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योग .. “SAMADHI” का विज्ञान… क्या होती है समाधी?

 योग .. “SAMADHI” का विज्ञान… क्या होती है समाधी? कैसे लगती है? P अतुल विनोद 

योग .. “SAMADHI” का विज्ञान… क्या होती है समाधी? कैसे लगती है? P अतुल विनोद 

Samadhi (Bliss or Enlightenment)

Meditation_newspuran

योग शास्त्र अपने आप में जीव का एक पूर्ण विज्ञान है … योग का अंतिम लक्ष्य चित्त की वृत्तियों का निरोध है|

सवाल उठता है ये क्या है और कैसे होता है.. पतंजली ने अपने योग सूत्र में इसकी व्याख्या की है|

एक, योग मार्ग में “साधन” करते हुए इस अवस्था तक पहुंच जाता है| योग साधना २ तरह से होती है एक व्यक्ति शास्त्र और गुरु के बताये मार्ग का अनुसरण करता है इसे साधना कहते हैं| 

दूसरा वो जिसकी जागृत कुण्डलिनी उसे इस मार्ग पर ले जाती है, इसे साधन कहते हैं| 

“साधना” करना पड़ता है “साधन” स्वयम होता है| 

जब साधना साधन में बदल जाती है यानि करने वाला मानव न होकर दिव्य सत्ता कुण्डलिनी होती है तो .. मानव सिर्फ एक दृष्टा रह जाता है और योग स्वयं होने लगता है|  

चित्त की वृत्तियाँ 5 तरह की बतायी गयी हैं| 

हमारा भ्रम, कल्पनाएँ, आशंकाएं, किसी भी चीज़ से लगाव हो जाना, मोहित हो जाना, पुरानी बातें याद करते रहना, झूठे भरोसे में रहना, सच को झूठ और झूठ को सच मानना, सच से भागना ये सब चित्त की वृत्तियाँ ही हैं| 

इन वृत्तियों का निरोध(Prevention,Restraint) अभ्यास से होता है चाहे व्यक्ति हठ पूर्वक स्वयं अभ्यास करे या अनुग्रह से जागृत कुण्डलिनि कराए| 

योग अभ्यास से हम झूठ, भ्रम, कल्पना, मोह, आसक्ति, आशंकाओं से दूर होते हैं| 

The Stages of Samadhi According to the Ashtanga Yoga

योग अभ्यास के 8 चरण हैं| यम,नियम,आसान,प्राणायाम,प्रत्याहार,धारणा,ध्यान,समाधि

कहते हैं “करत-करत अभ्यास के जडमति होत सुजान”… इन अभ्यास से हम चित्त वृत्तियों को रोकने में कामयाब होते हैं|

वृत्तियाँ क्या होती हैं? 

हम मार्केट गये और हमने बहुत सुंदर फर्नीचर देखा| हमारी वृत्ति कहती है काश ये सोफा, काउच, झूमर मेरे घर होता.. हम बस उसी में उलझ जाते हैं.. हमारा मकसद उसे पाना हो जाता है हमे लगता है इसे खरीदने से ही हमे सुख मिलेगा… इसमें मोह हुआ,लालसा जागी, उससे सुख पाने का भ्रम हुआ, उससे आसक्ति हुयी… उसे घर में होने के कल्पना हुयी … कितनी ही वृत्तियाँ एक साथ उठ खड़ी हुयी? 

चित्त वृत्तियों के निरोध का आसन रास्ता जाने (इस लिंक पर क्लिक करें)

जिसने चित्त की वृत्तियों का निरोध कर लिया है उसे ऐसे सभी विषयों में तृष्णा नहीं होगी|

सम-भाव आएगा लेकिन विचार, आनंद और स्वयं का बोध रहेगा … इस अवस्था को पतंजली ने सम्प्रज्ञात समाधि कहा है| 

बार बार के अभ्यास से हम मानसिक गतिविधियों से मुक्त हो जाते हैं| 

मन शांत हो जाता है लेकिन पुराने संस्कार तो बचे रहते हैं| 

संकार यानी पुराणी कर्मो से पैदा हुयी उर्जा/इम्प्रेशन/  कंडिशनिंग बचे रह जाते हैं| हलाकि मन की उथल पुथल शांत रहती है| 

इस स्थिति को “असम्प्रज्ञात समाधि” की अवस्था कहते हैं| 

साधन से संस्कार भी विदा हो जाते हैं| अच्छे और बुरे दोनों में सम-भाव आ जाता है| न सुख चाहिए न दुःख… न कोई पुरानी उर्जा/ स्पंदन/ इम्प्रेशन/ कंडीशनिंग… तब “असम्प्रज्ञात समाधि” सिद्ध होने लगती है| 

इससे आगे बढ़ते हैं तो समर्पण, श्रद्धा, वीर्य, स्मृति, और अनुभवात्मक ज्ञान रुपी प्रज्ञा बढती है| इस स्थिति में मैं पूरी तरह खत्म हो जाता हैं सिर्फ इश्वर ही बचा रहता है| व्यक्ति “निर्बीज समाधि” की अवस्था में पहुंच जाता है| 

इस अवस्था में समय का भी पता नहीं चलता| इसी अवस्था को कैवल्य-अवस्था के नाम से भी जाना जाता है। 

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