कभी ना कभी हमारे मन में यह सवाल पैदा होता है कि हम कौन हैं और कहां से आये हैं ? हमारे आने का क्या उद्देश्य है ? एक और सवाल पैदा होता है कि क्या इस जीवन के बाद भी कोई जीवन है ? और यदि इस जीवन के बाद कोई और जीवन है तो फिर आत्मा का अस्तित्व होना चाहिए यह आत्मा क्या है ,कहां से आती है और यदि यह है तो फिर इसका सबूत क्या है ?
अध्यात्म आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करता है और आत्मा को ही अस्तित्व की सर्वोच्च सत्ता करार देता है |
कुछ सवाल जो सोचने पर मजबूर करेंगे
यह जो मनुष्य है यह दो तलों से मिलकर बना है और यह दुनिया भी 2 तलों से मिलकर बनी है , एक अस्तित्व वह है जो दिखाई देता है और एक भाग वह है जो दिखाई नहीं देता , जैसे तार दिखाई देते हैं बिजली नहीं , मोबाइल दिखाई देता है सिग्नल्स नाही | विज्ञान ये तो मानता है कि हर वास्तु कि एक उर्जा होती है हर वास्तु में किसी न किसी प्रकार का स्पंदन , तरंग व विद्युत् चुम्बकीय क्षेत्र का निर्माण होता है |
ज़रा सोचिये हम आंखों से कुछ देखते हैं लेकिन यदि हमारा ध्यान वहां पर नहीं होगा तो देखते हुए भी हम उस वस्तु को नहीं देख पाएंगे , इसका मतलब यह है कि ऐसी कोई और शक्ति है जो आंखों के सिग्नल्स को ग्रहण करती है | क्या ये सिर्फ ब्रेन है या कुछ और ?
मनुष्य की जो याद करने की क्षमता है वह भी बहुत अद्भुत है , अब सवाल यह उठता है कि मनुष्य जो कुछ याद रखता है उसके ब्रेन में यानी स्थूल पदार्थ में सेव होता है या कहीं और ?
यदि मनुष्य कि यादें सिर्फ भौतिक या निर्जीव पदार्थ होती तो वो मरने के साथ नष्ट हो जाती | लेकिन पुनर्जन्म की घटनाएं बताती हैं कि पिछले जन्म की घटनाएं हमेशा हमेशा के लिए नहीं मरती बल्कि वह किसी सूक्ष्म तत्व में शामिल होकर इसी ब्रह्मांड में रह जाती है |
मनुष्य की तीसरी खासियत उसकी संकल्प शक्ति है, वह कोई कार्य करने का संकल्प ले सकता है | मनुष्य की चौथी शक्ति उसकी भावनाएं हैं, मनुष्य महसूस भी कर सकता है अनुभूति भी, यह सारी क्षमताएं स्थूल शरीर से जुड़ी जरूर है, लेकिन स्थूल नहीं है क्योंकि यह सब मनुष्य के शरीर को काटने पर ढूंढे नहीं मिलेंगी |
मनुष्य का मस्तिष्क जिन कणों से मिलकर बना है विज्ञान यदि उन कणों को रॉ फॉर्म (मूलरूप) में प्राप्त कर भी ले तो क्या वह उन सबको आपस में जोड़कर ऐसी संरचना तैयार कर सकता है , जिसमें संवेदनाएं भी हो सोच भी हो भावनाएं भी हो अनुभूतियां भी हो
आप एक ही व्यक्ति में कई तरह के व्यक्तित्व देख सकते हैं , एक ही व्यक्ति में कई तरह की भावनाएं देख सकते हैं
ऐसे कई उदाहरण है जहां बच्चों ने अपने पूर्व जन्म की एकदम सटीक जानकारी दी है जो तस्दीक में सही साबित हुई, कई मनुष्यों ने ज्ञान बुद्धि और कई तरह की यादों का परिचय देकर इस संसार को चौकाया, कई बार मनुष्य सपने में किसी भविष्य की घटना को देख लेता है , कई बार मनुष्य ऐसी घटनाओं के बारे में बताता है जो उसके के जन्म से कई साल पहले हो चुकी है , जिनके बारे में उसने सुना ना पढ़ा
एक और बात महत्वपूर्ण है कि हर मनुष्य में एक ज्ञान की शक्ति मौजूद होती है , जैसे ही व्यक्ति किसी खास क्षेत्र में जानकारी हासिल करने की कोशिश करता है तो उसका ज्ञान पढ़ी और सुनी बातों से भी ज्यादा विकसित होने लगता है |
मनुष्य के अंदर इस दुनिया के रहस्य को जानने की क्षमता बीज रूप में मौजूद रहती है , जैसे-जैसे यह अव्यक्त ज्ञान शक्ति बढ़ती है , मनुष्य प्रकृति और विश्व के शाश्वत नियमों से अपने आप परिचित हो जाता है , आध्यात्मिकता के मूल स्वरुप की जानकारी उसे खुद ही हो जाती है |
निष्कर्ष
इन सब बातों से एक बात तो साफ है कि मनुष्य में आत्मा नाम की कोई सूक्ष्म शक्ति कार्यरत है , यह शक्ति सांसारिक मामलों में पांच इंद्रियों नाक कान आंख जीव त्वचा से जानकारियां हासिल करती है लेकिन यदि इस आत्मा को और विकसित कर लिया जाए या आवरणों को हटा दिया जाए तो इसे जानकारियां हासिल करने के लिए 5 सेंसेज (इंद्रियों) की जरूरत नहीं पड़ती और यह इनके बिना ही विश्व मन से ज्ञान हासिल करने लगती है | अलग-अलग अवस्था में मनुष्य की भावनाएं अलग-अलग होती है, कभी वह बहुत खुश होता है तो कभी बहुत दुखी , कभी वह कभी हताशा में तो कभी निराश , जैसे ही उसका दृष्टिकोण बदलता है वैसे ही उसका भाव बदल जाता है , इसका मतलब यह है दृष्टिकोण भावनाओं का बेस (आधार) है , जब आत्मा शुद्ध और विकसित हो जाती है तो दृष्टिकोण सम हो जाता है , समरस दृष्टिकोण में व्यक्ति आनंद स्वरूप हो जाता है , एक बात और है कि हमारे प्रत्येक कार्य का असर हमारी आत्मा पर पड़ता है ,
अब बात आती है कि आत्मा कहां स्थित है ? आत्मा का केंद्र कहां है ?
अभी तक के आध्यात्मिक निष्कर्षों से एक बात तो साफ हो जाती है कि यह आत्मा मनुष्य के शरीर के अंदर और बाहर उसी आकार की एक सूक्ष्म छवि है इसे उसी आकार का विद्युत चुंबकीय क्षेत्र कह सकते हैं |आत्मा से सम्पूर्ण शरीर आच्छादित है और इसका केंद्र ह्रदय या ब्रह्मरंध्र यानी मस्तिष्क के बीच बीच होना चाहिए एक और बात है कि जीव सत्ता का कभी विनाश नहीं होता यह पहले भी अस्तित्व में थी और आगे भी अस्तित्व में रहेगी l
अतुल विनोद *


