Type Here to Get Search Results !

क्या ग्रन्थ और पुराण काल्पनिक कहानियाँ है ?

सूत जी और व्यास जी…… सनातन धार्मिक साहित्य में इन दोनों के माध्यम से ही पौराणिक कथाएं प्रस्तुत की जाती  हैं| सनातन धार्मिक साहित्य में लिखी हुई कथा कहानियां प्रमाणिक है या नहीं है? ये महत्वपूर्ण नहीं है|
Image result for सूत और व्यास कौन हैं?
वास्तव में ये घटनाएं कब घटित हुई? किस जगह पर घटित हुई? इनके सबूत और दस्तावेज जितने महत्वपूर्ण नहीं है उससे ज्यादा अहम ये है कि इन पौराणिक आख्यानों के जरिए हमें क्या बताने की कोशिश की गई है| जैसा कि कहा जाता है कि धरती पर वेद सबसे पहले आए,  वेद कैंसे आए? वेद प्राचीन काल के विद्वानों  की चेतना की उच्च अवस्था में प्राप्त हुए ज्ञान की अभिव्यक्ति है| कोई भी मनुष्य जब चेतना की उच्च अवस्था में होता है| जब वह अपने अनुभव के द्वारा आत्मज्ञान प्राप्त कर लेता है| तब सृष्टि के नियम और सिद्धांत उसे अपने आप पता चल जाते हैं| उन्हीं नियमों और सिद्धांतों को वेदों के रूप में अभिव्यक्त किया गया| वेदों की भाषा शैली हर एक मनुष्य के स्तर की नहीं थी, इसीलिए ईश्वरीय ज्ञान को और सहज रूप में प्रस्तुत करने के लिए पुराणों की रचना की गई|
वैदिक ज्ञान को पुराणों के रूप में एक सूत्र में बांधकर उसका एक वृत्त बनाया गया| ये जो धागा है, जो ईश्वरीय ज्ञान की कड़ियाँ जोड़कर उसे ज्ञान रुपी माला में पिरोता है| ये धागा ही सूत जी हैं| जैसे एक वृत्त की परिधि के एक छोर से दुसरे छोर को छूने  वाली रेखा को व्यास कहते हैं| यही वेद व्यास हैं जो इस वैदिक ज्ञान की माला को एक वृत्त की शक्ल देते हैं|  भारतीय सनातन दर्शन को अनेक ग्रंथों के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाने की कोशिश की गई है| यही ग्रंथ रामायण, महाभारत, पुराण और टीकाएँ हैं | ग्रंथों में मनुष्य को ईश्वरीय चेतना से जोड़ने के लिए अलग-अलग तरह की कथाएं हैं|  और यही भारत की सनातन संस्कृति की विशेषता है| भारतीय सनातन धर्म किसी भी व्यक्ति को किसी एक किताब से बांधकर नहीं रखता|  सनातन धर्म में अनेक शास्त्र, आख्यान, महाकाव्य, वेद, पुराण, ग्रंथ हैं और इन  सबके मूल में वह परमपिता परमात्मा है| 
व्यक्ति इन सबका अध्ययन करे, लेकिन उस परम सत्य को जानने के लिए किसी किताब पर आश्रित ना रहें| बल्कि वह योग के मार्ग से उस सत्य का अपने अंतर-तम में अनुभव करे| किसी भी एक किताब को बनाकर धर्म इन्सान को उसमे बांध देते हैं| लेकिन सनातन धर्म ने इन्सान को किसी एक किताब देवता या मान्यता में नहीं बाँधा उसे खुले आसमान में उड़ने कि इजाज़त दी|  सनातन धर्म में अध्ययन से ज्यादा अभ्यास को महत्व दिया गया है| योग-ध्यान-साधनाओं के हजारों मार्ग भारतीय सनातन साहित्य में मिलते है| यह सब मार्ग उसे उस अनुभव तक पहुंचाने के लिए है जो वास्तविक है, प्रमाणिक, और परम सत्य है| 
जब व्यक्ति उस परम सत्य से रूबरू हो जाता है, अपनी आत्मा के दर्शन कर लेता है, परमात्मा के मूल स्वरूप को जान लेता है, तब सब प्रकार के भ्रम दूर हो जाते हैं| किसी भी तरह का कोई संशय नहीं रहता| सारे प्रश्न खत्म हो जाते हैं| क्योंकि मूलतत्व से साक्षात्कार हो जाता है| सनातन धर्म की इतनी सारी कथा-कहानियां उलझने के लिए नहीं है|  समझाने के लिए हैं|  यही भारतीय सनातन संस्कृति की विशेषता है| विविधता में एकता ही इस संस्कृति का मूल है| ग्रंथ, पुराण, वेद, ज्ञान का स्थूल रूप है लेकिन इस स्थूल ज्ञान रूपी समुद्र में गोता लगाने से परम सत्य का ज्ञान हो जाता है| समुद्र की उपरी सतह पर खजाना नहीं होता, गोता लगाकर तल तक पहुचने वाले को रत्न आभुषण मिलते हैं| 

धार्मिक साहित्य का मिस इंटरप्रिटेशन करना आसान है|  मूल भाव तक पहुचना अनुभव का विषय है| जो लोग सतह  पर जीते हैं वे कथाओं में कमियां निकलकर खुश हो जाते हैं, लेकिन इससे वे सार रुपी अमृत से वंचित भी हो जाते हैं|
अतुल विनोद*