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क्या सीता के क्लोन को चुरा कर ले गया था रावण?

क्या सीता के क्लोन को चुरा कर ले गया था रावण? 



P अतुल विनोद -

लॉकडाउन और अनलाक के समय रामायण, महाभारत के साथ दूरदर्शन पर शक्तिमान नाम का सीरियल भी फिर से प्रसारित हो रहा है| शक्तिमान सीरियल में मैंने देखा कि एक बैज्ञानिक शक्तिमान का क्लोन बना लेता है| 

सीरियल के ज्यादातर पात्र और कहानियों में असंभव सी लगने वाली बातों और घटनाओं को  प्रस्तुत किया जाता है| इस एक सीरियल में हर दो-तीन दिन में एक नई कहानी रहस्य रोमांच बढ़ाने के लिए गढ़ी जाती है| शक्तिमान के क्लोन को भले हम कहानी माने | लेकिन विज्ञान मानव क्लोन बनाने की दिशा में काफी आगे बढ़ चुका है| 

रामायण में सीता जी की अग्नि परीक्षा के वक्त श्रीराम ये रहस्य खोलते हैं कि उन्होंने रावण के चुराने से पहले ही असली सीता को अग्नि को सौंप दिया था और उनके प्रतिबिंब को उस कुटिया में छोड़ दिया था|  

क्लोन, फोटो कॉपी और ज़ेरोक्स जैसे शब्द हाल ही में प्रचलित हुए हैं| 

हम लोग फोटोकॉपी मशीन से एक मूलप्रति की कई प्रतियां बना सकते हैं|  कलर फोटोकॉपी से तो मूल प्रति की हूबहू कॉपी बनाई जा सकती है| 

विज्ञान की सहायता से हम धरती  की मिट्टी का जिस तरह से इस्तेमाल कर रहे हैं वो आश्चर्यजनक है|

जिसे हम मिट्टी कहते हैं उसी मिट्टी से वैज्ञानिकों ने क्या नहीं बनाया? 

मिट्टी एक है लेकिन उसी मिट्टी से कार बनाई और उसी से  आधुनिक मशीनें और इलेक्ट्रॉनिक्स बन गए|

अब जरा सोचिए आपके मोबाइल में एक छोटी सी चिप लगभग 128 जीबी का डाटा स्टोर कर सकती है| 

ये मिट्टी ही तो है| मिट्टी में मौजूद तत्वों को ही खास तरह से मिलाजुला कर और प्रोसेस कर के वैज्ञानिकों ने ये चिप बनाई है और इसी तरह से नेनो चिप का भी अविष्कार हुआ है|

मनुष्य ने जिस तरह से कागज की जेरोक्स बनाना सीख लिया है शायद आगे चलकर वो इंसान  की भी  फोटोकॉपी बना सके|

अभी हम फ्रिज की सहायता से पानी को मिनटों में बर्फ में तब्दील कर लेते हैं और  हीटर से बर्फ कुछ सेकेंड में  पिघला सकते है|  ठीक इसी तरह से इलेक्ट्रॉनिक कैटल से कुछ ही सेकंड में पानी को गर्म कर भाप में बदल सकते हैं|

पुराणों में जो कहानी आती है वो बताती है कि मनुष्य मिनटों में हवा में उड़ कर एक जगह से दूसरी जगह तक पहुंच जाया करता था|  गायब हो जाता था, प्रकट हो जाता था|  यानी वो खुद को स्थूल से सूक्ष्म में,  ठोस से भाप में, और भाप से ठोस में बदलने की क्षमता रखता था|

विज्ञान इसे कल्पना मानता है लेकिन हो सकता है कि कल विज्ञान इसी कल्पना को साकार कर दे| 

अतीत में हमने जिन जिन चीजों को कपोल कल्पना  माना है, उन्हीं को हमने आगे चलकर साकार किया है|  

आखिर कल्पनाएं साकार कैसे हो जाती हैं? दरअसल जो भी आज दिखाई देता है वो पहले कल्पना में ही आया था| 

100 साल पहले जिस दूरदृष्टि को विज्ञान कोरी कल्पना कहता था आज वो दूर दृष्टि हर एक व्यक्ति के पास मौजूद है|  लगभग सभी लोग अपने एंड्रॉयड फोन के जरिए पूरी दुनिया को लाइव देख पाते हैं| 

इससे पता चलता है कि जो भी कुछ हमारी कल्पना में है या जो भी हम विचार सकते हैं वो हकीकत में बदलने की क्षमता रखता है| भले ही आज हम उसे फेंटेसी मानते हैं लेकिन विचारों में आने का मतलब ये है कि वो कहीं ना कहीं किसी न किसी आयाम में मौजूद है| 

जो भी कहीं मौजूद है वही विचार में आ सकता है| विचार और कल्पनाएं अस्तित्व से आगे नहीं जा सकती|  मनुष्य वही सोच सकता है जो भूत वर्तमान या भविष्य में मौजूद है|

निश्चित ही आज जिसे हम कल्पना मानते हैं,   वो कहीं ना कहीं मौजूद है| चाहे वो किसी और आयाम में हो, या समय के किसी दूसरे भाग में| 

हम जो भी सोचते हैं वो यूनिवर्स से पीछे ही होता है|  समय के अंदर ही होता है| हमारे सोच विचार किसी न किसी काल या आयाम से मिले संकेत हैं  |

विजिबल और इनविजिबल मैटर अलग-अलग नहीं बल्कि एक दूसरे का ही प्रतिबिंब है|  जो दिखता है वो अदृश्य हो सकता है और जो अदृश्य है वो दिखने लग जाता है|  नहीं दिखने वाले का दिखने वाले में, दिखने वाले का नहीं देखने वाले में रूपांतरण हो सकता है|

जो नहीं दिखता उसे देखने योग्य बनाने में जो तत्व भूमिका निभाता है उस तत्व को हम ब्रम्हचेतना कहते हैं, वही क्रिएटर, गॉड और गॉड पार्टिकल है|  इसी को विज्ञान इनविजिबल, ट्रांसपेरेंट या डार्क मैटर कहता है|

हमारा शरीर मैटर और  कॉन्शियसनेस से मिलकर बना है|

चेतना के साधारण स्तर पर व्यक्ति अपने आप को स्थूल रूप से परिवर्तित नहीं कर सकता| लेकिन चेतना को ब्रह्म चेतना  के स्तर पर ले जाकर( कॉन्शसनेस को यूनिवर्सल कॉन्शसनेस के लेवल पर ले जाकर) शरीर को किसी भी रूप में परिवर्तित किया जा सकता है|  

शक्तिशाली चेतना दिखने वाले शरीर को अदृश्य कर सकती है और कभी भी फिर साकार कर सकती है|

इसी तरह से कोई अन्य व्यक्ति जिसकी चेतना ब्रह्म चेतना के समकक्ष है वो किसी व्यक्ति को अदृश्य भी कर सकता है और  उसका प्रतिबिंब भी बना सकता है| 

जब INDIVIDUAL कॉन्शसनेस यूनिवर्सल कॉन्शसनेस से कनेक्ट हो जाती है| तो वो अपने या किसी अन्य को किसी भी रूप में भी परिवर्तित कर सकती  है, आंतरिक स्तर पर भी रूपांतरण कर सकती है|  उच्च स्तरीय चेतना सामान्य चेतना को उठा भी सकती है और गिरा भी सकती है|

श्री राम ने अपनी चेतना के इसी ब्रह्म स्वरूप का प्रयोग करके सीता का प्रतिबिंब छोड़ दिया और असली सीता को अग्नि को सौंप दिया|  विज्ञान राम कथा में वर्णित इस प्रसंग को माने या ना माने लेकिन यदि वो इस विचार को भी पकड़ ले, और इसके आधार पर अनुसंधान करने लग जाए, तो एक न एक दिन वो ठीक इसी तरह से मनुष्य का प्रतिबिंब तैयार कर सकता है और उसे प्रस्तुत भी कर सकता है इस दिशा में कुछ प्रयास हुआ भी है|

ये चेतना ही है जो परमाणु को जोड़कर नए आकार का निर्माण करती है| ये चेतना ही परमाणु को तोड़कर स्वरूप प्रदान करती है और ये चेतना ही परमाणुओं  की उर्जा को सुरक्षित रखती है|

वास्तव में  सीता के मूल स्वरूप को अग्नि को सौंपने का तात्पर्य  उस अग्नि रूपी ब्रह्म चेतना से है जो सबको अपने अंदर समाहित भी कर लेती है और प्रकट भी कर देती है|

इसी ब्रह्म चेतना के सहयोग से श्री राम ने सीता का प्रतिबिंब तैयार कर लिया|  उसके लिए किसी खास प्रक्रिया की ज़रूरत नहीं है| विकसित चेतना सिर्फ संकल्प से परमाणुओं को इकट्ठा कर मनोनुकूल प्रतिबिंब तैयार कर सकती है|