- P ATUL VINOD
जीवन में साफ-सफाई का बहुत महत्व है| स्वच्छता अभियान बाहर ही नहीं अंदर भी चलना चाहिए| जब हम इनर क्लीनिंग की बात करते हैं तब हम माइंड, ब्रेन एंड सोल की बात करते हैं| शरीर को तो हम नहा धो कर साफ कर सकते हैं लेकिन अंदर की शुद्धि थोड़ी कठिन है|
योग में आंतरिक शुद्धि के लिए 5 नियम बताए गए हैं पवित्रता (शौच ) , संतोष , तप , स्वाध्याय और ईश्वर - प्रणिधानयम के बाद नियम आते हैं| ये नियम हमारे इनर ट्रांसफॉरमेशन के बेहतरीन टूल हैं|ये नियम आंतरिक शुद्धि के साथ-साथ हमें ईश्वर से भी जोड़ते हैं|
दरअसल अंदर की साफ-सफाई से ही परमात्मा के दरवाजे खुलते हैं|इन नियमों से मन “रिफाइन” होता है, ब्रेन “शार्प” होता है और आत्मा “क्लीन” होती है|जब अंदर तीनों स्तरों पर सफाई हो जाती है तब परम तत्व दिखाई देने लगता है|सबसे पहले बात करेंगे पवित्रता की| पवित्रता भी बाहर और अंदर दो स्तरों पर होती है|
अंदर की पवित्रता स्वार्थ(सेलफिश-नेस), अहं (ईगो), मोह(अटैचमेंट), ईर्ष्या(जेलसी), क्रोध (एंगर), काम वासना (लिबिडो,CARNAL DESIRESD) जैसी गंदगी को हटाकर ही हासिल हो सकती है|इन गंदगियों को हटाने के बाद सच्चाई, ईमानदारी, ज्ञान रुपी गंगाजल से छिड़काव करने से स्थल पवित्र हो जाता है|
पवित्रता का संबंध परमात्मा से है जब अंदर का मन मंदिर की तरह पवित्र हो जाता है तो परमात्मा प्रवेश करते हैं|बॉडी को क्लीन करने के लिए वाटर की जरूरत होती है| इसी तरह माइंड को क्लीन करने के लिए राइटीयस कन्डक्ट , सोल की क्लीनिंग के लिए डिवोशन और ब्रेन की क्लीनिंग के लिए प्योर नोलेज की ज़रूरत होती है|जो धन हम कमाते हैं वो भी नीट एंड क्लीन होना चाहिए|
धन की शुद्धि के लिए अपने काम में ईमानदारी और पूरी मेहनत होनी चाहिए| मेहनत और ईमानदारी से कमाया गया धन प्योर होता है| धन तब तक साफ़ नहीं जब तक उस का पांचवा हिस्सा दान ना किया जाए| इसलिए अपनी कमाई का एक हिस्सा अच्छे कार्यों के लिए खर्च करें|
धन की पवित्रता मन मस्तिष्क शरीर और आत्मा चारों स्तरों पर असर करती है| क्योंकि पैसे से ही हम अन्न जल वस्त्र रहन सहन की सुविधाओं की व्यवस्था करते हैं|हम जो करते हैं वो देश काल और परिस्थिति के अनुकूल हो| हमारा धर्म जो कहता है उसे अपने तर्क की कसौटी पर कसकर, वही करें जो प्राकृतिक है,जो यूनिवर्स की व्यवस्था में सहयोग करता है|
जब बाहर और अंदर की शुद्धि हो जाती है तब परमात्मा अपने आप हमारे अंदर स्थापित हो जाते हैं| योग में बताए गए यम नियम हमें यहीं ले जाते हैं|आत्म- साक्षात्कार के लिए मन- मंदिर में परमात्मा को स्थापित करने के लिए दोनों शुद्धियाँ होनी चाहिए और यही शौच का मतलब है।

