वह माता-पिता में भी है मंदिर में भी है। मस्जिद में भी है गुरुद्वारे में भी।
वह नदी में भी है तो घर में भी और नाले में भी।
जिस जगह को हम गंदा, बेकार समझते हैं वहां भी ईश्वर का ही वास है। जिसे भी आप ईश्वर के रूप में पूजेंगे वह ठीक ईश्वर की तरह आपको फल देगा।
माता पिता ईश्वर के स्रजन के विधान का एक हिस्सा है उन्होंने ईश्वर की दुनिया को चलाने की व्यवस्था का पालन करते हुए आपको इस धरती पर अवतरित होने के लिए अपने आपका उपयोग किया। अपने आप को माध्यम बनाया। इसलिए वह ईश्वर का ही रूप हो गए क्योंकि वह ईश्वर की इच्छा का पालन कर रहे थे।


