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नंबर गेम में बर्बाद होता बचपन

  

नंबर गेम में बर्बाद होता बचपन  

"The real goal of education is man-making, not rat-race"

मॉडर्न एजुकेशन सिस्टम और बर्बाद होता बच्चों का भविष्य …P ATUL VINOD

Online classes for toddlers: Kids unimpressed, parents, teachers ...

लॉकडाउन के कारण बच्चे घर में ऑनलाइन पढ़ रहे हैं|  स्कूल का प्रेशर है. उन्हें फीस वसूलनी है. वे क्रूरता की हद तक बच्चों को  दिन भर खपाए हुए हैं|  माताओं को बहुत टेंशन है|  दो-तीन घंटे की ऑनलाइन क्लास होती है लेकिन होमवर्क इतना दे दिया जाता है  कि समझ ही नहीं आता क्या करें? इस सब में बच्चों और उनकी माओं को घंटों का टेंशन हो जाता है.

अब पुराना दौर तो नहीं आ सकता लेकिन आधुनिक दौर में नयी चुनौतियों के साथ बच्चों की शिक्षा व्यवस्था पर फिर से सोच विचार ज़रूरी है|

पिछले को भुला देना ही ठीक, लेकिन कुछ मामलों में पास्ट को देखना भी अच्छा होता है|

टीचर्स का काम है ऑनलाइन क्लास लेना, बच्चों को होमवर्क देना|  उन्हें भी अपनी नौकरी बचानी है|  घर बैठे अपने काम को साबित करना है और पूरी पगार बनानी है| हालाकि, जानकारी यह भी है कि उनकी पगार काटी जा रही है.

स्कूल की भी यह व्यावहारिक दिक्कत है कि उन्हें इतना बड़ा इंफ्रास्ट्रक्चर और टीचर्स की सैलरी मैनेज करनी है|  लॉकडाउन में  आम आदमी की  कमाई भले आधी हो जाए लेकिन स्कूलों की कमाई में कमी नहीं आनी चाहिए|

स्कूलों ने  फीस भरने के लिए पेरेंट्स पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने के साथ ऑनलाइन क्लासेस के जरिए अपनी दुकान जमा ली है|

बच्चे  इस एजुकेशन सिस्टम  से तंग आ गए हैं|  पढ़ाई उनके लिए बोझ से ज्यादा कुछ भी नहीं|  वो सिर्फ मजबूरी में पढ़ते हैं|

बच्चे अपनी जिंदगी को लेकर पूरी तरह कॉन्फिडेंट हैं. “आप चिंता मत करो मम्मी पापा” हम  अपना भविष्य मैनेज कर लेंगे|

लेकिन मम्मी पापा बेहद परेशान हैं|  उन्हें अपने  बच्चे के भविष्य की चिंता पल पल सताती है|  एक नंबर भी कम आ जाए तो उन्हें लगता है कि बच्चे का भविष्य खतरे में है|

इसलिए वो ऑनलाइन क्लासेस में भी बच्चों को धकेलते रहते हैं, फिर जो होमवर्क मिलता है उसके लिए प्रेशर डालते रहते हैं|

इतने तनाव और दबाव के अलावा बच्चों को मिलता क्या है?

लॉकडाउन के कारण सरकारी स्कूल नहीं खुलवा रही,  सरकार को मालूम है कि जिंदगी ज्यादा महत्वपूर्ण है, पढ़ाई तो होती रहेगी| और वास्तव में यही सच्चाई है कि जिंदगी ज्यादा महत्वपूर्ण है पढ़ाई नहीं|  जिंदगी के लिए पढ़ाई है पढ़ाई के लिए जिंदगी नहीं है|

Are our students (and their parents) victims of a rat race

आप और हमारी पीढ़ी 5 से 14 साल  की उम्र तक पढ़ाई को लेकर कितनी संजीदा थी जरा सोचिए.

Ashram Schools for Tribal Students in Madhya Pradesh ...आज इस देश पर राज करने वाले राजनेता, आईएएस, आईपीएस, वैज्ञानिक,  डॉ एपीजे अब्दुल कलाम  जैसी अनेक महान चेतनायें,  जिनकी अपने-अपने विषयों पर जबरदस्त पकड़ रही है, उनका बचपन, पढ़ाई के बोझ से मुक्त रहा है|  उस वक्त सरकारी स्कूल ही हुआ करते थे, वहां पढ़ाई किस तरह की होती थी ये सभी को मालूम है| वहाँ शिक्षा इस तरह दी जाती थी कि बच्चे पढ़ाई के बोझ से मुक्त होते थे. माता-पिता भी इस विषय में ज्यादा चिंता नहीं पालते थे.

होश आने पर पढ़ाई के प्रति प्रतिभा का झुकाव होता था,  वो नौवीं दसवीं क्लास के बाद ही सजग होता था, इसके बाद के 4,5 साल में ही इतना कुछ गेन(अर्जित) कर लेता था कि अपने क्षेत्र में एक्सीलेंस हासिल कर सके|

Journey of Dr. A.P.J. ABDUL KALAM – admire2newoutlook

आज हम और आप जिस स्थिति में हैं,  क्या उसी स्थिति में पहली कक्षा 1से लेकर 12  तक मिले अच्छे नंबरों का कोई योगदान है?

10वी की मार्कशीट सिर्फ जन्म तारीख दिखाने के लिए काम आई.

इस देश में राज करने वाले  तमाम बड़े राजनेता या व्यवसायी अपने एजुकेशन के कारण सक्सेसफुल हैं या अपने  जुझारूपन,  निर्भीकता, जनसमूह के बीच में बोलने और नेतृत्व क्षमता के कारण?

Narendra Modi's Early Life: His family, education and childhoodहमारे देश के कितने प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री, गवर्नर ऐसे हुए हैं जिनका एजुकेशन सरकारी स्कूलों में नहीं हुआ?

हम अपने बच्चों की पढ़ाई में पैसा,समय, श्रम और भावनाओं का इन्वेस्टमेंट करते हैं| इसके बावजूद उनका बचपन बुरी तरह प्रभावित होता है इसके बदले उन्हें क्या मिलता है?

टॉप करना अपने अहंकार को पोषण देता है,  जिंदगी की वास्तविक चुनौतियों में  हमारे मार्क्स काम नहीं आते|

Without fundamental reforms to the education system, Indians will not innovate

लाइफ में सक्सेस मिलती है लीडरशिप से ,  लाइफ में सक्सेस मिलती है निर्भीकता से,  लाइफ में सक्सेस मिलती है शार्प ब्रेन से.  लाइफ में सक्सेस मिलती है कूल माइंड से,  लाइफ में सक्सेस मिलती है प्रैक्टिकल अप्रोच से,  लाइफ में सक्सेस मिलती है चुनौतियों से लड़ने की क्षमता और
अधिकतम धैर्य से|

जो बच्चे टीचर की शाबाशी पाते हैं, वही सक्सेस नहीं होते; जिन्हें टीचर की डांट और पिटाई पड़ती है वो भी शाबाशी पाने वालों से ज्यादा आगे निकल जाते हैं|

The education system, with terrible teaching that programs Indians to focus on tests, must change and put a focus on learning instead.

हम बच्चे को कैसे अच्छे से अच्छे स्कूल में एडमिशन दिला पायें?  उस स्कूल में एडमिशन दिलाने के लिए हमें अप्रोच लगानी पड़ती है,  बड़ी बात ये है कि उस स्कूल का मैनेजमेंट हमसे बात ही नहीं करता,  कभी जरूरत हो तो हमें बाहर खड़े प्यून से मिलकर ही वापस आ जाना पड़ता है|

स्कूल के प्रिंसिपल इतने अहंकारी होते हैं कि वो बच्चों के पेरेंट्स से सीधे मुंह बात नहीं करते| पेरेंट्स टीचर मीटिंग में ज्यादातर टीचर के मुंह पर आपके बच्चे की शिकायतें ही होती हैं| उनके मुंह से तारीफ के 2 शब्द भी नहीं निकलते|

बच्चों के सामने उनकी शिकायतें करके उनका मनोबल तोड़ना टीचर्स का काम होता है|

आधुनिक भेड़चाल के कारण बच्चों को ऐसी शिक्षा व्यवस्था में धकेलना पड़ता है जहां बहुत  टॉर्चर है|

Marks inflation shows we need urgent education reforms

बच्चे स्वभाव से चंचल और शरारती होते हैं|  हमने भी अपने सरकारी स्कूलों में शरारतें कीं, लेकिन टीचर्स की शिकायतें इतनी नहीं होती थी,  क्योंकि शरारत करने के लिए बहुत समय मिलता था|

6 पीरियड्स में से तीन-चार तो खाली  मिल ही जाते थे|  टीचर ही नहीं होते थे, कभी छुट्टी हो जाती थी, कभी दूसरे काम आ जाते थे उन्हें|  ऐसे में मस्ती करने का पर्याप्त समय था|

दोपहर बाद  की पारी में हफ्ते में दो-तीन छुट्टियां मिल ही जाती थी| होमवर्क का बहुत ज्यादा बोझ हमने सरकारी स्कूलों में कभी महसूस नहीं किया| 

बच्चे कुशाग्र होते हैं उनके टीचर मंदबुद्धि होते हैं क्योंकि उन्हें बच्चे के अंदर की बुद्धि की क्षमता नजर नहीं आती,  उन्हें बच्चों की हाजिर जवाबी के पीछे मौजूद सेंस ऑफ ह्यूमर नजर नहीं आता,  उन्हें बच्चों के हंसाने की क्षमता के पीछे मौजूद बुद्धि और याददाश्त का कमाल नजर नहीं आता|

जो बच्चे दूसरों को हंसा सकते हैं कहानियां और डायलॉग सुना सकते हैं, निश्चित ही उन्हें बहुत कुछ याद रखना होता है| बुद्धि का इस्तेमाल करना होता है, तभी वो दूसरों को प्रभावित कर पाते हैं, ये क्षमता भविष्य में उन्हें बहुत काम आती है|

जो बच्चा खुला होता है वही तो स्वतंत्र होता है वही निर्भीक निडर होकर अपनी कंपनी,  संस्था  या टीम का नेतृत्व कर सकता है|

हमारे मन में टीचर्स के प्रति अगाध श्रद्धा थी, प्रेम था.उन्हें हम भोजन पर घर बुलाया करते थे| स्कूल के बाद उनके घर जाकर उनके काम में हाथ बताया करते थे|  कई बार तो उनके साथ कई विषयों पर लंबी लंबी बातें करते थे|  लेकिन आज बच्चे टीचर से इतनी नफरत करते हैं कि घर आने के बाद वो उनका नाम नहीं लेना चाहते|

आज के दौर में बच्चे नही मंदबुद्धि, अशिष्ट और असंवेदनशील हैं शिक्षक|

भारत ने अब तक जो भी हासिल किया है वो कॉन्वेंट और पब्लिक स्कूल की शिक्षा पद्धति के कारण नहीं|  भारत ने इतने समृद्ध साहित्य की रचना की है तो वह  मॉडर्न एजुकेशन सिस्टम के कारण नहीं, अपनी पुरानी घिसी पिटी सहज शिक्षा व्यवस्था के कारण|

स्कूल पेरेंट्स का आर्थिक शोषण कर रहे हैं उससे कोई फर्क नहीं पड़ता करते रहे|  लेकिन बच्चों के भविष्य के साथ जो खिलवाड़ की जा रही है उसके नतीजे काफी खतरनाक हैं|

स्कूल के टीचर और प्रिंसिपल का काम बच्चों और मां-बाप के बीच आतंक फैलाना नहीं|  लेकिन कान्वेंट स्कूल की तो परंपरा ही है कि वहां का प्रिंसिपल खौफ का पर्याय बन जाए|

हमारे स्कूल कहीं बच्चों के लिए जेल  तो नहीं बन गए|  भारत का भविष्य स्वतंत्र, निर्भय और प्रतिभाशाली होना चाहिए ना कि स्कूल के अत्याचार से डरा हुआ शोषित. पीड़ित. दबा हुआ बिखरे हुए व्यक्तित्व का स्वामी|