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मरने के बाद कहाँ जाता है दिमाग का डेटा ?


योग शास्त्र कहता है कि यदि हमारे दिमाग को पूरी तरह रीड किया जा सके तो पूरे ब्रह्मांड का रहस्य खुल सकता है। मानव का मस्तिष्क बहुत ही अनोखा है इसकी संरचना अद्भुत है आम मनुष्य की ज्यादातर मस्तिष्क कोशिकाएं प्रस्तुत अवस्था(स्लीप मोड़) में रहती है । 

हम जानते हैं कि हम अपने मस्तिष्क की क्षमताओं का बहुत कम उपयोग कर पाते हैं, योग की खास साधनाओं से मस्तिष्क की उपयोगिता को और ज्यादा बढ़ाया जा सकता है ।  जैसे जैसे साधना आगे बढ़ती है मस्तिष्क के प्रसुप्त केंद्र जागृत होने लगते हैं ।

हमारे दिमाग के बाहरी हिस्से में धूसर पदार्थ जिसे ग्रे मैटर कहा जाता है इसमें करोड़ों तंत्रिका कोशिकाएं न्यूरॉन्स मौजूद है । 

ब्रेन को तीन भागों में बांटा गया है मुख्य भाग को कहा जहां सारी तंत्रिका  कोशिकाएं मिलती है उसे तंत्रिका-बंध (सेरीबेलम)कहा जाता है ।

तंत्रिका बंध भी बहुत रहस्यमय है यह तंत्रिका बंध ब्रेन में स्थित ब्रह्मरंध से जुड़ा है, ब्रह्म-रन्ध्र को आत्मा का केंद्र माना गया है। ब्रह्मरंध हमारी स्पाइन से जुड़ा हुआ है हिंदी में इसे मेरुदंड कहते हैं। मेरुदंड में एक करोड़ 33 लाख तंत्रिका कोशिकाएं हैं जो छह केंद्रों में डायवर्टेड हैं । 

योग में इन्हीं छह केंद्रों को षट-चक्र कहा गया है।  प्रत्येक केंद्र की तंत्रिका कोशिकाएं हर समय एक खास तरह की विद्युत चुंबकीय तरंग उत्पन्न करती है, यह केंद्र एक तरह के टावर हैं इन तरंगों के जरिए हर केंद्र अलग अलग लोक, लोकांतर और जगत से ऊर्जा का आदान प्रदान करता रहता है।  ग्रह नक्षत्र तारे इन्ही केंद्रों के ज़रिए ही हम पर प्रभाव डालते हैं । 

तंत्रिकाएं यानी शिरा, रेशा, स्नायु, Nerves, मसल्स, न्यूरॉन, नाड़ी और कोशिका यानी छिद्र, सेल, रन्ध्र या कोठरी 

योग में इन केंद्रों को नकारात्मक ऊर्जा व अवरोधों से मुक्त कर व साफ सुथरा बनाकर उनकी सिग्नल-स्ट्रैंथ बढ़ा देना ही चक्र भेदन कहलाता है । 

हमारे दिमाग में सबसे ज्यादा रहस्यमयी जगह इसका भीतरी भाग है यहां पर दिमाग की 2 परतें हैं। पहली परत में इस जीवन से जुड़ी हुई यादें भरी हुई हैं, जो दूसरी परत है उसमें पिछले कई जन्मों की अच्छी बुरी स्मृतियां संचित है, इन परतों को प्राण शक्ति पर्याप्त मात्रा में मिलने लगे तो यह परतें  खुलने लगती हैं और हमारी संचित स्मृतियां बाहर आने लगती हैं । 

योग में प्राण शक्ति बढ़ाने के कई प्रयोग दिए गए हैं ।  यदि प्राण शक्ति के साथ मन की शक्ति और मंत्र की शक्ति को जोड़ दिया जाए तो हमारे छह केंद्रों की कोशिकाएं और मस्तिष्क के आंतरिक भाग एक्टिवेट होने लगते हैं, इससे व्यक्ति की आत्म शक्ति भी बढ़ती है । 

दिमाग की पहली परत (चिप,बाह्यमन) यानी चेतन मन कहलाती है दूसरी परत(चिप या लोब) अंतर्मन या अचेतन मन कहलाती है । 

पहली चिप विचारों को जन्म देती है और दूसरों के विचारों को स्टोर करती है ।

हम पर लगातार दूसरों के विचार और भाव का प्रभाव पड़ता रहता है । चाहे हम यह बात जानते हो या ना जानते हों ।

चारों तरफ से हमारे मस्तिष्क की ओर विचार आते रहते हैं, चेतन मन विचारों के आक्रमण के प्रति सजग रहता है लेकिन कई बार यह विचार चेतन मन की दीवार को पार कर अचेतन मन तक पहुंच जाते हैं, और वहां जाकर गुपचुप स्टोर हो जाते हैं| 

कई बार हमारा मन हमारे आसपास मौजूद रेडियो टीवी और इंटरनेट की तरंगों में मौजूद विचारों और दृश्यों को भी डिकोड कर लेता है । 

हमारे दिमाग का पहला हिस्सा इड़ा नाड़ी से जुड़ा होता है दूसरा हिस्सा पिंगला नाड़ी से जुड़ा हुआ होता है । पहला हिस्सा तब सक्रिय रहता है जब हम जागते हैं, दूसरा हिस्सा तब सक्रिय होता है, जब हम सोते या स्वप्न देखते हैं। हमारे मस्तिष्क का तीसरा भाग हमारी रीढ़ का सबसे ऊपरी हिस्सा है, यह हिस्सा सुषुम्ना नाड़ी से जुड़ा हुआ है । 

यह तीसरा हिस्सा सोने जागने और सपने देखने से आगे की स्थिति (जागृति स्वप्न और सुसुप्ति) जिसे तुरीय व तुरियातीत अवस्था कहते है,  में सक्रिय होता है। योग इसे सहस्रार चक्र कहता है, सहस्रार चक्र सुषुम्ना नाड़ी से मूलाधार तक स्पाइन के जरिए कनेक्ट रहता है । 

यह जगह नींबू के आकार की तरह है जिसमे अज्ञात लिक्विड भरा हुआ है, यहां एक लंबा तंतु धागा, छल्ले के आकार में एक हजार राउंड लिए हुआ है, इसलिए इसे सहस्रार चक्र कहा जाता है ।

इस सहस्त्र बार लपेटे हुए वायर का एक सिरा सुषुम्णा नाड़ी से जुड़ा हुआ है और दूसरा सिरा एक गुप्त नाडी से जुड़ा हुआ है और यह नाड़ी आज्ञा चक्र से सहस्रार को कनेक्ट करती है।

मस्तिष्क की तीसरी पट्टी जिसे सहस्रार कहा जाता है इसका संबंध अभौतिक जगत से है । जब सहस्त्रार खुलता है तो मनुष्य से सिग्नल्स तेज़ी से यूनिवर्स की तरफ जाने लगते हैं, योगी इसे अनुभव करते हैं । 

पृथ्वी के चारों ओर ग्रेविटेशनल फील्ड( गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र  है) इस क्षेत्र को वैज्ञानिक ईथर कहते हैं , इसमें अभी तक हुए सभी संत , महात्मा , योगी , विचारक  , बुद्धिजीवी , वैज्ञानिक , राक्षस , खलनायक , दुराचारियों के विचारों के पैकेट्स मौजूद हैं । 

जैसे एक कंप्यूटर का पूरा डाटा एक छोटी सी चिप में आ जाता है उसी तरह से एक व्यक्ति के संपूर्ण जीवन के विचार एक छोटे से कण में समाहित हो जाते हैं, जिसे हम नेनो चिप कह सकते हैं, ये नेनो चिप इस वायुमंडल में तैरते रहती हैं ।  यह चिप व्यक्ति की मृत्यु के बाद इस वातावरण में चली जाती है|

पंच तत्व अपने अपने मूल तत्व में विलीन हो जाते हैं, लेकिन विचार रूपी ऊर्जा की ये चिप वातावरण में घूमने लगती हैं। ये चिप अच्छे लोगों के साथ साथ बुरे लोगों की भी हो सकती हैं। कई बार यह पैकेट्स हमारे अवचेतन मन के संपर्क में आ जाते हैं और इन कणों से हम सीधे तौर पर प्रभावित हो जाते हैं। यदि हमारे मन में अच्छे व्यक्ति के विचारों का पैकेट प्रवेश कर गया है तो हम एकाएक बहुत बेहतर हो सकते हैं। 

लेकिन यदि गलती से भी किसी गलत व्यक्ति के विचारों का यह पैकेट हमारे अंदर आ गया तो हम पूरी तरह से विलेन की तरह व्यवहार करना शुरू कर सकते हैं।  

कई बार एक ही व्यक्ति दो तरह से व्यवहार करने लगता है, कभी वह बहुत अच्छा हो जाता है और कभी बहुत बुरा इसका कारण यही पैकेट है। व्यक्ति अच्छा है, लेकिन उसके अंदर एक बुरे व्यक्ति का पैकेट घुस चुका है तो जब भी बुरे व्यक्ति के विचार हावी होने लगेंगे व्यक्ति खलनायक की तरह बिहेव करेगा, वह बाइपोलर पर्सनैलिटी डिसऑर्डर का शिकार हो जाएगा, यदि बुरे व्यक्ति की चिप हमारे अंदर प्रवेश कर जाए तो हम अनजाने में ही ऐसे काम कर देते हैं, जो हमारी प्रकृति के बाहर की बात होती है, इसलिए कई बार संत महात्मा खलनायको की तरह व्यवहार करते हैं, एक चेहरा उसका संत का होता है और दूसरा चेहरा चेहरा दुराचारी का हो जाता है । बुरे विचार की चिप से एक व्यक्ति का हार्मोनल सिस्टम गड़बड़ा जाता है, जिससे उसके अंदर बाइपोलर पर्सनेलिटी डिसऑर्डर, बॉर्डर लाइन पर्सनेलिटी डिसऑर्डर हो सकते हैं । 

एक संत के हैवान बनने का कारण है उसका अनजाने में ऐसे पैकेट के संपर्क में आ जाना जो किसी खलनायक का पैकेट था इसलिए उसके दो चेहरे हो जाते हैं । 

योग की विभिन्न साधनाओं के जरिए हम खुद को बुरे विचारों वाले व्यक्तियों के पैकेट  से, नकारात्मक कर्म संस्कारों से, कर्मशयों को डिस्ट्रॉय कर सकते हैं ।

जब हम समाधि की स्थिति में होते हैं तब हमारे चारों तरफ खास तरह की तरंगों का गोल घेरा बन जाता है इसी को प्रभामंडल कहा जाता है । 

BY


ATUL VINOD