जीवन की समृद्धि का विज्ञान छिपा है वेदों में| लॉ ऑफ़ अट्रेक्शन का स्पिरिचुअल कनेक्शन
P ATUL VINODसितंबर 18, 2020
जीवन की समृद्धि का विज्ञान छिपा है वेदों में| लॉ ऑफ़ अट्रेक्शन का स्पिरिचुअल कनेक्शन
कुछ साल पहले आयी रोंडा बर्न की फिल्म “द सीक्रेट” और उनकी किताबों "द सीक्रेट", शक्ति, जादू ने पूरी दुनिया में तहलका मचा लिया| भारत में भी उनकी फिल्म और किताब को हाथों हाथ लिया गया| रोंडा बर्न ने इस सीरीज में “लॉ ऑफ अट्रैक्शन” को समृद्धि और तरक्की पाने का एकमात्र फॉर्मूला बताया| ये फार्मूला बेहद लोकप्रिय हुआ| बर्न ने कहा मांगो, यकीन करो और पाओ, यही “लॉ ऑफ अट्रैक्शन” है|
भारतीय ज्ञान परंपरा के “सूत्रों और विश्वासों” को एक दौर में नकार दिया गया था, अब उसी ज्ञान को नये स्वरुप में गढ़कर दुनिया में चर्चा का विषय बना दिया गया है|
भारतीय दर्शन कहते हैं कि पूरी दुनिया देवों से बनी हुई है|
“देवेभयश्च जगत्सर्वं”
इस वक्य को मज़ाक माना गया लेकिन ये नहीं समझा गया कि ये देव क्या है?
आज “क्वांटम थ्योरी” प्रचलित है इस प्रिंसिपल के मुताबिक संसार के सभी पदार्थ परमाणुओं से नहीं क्वांटम से बने हैं|
क्वांटम का अर्थ है पैकेट्स ऑफ़ एनर्जी , भारतीय दर्शन में जिसे देव कहा गया है विज्ञान उसे क्वार्क कहता है, वहीं क्वांटम विज्ञान परमाणु के अंदर क्वांटम देखता है जो उर्जा का समूह है | “क्वांटम” यानी देव यही प्राण है| अभी विज्ञान सिर्फ क्वार्क तक पहुचा है|
क्वार्क और क्वांटम अभी अलग अलग थ्योरी हैं आगे चलकर यही एक ही रूप में जाने जायेंगे| विज्ञान कहता है परमाणु में मौजूद इलेक्ट्रान प्रोटान न्युत्रोन तीनो क्वार्क से बने हैं | क्वार्क या क्वान्टा को ही वेद “देव” यही प्राण है कहता है|
यहीं से लॉ ऑफ़ अट्रेक्शन निकला| भारत में यज्ञ का विधान लॉ ऑफ़ अट्रेक्शन पर आधारित है|
लॉ ऑफ़ अट्रेक्शन कहता है
“THOUGHTS… BECOME… THINGS!”
यज्ञ में भी कामना की पूर्ती के लिए कामना को अग्नि में मन्त्र आहुति के माध्यम से विश्व में भेजा जाता है| विचार “यज्ञ” की शक्ति पाकर साकार हो जाते हैं यानि मनोकामना पूर्ती|
मनुष्य कामना से मुक्त नही हो सकता| काम ही इस स्रष्टि का आधार है इसी कामना यानि दैवीय इच्छा से दुनिया विस्तार पाती है| देव हर सूक्ष्म कण में है, देव यानि प्राण के साथ जब मन की इच्छाशक्ति जुड़ जाती है तो उस इच्छा से क्वांटम/क्वार्क परमाणु में, परमाणु पदार्थ में कन्वर्ट हो जाता है|
धर्म में कामना के त्याग कीई बात नहीं की गयी है बल्कि काम को सीमित रखने की बात कही गयी है|
काम को 4 पुरुषार्थों में एक माना गया है|
यज्ञ में ऋषि अपनी कामना को मन्त्र में बदलकर प्रक्षेपित करता है|
लॉ ऑफ़ अट्रेक्शन कहता है विचार को घनीभूत करो, उसी को बार बार दुहराओ, उसे विजुलाइज करो और ब्रम्हांड में भेजो, मानो, यकीन करो और पाओ|
क्या यही यज्ञ है ? नहीं यज्ञ “लॉ ऑफ़ अट्रेक्शन” से भी आगे का विज्ञान है| योग दर्शन कहता है, चित्त वृत्ति का निरोध करो, यानि अनावश्यक कामनाओं और प्रवृत्तियों पर लगाम लगाओ, तब मन शक्तिशाली होकर इच्छा को इच्छा शक्ति में बदलता है| इच्छा शक्ति से सम्भावनाओं के द्वार खुलते हैं|
इच्छा शक्ति से क्वांटम/क्वार्क परमाणु में, परमाणु पदार्थ रूप धारण कर सामने आ जाता है|
यज्ञ “मनोकामना पूर्ती” के लिए वेद यजमान से 8 बातों की अपेक्षा रखते हैं
इसका अर्थ है संकल्प करो, कदम उठाओ, अपनी कामना को बार बार मन ही मन दोहराओ, मेघा में लाओ, तब दीक्षा होगी, दीक्षा से प्राण/देव/परमाणु/क्वांटम/क्वार्क/मूल कण सक्रिय होगा, तब तप शुरू होगा तप में सरस्वती की कृपा प्राप्त होगी, पूषा यानि साधन उपलब्ध होंगे और ये देव रुपी क्वांटम, यूनिवर्स रुपी ब्रम्ह को प्रसन्न कर मनोकामना की पूर्ति करेंगे|
यज्ञ मनोबल से सफल होते हैं| मनोबल के साथ जुडी इच्छा पवित्र होनी चाहिए|
मन के संकल्प से प्राण/देव उपर उठते हैं|
मन शक्ति से विचार शब्द में व्यक्त होकर मंत्र बनाते हैं| मन से प्राण शक्तिशाली बनते हैं|
दुनिया भी ऐसे ही बनी| सबसे पहले ईश्वरीय मन(गॉड) में एक से बहुत होने की इच्छा जागी…
”एकोहम बहुष्याम”
इस इच्छा से पैदा हुए “गॉड पार्टिकल” इन्होने ने प्राण/देव/क्वांटम/क्वार्क/मूल कण को स्पन्दित किया, विश्व की उर्जा घनीभूत होकर पदार्थ बन गयी|
यहाँ कामना से जो स्पंदन हुआ उसे तप कहते हैं तप से जो श्रम हुआ उससे पदार्थ बना|
इस तरह इच्छा, तप और श्रम से ही सृजन होता है|
लॉ ऑफ़ अट्रेक्शन जिस तेजी से लोकप्रिय हुआ, उसी तेजी से हवा भी हो गया क्यूंकि उसमे सिर्फ इच्छा की बात कही गयी थी जो सिर्फ शेखचिल्ली की तरह सोचते रहना था| वेद ने इसे यथार्थ रूप दिया था, उसने कहा था तुम कामना करो, कामना को शक्ति दो, शक्ति से तप होगा, तप से श्रम होगा, श्रम से मनोवांछित फल मिलेगा|