अध्यात्म की दृष्टि से : आध्यत्मिक शिक्षक और उनकी पड़ताल
सच्चा गुरु कौन है ? धार्मिक और आध्यात्मिक गुरुओं की क्या पहचान है ? सच्चे गुरु की पड़ताल कैसे करें ? आंतरिक गुरु से कैसे जुड़े ?
P अतुल विनोद
गुरुओं की भीड़ में सच्चे गुरु की पहचान करना बहुत कठिन होता है | कुछ गुरु ऐसे हैं जो मौजूद ज्ञान को अपने नाम से प्रचारित और प्रसारित कर रहे हैं | कुछ गुरु ऐसे हैं जो ये भी दावा कर रहे हैं कि अपने ज्ञान की फेक्टरी से उन्होंने नया ज्ञान इज़ाद किया है | कुछ गुरु ऐसे भी हैं जो सनातन और वैदिक कालीन गुरुओं के नाम को आगे रखकर परोक्ष रूप से अपने आप को आगे ले जाने की कोशिश कर रहे हैं |
किसी भी गुरु में चरित्र, गुणवत्ता और प्रत्यक्ष आध्यात्मिक अनुभव का होना बहुत जरूरी है | कोई भी व्यक्ति भले ही वह गृहस्थ हो या सांसारिक, गुरु बन सकता है| लेकिन उसका मन साफ और शुद्ध होना चाहिए| उसके विचार और भाव पवित्र होने चाहिए| उसका मकसद स्पष्ट और जनकल्याण से जुड़ा हुआ हो | अध्यात्म में अनुभवी व्यक्ति ही आपका सही मार्गदर्शन कर सकता है, क्योंकि अध्यात्म आध्यात्मिक नियमों से चलता है |
बिना किसी ध्यान, धर्म या आध्यात्मिक प्रक्रिया के भी आत्म-चेतना जागृत हो सकती है जिसके अलग जिसके अलग-अलग शास्त्रों में अलग-अलग नाम दिए हैं जैसे कुंडलिनी शक्ति, प्रत्यक् चेतना , प्रज्ञान आल्हाद्नी शक्ति, भगवती इत्यादि | लेकिन यह तय है कि यदि आप इसके लिए किसी नकली गुरु का अनुसरण कर रहे हैं तो आपकी चेतना जागने की बजाए अंधकार के भंवर में उलझ जाएगी |
अध्यात्म जानकारियों,विधियों,क्रियाओं,परम्पराओं या मान्यताओं को इकठ्ठा करना नहीं बल्कि जानकारियों के दलदल से मुक्त होना है |
अध्यात्म शिक्षक की श्रेणियां
1-निम्न स्तरीय गुरु :
जिस व्यक्ति को ध्यान या अध्यात्म से जुड़ा हुआ कोई अनुभव नहीं है| जिसकी कुंडलिनी या चेतना जागृत नहीं हुई है| जो यह नहीं जानता कि आध्यात्मिक क्षेत्र में कौन आगे बढ़ सकता है और कौन नही| जिसने खुद को सिर्फ भौतिक यश,मान प्रतिष्ठा या धन प्राप्ति के लिए गुरु घोषित किया है, ऐसा गुरु सिर्फ पढ़ी पढ़ाई या सुनी सुनाई बातों के आधार पर कुछ धार्मिक व् अध्यात्मिक गतिविधियों को कराने का दिखावा करके लोगों को अपना शिष्य बनाता है,योग व ध्यान को अपने नए नाम से सुशोभित करता है |
कथित गुरु शिष्य को आगे ले जाने की बजाय उनको गुरुदीक्षा देने में ज्यादा यकीन रखता है | गुरु मंत्र या गुरु दीक्षा देकर वह अपना कर्तव्य पूरा मानलेता है और बाद में शिष्यों पर भावनात्मक दबाव डालकर पिछले रास्तों से अपना खजाना भरने की कोशिश करता है | ऐसा गुरु कथित शक्तिपात शिविर आयोजित करके अनुयायियों को दीक्षित और जागृत करने का दिखावा करता है| आध्यात्मिक माहौल होने के कारण शिष्य होने वाले स्वभाविक अनुभवों को शक्तिपात योग/ गुरु कृपा मानकर उस पर भरोसा करने लगता है| ऐसे अनुभव तो ओझा तांत्रिकों व भूत प्रेत भागाने वालों के दरबार में भी आपको बहुत मिलेंगे| गाँव गाँव में ओझा के दरबार में आपको हिलते डुलते, चिल्लाते, रोते चीखते लोग दिख जायेंगे | इस तरह की क्रियाओं को शक्तिपात का असर बताया जाता है जबकि वो भावनात्मक आवेग होता है |
माइकल जेक्सन को सुनकर भी लोग ऐसे ही चीखने लगते हैं, और भी किसी खास व्यक्ति व संगीत के कार्यक्रम में या ढोलक की थाप पर लोग नाचने झूमने लगते हैं, लेकिन इन गतिविधियों को शक्तिपात का असर नहीं कहा जा सकता| ऐसा गुरु शिक्षित और बौद्धिक लोगों की बजाए अज्ञानी, कम पढ़े लिखे व अंधविश्वासी लोगों को जोड़ने में ज्यादा यकीन रखता है कई बार कई बार पढ़े लिखे और समझदार कहे जाने वाले लोग भी इनके चक्कर में आते दिखाई देते हैं| ऐसा गुरु सामान्य अज्ञानी व्यक्ति से भी ज्यादा खतरनाक होता है| वह खुद को आत्मज्ञानी,तत्वदर्शी,योगी या अवतार घोषित करता है | इसके विपरीत सच्चा गुरु कभी कोई दावा नहीं करता |
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2.मध्यम गुरु :
मध्यम गुरु वो है जो अपनी चेतना की जागृति के बाद, ध्यान के अनेक अनुभव प्राप्त करके व अपने अंदर की अनेक तरह की संस्कार रूपी ग्रंथियों के विसर्जन के बाद दूसरों की मदद करना शुरू करता है| ऐसा गुरु अपने शिष्यों या अनुयायियों की भी चेतना जागृति में मदद करता है | मध्यम गुरु अपने अनुभव के साथ साथ धर्म शास्त्र, वेद, पुराण, योग व अध्यात्म के ग्रंथों व किताबों का भी सहारा लेता है, साथ ही प्राचीन ऋषि,मुनि,योगी और तपस्यियों के नाम का भी इस्तेमाल करता है | मध्यम गुरु अपने अनुयायियों से दान, दक्षिणा सेवा का लाभ लेने की कोशिश कर भी सकता है और नहीं भी | ऐसा गुरु फायदेमंद है यदि वह अपनी साधना में लगा हुआ है और साधना को रोकता नहीं है | मध्य मार्ग गुरु अपने अनुभवों से अपने अनुयायियों का मार्गदर्शन करता है, ऐसा गुरु जानता है कि कौन इस मार्ग के लिए फिट है और कौन नहीं | ऐसा गुरु खुद को आत्मज्ञानी घोषित कर भी सकता है और नहीं भी |
3-श्रेष्ठ गुरु
ऐसा व्यक्ति जिसने साधना के जरिए अपनी सारी ग्रंथियों को, सारे संस्कारों की चिपकी हुयी उर्जा को विसर्जित कर दिया है| ऐसा व्यक्ति आत्मज्ञानी होता व उसकी चेतना उसके नियंत्रण में होती है | उसमे दूसरों की चेतना जगाने की भी क्षमता होती है | यह गुरु दूसरों को भी कुण्डलिनी व ध्यान का मास्टर बना सकता है | ऐसा व्यक्ति जानता है कि किस अनुयाई को किस साधना विधी से फायदा होगा | वह यह भी जानता है कि कौन साधना के योग्य है और कौन नहीं | ऐसा उत्तम गुरु भी यदि अपनी साधना छोड़ दे और सिर्फ सांसारिकता में लगा रहे तो फिर अपनी सामान्य अवस्था में पहुंच जाता है| वह व्यक्ति पवित्र उद्देश्यों के लिए लोगों से दान दक्षिणा की मांग कर भी सकता है और नहीं भी | ऐसा व्यक्ति संसार में रहकर दूसरों की मदद करने में यकीन रख भी सकता है, नहीं भी या फिर वो सब से कटकर सिर्फ अपनी साधना में लीन हो सकता है | ये गुरु आत्मज्ञान या सिद्धियों का दावा या दिखावा कभी नहीं करता | वह व्यक्ति बहुत साधारण दिखाई दे सकता है और साधु संत या सिद्ध पुरुष कहलाने के लिए किसी तरह की विशेष वेशभूषा रखने से भी परहेज भी कर सकता है |
4-निकृष्ट गुरु
और अब बात करते हैं उस गुरु की जो शेर की खाल में भेड़िया है | यह सोची-समझी रणनीति के तहत पैसा कमाने, महिलाओं का शोषण करने, शोहरत और दबदबे के लिए गुरु बनता है | वह व्यक्ति सुनियोजित तरीके से अपनी मार्केटिंग करता है | खुद को गुरु साबित करने के लिए खास तरह की वेशभूषा और खास तरह की भाषा शैली का इस्तेमाल करता है | ऐसा व्यक्ति अपने नाम से कई किताबें छपवाता है | कुछ लोगों को पैसा देकर अपना प्रचार करवाता है ये लोग उस कथित गुरु कि महिमा का जहाँ तहां बखान करते हैं और उसकी कथित शक्तियों को बढ़ा चढाकर प्रस्तुत करते हैं | निकृष्ट गुरु लोगों की भावनाओं के अनुरूप उनकी श्रद्धा और विश्वास का लाभ उठाकर स्वयं को एक पहुंचा हुआ गुरु बताता है | वह अपने भी एक गुरु का निर्माण करता है, उसका महिमामंडन करता है और उस गुरु की आड़ में खुद को आगे ले जाने की कोशिश करता है | इस व्यक्ति का आध्यात्मिकता या धर्म से कोई लेना देना नहीं होता | वह लोगों के मनोविज्ञान से खेलने में माहिर होता है, और जानता है कि लोगों की अंधश्रद्धा का लाभ कैसे उठाया जा सकता है| ऐसा व्यक्ति दो धर्मों के वैमनस्य का लाभ उठाने की भी कोशिश करता है, और लोगों को धर्म की रक्षा के नाम पर खुद से जोड़ने की कोशिश भी करता है, वह देशभक्त और धर्म भक्त होने का दावा करता है और अपने नकली दुश्मन तैयार कर उनसे लड़ने का उपक्रम करता है | वह बेहद खतरनाक होता है जो लोगों को गलत शिक्षाओं ,गलत ध्यान,गलत कुंडलिनी अभ्यासों के जरिए बहुत बड़े नुकसान का भागी बना सकता है |
सच तो ये है की बाहरी गुरु की भूमिका सिर्फ आपके आन्तरिक गुरु से आपको मिलवाना है | आन्तरिक गुरु आपको कभी धोखा नहीं देता, आप स्वयं अपने आन्तरिक गुरु (चेतना) से मिलने का प्रयास कर सकते हैं, ये चेतना रुपी गुरु आपको आपके आद्यात्मिक लक्ष्य तक खुद पहुचायेगा | इंद्रजाल , मायाजाल , भ्रमजाल , शब्दजाल का अर्थ समझिये और आगे बढ़िये |
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