए या सरेंडर करे| उसकी मौजूदगी राजनेताओं के चेहरे बेनकाब करने लगी थी| उसका एक दिन भी जिंदा रहना राजनीति के हक में नहीं था|
सच कह रही थी विकास की मां मेरे बेटे को क्यों मारते हो मारो उन्हें जिन्होंने विकास को गुंडा मवाली बनाया|
देश में राजनीति ने शिष्टता का नकाब ओढ़ लिया है| लेकिन इन चरित्रवान नेताओं के पीछे मौजूद है विकास दुबे जैसे दुर्दांत अपराधी|
इस देश में राजनेताओं की एक बड़ी जमात विध्वंस, शोषण और हिंसा की बुनियाद पर खड़ी हुई है|
उत्तर प्रदेश इस मामले में सबसे आगे है| राजनीति में नीति कहां है?
क्या नीति और ईमानदारी के दम पर चलने वाली राजनीति के पहलू में विकास दुबे जैसे गिरोह पनप सकते थे?
राजनीति की गला घोट प्रतियोगिता में क्या नीति और क्या अनीति? क्या हिंसा और क्या अहिंसा?
गली मोहल्ले के गुंडे मवालियों की हिंसा नजर आती है| लेकिन राजनीति के शातिर बदमाश दिखाई नहीं पड़ते| इनके हाथ नहीं रंगते और ये खून कर देते हैं|
विकास दुबे जैसे न जाने कितने मोहरे साफ कर दिए जाते हैं लेकिन इनके पीछे छिपे असली चेहरे सफेद कपड़े पहन कर जनसेवक बनने का ढोंग, इतनी खूबसूरती से करते हैं, कि नजर आते हुए नजर नहीं आते| भोली-भाली जनता जेल में बैठे हुए ऐसे चेहरों को जिता कर लोकतंत्र के मंदिर तक पहुंचा देती है|
जनता का भोलापन भी आश्चर्यजनक है| रसूख, दम, ताकत, पैसा और भीड़ के साथ चलने वाले चेहरे उन्हें आकर्षित करते हैं| ऐसे लोगों के 100 खून भी माफ करके वो इन्हें सर आँखों पर बैठाती है|
राजनीति में अपराधियों का सिक्का चला है तो हमारी बदौलत| हम भी कम गुनहगार नहीं|
शोषण, धोखे और प्रवंचना की बुनियाद से पनपने वाले राजनीति के चेहरे सुचिता के बारे में सोचेंगे भी कल्पना भी कैसे की जा सकती है?
विकास दुबे की माँ सरला देवी कहती है कि उनका बेटा 5 साल BJP, 15 साल BSP और 5 साल SP में रहा। अगर वो इतना ही बड़ा अपराधी था तो राजनीतिक दलों ने तत्कालीन मुख्य मंत्रियों की मौजूदगी में उसे अपने-अपने दलों में शामिल क्यों किया?
विकास की मां का दर्द ये है कि यदि उनका बेटा राजनीति से दूर रहता तो शायद शांति से अपनी जिंदगी जी रहा होता|
राजनीति ऐसी ही है| गुंडों को बढ़ावा देती है उनका इस्तेमाल करती है और जब वो उसके हित को प्रभावित करता है तो सफाया भी कर देती है|
राजनीति खेल है, इस खेल में अपराधी मोहरा हैं, जनता इस चक्की में पिसने वाली घुन| हैरत की बात ये है कि इस सदी में भी अपराधियों वाली राजनीति का दौर चल रहा है|
वक्त बदलने के साथ राजा और राजनेता चले जाने थे|
अब शासक की जरूरत नहीं है सेवक की जरूरत है| सेवक भी ऐसा जो विशेषज्ञ हो, बुद्धिमान हो, योग्य हो, क्षमता वान हो|देश में ऐसी राजनीति की शुरुआत हुई है लेकिन अब राजनीति में अपराधियों का 50% बोलबाला भी मंजूर नहीं| समय थोडा थोडा नहीं पूरा ही बदल जाना चाहिये|
राजनीति अपराधियों से कब मुक्त होगी, राजनीति और अपराध का गठबंधन और कितना चलेगा| हम परिपक्व होने में और कितना समय लेंगे आज़ादी के वक्त पैदा हुए लोग अब बहुत बूढ़े हो गए हैं|
हमने राजनेताओं को जरूरत से ज्यादा तवज्जो दे रखी है| अपने फायदे के लिए उनके आसपास भीड़ लगा लेते हैं| उन्हें हर तरह का सम्मान प्रतिष्ठा और पद देने को तैयार रहते हैं| इसी वजह से “चमक-दमक” चाहने वाले गुंडे मवाली लुटेरे राजनीति की तरफ आकर्षित होते हैं| अच्छे लोग पीछे हट जाते हैं,अपराधी सफेद कपड़े पहन कर हमारे नेता बन जाते हैं|
अच्छी शुरुआत हुई जब मंत्रियों के वाहनों से लाल बत्तियां हटाई गई| लेकिन इन्होंने अपनी पहचान बताने के नए-नए तरीके खोज लिए| नेम प्लेट में पद, गाड़ी के ऊपर हूटर और अपने पैसे से खरीदी गई मालाओं का ढेर लालबत्ती के विकल्प बन गये|
राजनीतिक लोग बेहतरीन कलाकार होते हैं| असल में ये ही अपराधियों के गिरोह का सरगना होते हैं है| यही बेईमानों के गुट का सरदार है| बंगले पर भोली भाली जनता दरवाजे के बाहर है तो अंदर झांकने पर चतुर सुजान माफिया, मसलमैन और मदारी,खिलाडी,गुंडे बदमाश बैठे हैं|
बात फिर विकास दुबे की, शातिर अपराधी विकास के साथ पांच और बदमाशों का एनकाउंटर कर दिया गया| ये सभी अब्बल दर्जे के अपराधी अनेकों केस दर्ज होने के बावजूद भी खुलेआम लूट, हिंसा और मर्डर करते रहे| मरे तब जब पुलिस पर हाथ डाला| गलती कर दी आम जनता को ही मसलते रहते तो कुछ नहीं होता|
अखिलेश यादव कहते हैं कि विकास की गाड़ी नहीं पलटी सरकार पलटने से बच गई, अच्छा होता अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी में ऐसे गुंडों की मौजूदगी, और उनको मिलने वाले पार्टी के संरक्षण पर भी कुछ कहते|
प्रियंका गांधी कहती है अपराधी को संरक्षण देने वाले लोगों का क्या? अपराधियों को संरक्षण देने का काम क्या प्रियंका गांधी की पार्टी ने नहीं किया ?
उमा भारती ट्वीट करके- कुख्यात विकास दुबे को राक्षस बता रही हैं| क्या उमा भारती बताएंगी कि जिस बीजेपी से हो ताल्लुक रखती है क्या वो अपराधियों की छाया से मुक्त है?
पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह आरोप लगाते हैं कई राजों पर पर्दा डालने एनकाउंटर किया गया लेकिन उनके राज में मध्यप्रदेश में डाकू लुटेरे और अपराधियों की क्या हैसियत थी वो बताएंगे?
राजनीति का अपराधीकरण और अपराधियों का राजनीतिकरण करने के मामले में उत्तर प्रदेश आईकौन है|
दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के मुताबिक यहां 403 माननीय विधायकों में से 143 पर आपराधिक मामले हैं , बीजेपी के 37% विधायकों का आपराधिक रिकॉर्ड हैं, बीजेपी के ही 61 में से 35 लोकसभा सांसदों पर केस हैं| यूपी में पांच ऐसे बाहुबली विधायक हैं जिन पर हत्या के मामले दर्ज है लेकिन ये अपनी दबंगई से जेल में रहकर भी चुनाव जीत जाते हैं|
इन्हें निरपराध मानकर इन्हें वोट देने वाली जनता को क्या कहेंगे? दरअसल हमने ही अपने छोटे हितों को साधने के चलते बड़े समझौते कर लिए हैं|
किसी ने सोचा है कि राजनेताओं के पास इतनी जमीन कैसे आती हैं? रातो-रात स्कूटर पर चलने वाला नेता बड़ी-बड़ी गाड़ियों का मालिक कैसे बन जाता है?
ये दूसरी तरह के लुटेरे हैं?
पद पैसा और प्रतिष्ठा की अंधी महत्वाकांक्षा व्यक्ति को राजनीति के दरवाजे तक ले आती है| राजनीति सेवा का नहीं इनकी महत्वाकांक्षा पूरी होने का द्वार बन जाता है| अपराध पर पर्दा डल जाता है, लूट का सोफिस्टिकेटेड जरिया मिल जाता है|
अपराधी से नेता बना राजनेता TI की ट्रांसफर पोस्टिंग कराता है| उनके कहने पर लोग छोड़े और पकड़े जाते हैं|
ज्यादातर राजनीतिकों का काम है लोगों को धर्म, जात-पात, ऊंच-नीच, गरीबी अमीरी के नाम पर लड़ाते रहो और खुद मकान, दुकान और खदान खड़े करते रहो|
विकास दुबे अपराध करता रहा, राजनीति उसे मुकाम देती रही, सियासत की जमीन पर दमखम के साथ गाड़ी बंगले की फसलें लहलहाती रहीं| अपराधियों का कुनबा बढ़ता रहा, हौसले इतने बुलंद हो गए 8,8 पुलिस कर्मियों को गोलियों से भून डाला| इसके 5 दिन में 5 साथी मारे जा चुके हैं 13 अभी फरार है| न जाने इसकी टीम में और कितने डाकू, लुटेरे और गैंगस्टर हैं |
विकास का दो-चार दिन और जिंदा रहना घातक था| कितने चेहरे बेनकाब होते?
जनता को तो ताली बजाने ही थी| फिल्मों में भी गुंडे को पिटते देख उसे खुशी होती है, ये तो वास्तविक सीन था, जिसमें गुंडा भाग रहा था पुलिस गोलियां चला कर उसे मार देती है|
विकास की फिल्म भले ही खत्म हो जाए लेकिन राजनीति और अपराधियों के गठजोड़ की पिक्चर अभी बाकी है|

