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तप क्या है? तप से क्या फायदा होता है?

तप क्या है? तप से क्या फायदा होता है? Perseverance(TAPAS) ....Tapas means more than endurance 

P ATUL VINOD



तप एक  ऐसा शब्द है जिसकी चर्चा भारतीय संस्कृति में बार-बार होती है|  धर्म, अध्यात्म योग में तप का खास महत्व बताया जाता है|भारतीय धर्म दर्शन कहता है कि तप से कल्मस दूर होते हैं| हमारे अंदर की बुराइयां, नकारात्मकता, विकार ही “कल्मस” हैं|अब सवाल उठता है कि तप है क्या?हमारे मन को  सही दिशा देने का जो रास्ता है उसे ही तप कहा जाता है|

मन को सही दिशा देने के लिए तकलीफ में आना होता है|मन सुविधा चाहता है,  मन पसंदीदा चीजें चाहता है,  मन ऐसे काम करना चाहता है जिसमें उसकी रूचि हो|सब कुछ मन की रूचि के अनुसार तो नहीं चल सकता|  इसलिए मन की इच्छा के खिलाफ भी वो काम करना जो सही हो उसे तप  कहते हैं|ऐसे काम जिसमें कोई फायदा ना हो,  लेकिन जनहित में हो, उसे मन मारकर करना भी तप  है|हमारा शरीर का सुख चाहता है|  

शरीर को जितना आराम दिया जाए वो उतना ही जड़ हो जाता है| ज्यादा आराम शरीर में बीमारियां पैदा करता है|शरीर को मजबूत और स्वस्थ रखने के लिए उसके सुख के खिलाफ परिश्रम करना पड़ता है| ये परिश्रम भी एक तरह का तप है|धर्म के पालन के लिए तकलीफ सहने,  कुछ  पसंदीदा चीजों से दूर रहने और नापसंद  बातों को अपनाने का नाम तप है|इससे पहले हमने संतोष (सेटिस्फेक्शन) की बात की थी,  जब संतोष होता है तभी तप  किया जा सकता है|  तप  शब्द से ताप शब्द भी निकलता  है| मिट्टी का घड़ा किसी काम का नहीं जब तक उसे तपाया ना जाए|

इसी तरह से हमें अपने आपको  बेहतर करने के लिए खुद को तप के जरिए तपाना  पड़ता है|तप से हमारे अंदर सहनशीलता (Endurance) पैदा होती है|  अच्छे और बुरे में भी हम समान रूप से बर्ताव करते हैं|  कठिनाइयों में बहुत ज्यादा विचलित नहीं होते| तप से  जीवन चमकदार बनता है|अपनी बुराइयों को सहना, आलोचनाओं को सहज ढंग से लेना, कड़वी बात को भी झेल जाना ये तप के अंग हैं|जब व्यक्ति साधना उपासना करता है तब भी तकलीफ आती है, उन्हें सहन करना होता है|  जब हम व्रत उपवास करते हैं तो भूख प्यास बार-बार सताती है, लेकिन थोड़ी सी कठिनाई सहकर हम अपनी भूख प्यास पर कंट्रोल हासिल कर लेते हैं|तपस्या से हमारे अंदर के सभी  टॉक्सिंस डिस्ट्रॉय हो जाते हैं|तपस्या आग है सोने की तरह ये हमें प्योर करती है|

इस अग्नि से निकलकर हम कुंदन बन जाते हैं|मनपसंद चीजों से  कुछ समय की दूरी रखना|पढ़ने की इच्छा ना होने पर भी पड़ना|टेलीविजन देखने की इच्छा होने पर भी न  देखना|सुबह जल्दी उठने में आलस आने पर भी जाग जाना|बोलने की इच्छा होने पर भी चुप रहना|टहलने की इच्छा ना होने पर भी टहलना|एक्सरसाइज करने की इच्छा ना होने पर भी करना|पसंदीदा चीज बहुत ज्यादा खाने की इच्छा होने पर भी बहुत कम खाना|ये सब तप है|तप का उलटा पत होता है| 

तप  से  कल्याण होता है और पतन से …..  दुर्गतिश्रीमद्भगवद्गीता ने तप के तीन प्रकार बताए हैंशारीरिक, दूसरा वाचिक और तीसरा मानसिक तपशारीरिक तप के तहत  परिश्रम,  व्यायाम,  योगासन, सेवा आता है|वाचिक तप में वाणी पर नियंत्रण,  किसी की बुराई, चुगली,  डांट फटकार, गाली गलौच, बकबक  से बचना है|ईश्वर की दी हुई वाणी का सदुपयोग करना ही तप है| 

ऐसे बोलिए  जिससे सभी के कानों में मधुरता का रस घुल जाए,  जन का कल्याण हो,  प्राणियों में सद्भावना हो|  वाणी लड़ाने वाली ना हो वाणी धर्म का पताका फहराने वाली हो|तीसरा तप है मानसिक तपमन को अच्छी बातों में लगाना, मन की गलत डिमांड को ना मानना,  मन को काबू में करके सही दिशा में लगाना ही मानसिक तप है|  मानसिक तप  के बिना चिंता, डर, शोक और व्याकुलता पैदा होती है|तप तीन प्रकार का होता है सात्विक, राजसिक और तामसिक|सात्विक तप  कामना रहित होता है|राजसिक तप  मान , बडाई, सम्रद्धि को लेकर किया जाता है|तामस तप -- जो घमंड, अहंकार और अज्ञानता के साथ किया जाता है उसे तामस तप कहा जाता है। इस तप में लोग खुदको बेहतर साबित करने के लिए कई तरह के उलटे सीधे काम करते हैं|
 उलटे सीधे आसन करना, आग पर चलना,  खतरनाक करतब करना,  कष्ट साध्य साधनाओं का दिखावा करना ये सब तामसिक तप  है|तप करने वाला तपस्वी कहलाता है|  तपस्वी दिखाई देता है लेकिन उसका तप  अदृश्य होता है| तप अमूर्त है|वास्तविक तप परमात्मा  और सत्य की खोज है|