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खुद से खुद का रिश्ता बनाएं…

खुद से खुद का रिश्ता बनाएं…  दूसरे से पहले स्वयं से जुड़े ..आत्म साक्षात्कार का विज्ञान

अतुल विनोद:- 

रिश्तो में हमारी दौड़ बाहर तक सीमित रहती है| दूसरों की फिक्र करते करते, दूसरों से संबंध बनाते बनाते हम अपने आपको भूल जाते हैं| यहीं हम सबसे बड़ी गलती करते हैं| हम खुद से कनेक्ट नहीं हैं और दूसरों से कनेक्शन बनाना चाहते हैं| हम खुद से इंप्रेस नहीं है और दूसरों के इम्प्रेस करना चाहते हैं| खुद से आकर्षित नहीं है और दूसरों को आकर्षित करना चाहते हैं|

सबसे पहले अपना दबदबा अपने ऊपर बनाए| अपने ऊपर भरोसा करें| अपने आपको जानने की कोशिश करें| इसे सेल्फ रिलाइजेशन कहते हैं| भौतिक self-realization अलग है और आध्यात्मिक सेल्फ रिलाइजेशन अलग|  भौतिक स्तर पर अपना मूल्यांकन, अपने व्यक्तित्व, अपने कार्य व्यवहार, अपनी उपलब्धियों और अपने शरीर, मन और मस्तिष्क के स्तर पर अपनी क्षमताओं का आकलन करना है|  आध्यात्मिक स्तर पर  self-realizatio का अर्थ है अपनी आत्मा से जुड़ना, अपनी आत्मा को पहचानना, जानना और उसका साक्षात्कार करना|  जब तक हम स्वयं की शख्सियत से वाकिफ नहीं होंगे, खुद को नहीं जानेंगे, खुद को नहीं पहचानेंगे , बाहर की दौड़ किसी काम की नहीं है|
 
भौतिक स्तर पर आपको यह देखने की जरूरत है कि आप क्या हैं? आपकी पहचान क्या है? आप क्या बनना चाहते थे? और क्या बन गये?  आप जो बनना चाहते थे आपने उसके लिए मेहनत की लेकिन भाग्य, संयोग ने आपको कुछ और बना दिया|
 
यदि आप किसी खास दिशा में जाना चाहते हैं लेकिन प्रकृति आपको कहीं और ले जाना चाहती है तो आपको प्रकृति की सुनना चाहिए| आप प्रकृति के अनुसार नहीं चलेंगे तो आप सफलता हासिल नही करेंगे|
 
आप डॉक्टर बनना चाहते हैं लेकिन प्रकृति आपको समाजसेवी बनाना चाहती है| तब आप कितनी कोशिश करें आप एक सफल डॉक्टर नहीं बन सकते| इसलिए अपनी जिद के आगे प्रकृति के मन कि सुनिए| 
 
हम जितना अहंकार और अपने कर्म के भरोसे अपनी किस्मत बनाने की कोशिश करते हैं उतना ही हम  टूटते चले जाते  हैं|
 
हम सोचते हैं कि हम जो बनना चाहते हैं वह बन जाएंगे| ऐसा होता नहीं है| हम अक्सर वो बन जाते हैं जो हम नहीं सोचते| हम जो सोचते हैं वो हमें प्राप्त हो ही जाए ये जरूरी नहीं है|
 
जरूरी है इसके लिए जहां आप खड़े हैं वहां से लेकर अपने बचपन तक की रिवर्स यात्रा कीजिए| और देखिए कि आपके लिए प्रकृति का संदेश क्या है? प्रकृति ने आपको बार-बार क्या संदेश दिया है इससे आपको अपनी असली मंजिल का पता चल जाएगा|
 
दिखावे पर मत जाइए| बाहर के आकर्षण से  बंध कर अपनी तकदीर का फैसला मत कीजिए| ना ही निर्धारित कीजिए जो  आपके खुद के नेचर से अलग है| 
 
खुद को वैसे ही स्वीकार कीजिए जैसे आप हैं| आर्टिफिशियल व्यक्तित्व का निर्माण मत कीजिए|
 
आप जैसे हैं वैसे ही आप खुद को स्वीकार कर लेते हैं तो आप खुद का आदर करते हैं इससे आपका अपने आप से रिश्ता मजबूत होता है|
 
जैसे बाहर का कोई नजदीकी आपसे स्वीकार्यता की अपेक्षा करता है| वैसे ही आपका अंतर्मन भी आपसे आपकी मूल स्वरूप की स्वीकार्यता की उम्मीद करता है|
 
खुद को जानने के लिए खुद के साथ थोड़ा समय बिताने की जरूरत है| हमेशा कुछ पढ़ते रहने, सुनते रहने, करते रहने से खुद को नहीं जाना जा सकता|
 
खुद को जानने के लिए एकांत की आवश्यकता है मौन की जरूरत है| स्वयं के साथ संवाद की आवश्यकता है|
 
अपने पैराडाइम को समझने की कोशिश करें आपका पैराडाइम अलग है और किसी अन्य का पैराडाइम अलग है 
 
अपने पैराडाइम को अपने मूल स्वभाव के साथ एकीकृत कीजिए
 
लोग क्या कहते हैं इसकी चिंता मत कीजिए| अपने स्वभाव को मंजूर कीजिए| यदि वह गलत दिशा में जा रहे हैं तो उसे परिष्कृत कीजिए| प्रकृति के नियमों के अनुसार अपने जीवन को ढालने की कोशिश कीजिए| ना तो जिद से दुनिया बदलती है ना ही कर्म के भरोसे भाग्य की इबारत लिखी जा सकती है|
 
कुछ कदम हम चलते हैं कुछ कदम प्रकृति आप का साथ देती है| तब एक और एक ग्यारह बनता है| हम कहीं और जा रहे हैं और प्रकृति कहीं और ले जाना चाहती है तो एक से एक माइनस हो जाएगा और बचेगा सिर्फ शून्य |