P ATUL VINOD --
भारत में शुरुआत से ही काम को लेकर विरोधाभासी सोच रही है| भारतीय संस्कृति काम को देव कहती है जबकि कुछ साधु काम को शैतान भी कहते हैं| बच्चे स्वाभाविक रूप से बड़े होते होते काम की भावना से भरने लगते हैं लेकिन तथाकथित काम विरोधी साहित्य उन्हें ग्लानी का एहसास कराता है|
"In Sanatna, sexual intercourse is considered neither evil nor sinful nor dirty. Sex is divine, and the basis of creation and preservation"
सवाल ये उठता है कि काम देव हैं या शैतान? ओशो रजनीश जैसे कुछ ज्ञानी संभोग से समाधि की बात करते हैं , जबकि कुछ संत, सन्यासी ब्रह्मचर्य से समाधि की बात करते हैं| तंत्र में भोग से योग तक की यात्रा है जबकि अन्य योग परम्पराओं में काम के निरोध से योग की सिद्धि का महात्म्य बताया गया है|
करें तो क्या करें जाएं तो जाएं कहां? एक जगह सेक्स का इतना महिमामंडन है लगता है उसके बिना अध्यात्म(कुण्डलिनी जागरण) में आगे बढ़ा नहीं जा सकता|एक जगह इतनी घृणा कि लगता है की छोटा सा चिंतन भी आ गया तो सदियों की साधना का फल एक क्षण में खत्म हो जाए|"वेद पूराण कहीं काम के नाश की बात नहीं करते वे काम पर विजय की बात करते हैं" प्रैक्टिकली हर साधक का सन्यासी और ब्रह्मचारी बनना संभव नहीं है|
अधिकांश लोग गृहस्थ मार्ग में हैं| स्कूल कॉलेज में भी सेक्स से जुड़ी बातें खूब होती है इसलिए उनसे बचना संभव नहीं| बच्चा इंटरनेट पर अपनी स्टडी मटेरियल की खोज करता है और निकल आता है अडल्ट कंटेंट| मां बाप सेक्स के प्रति दुर्भावना और छिपाव की बातों से प्रभावित होकर इस विषय पर उनसे कुछ बात करते नहीं, ऐसे में बच्चे भ्रमित हो जाते हैं, सही मार्गदर्शन ना मिलने से या तो वो काम के वशीभूत हो जाते हैं या फिर आत्मग्लानि से भर जाते हैं|
लेकिन काम की निंदा के कारण अपराधबोध से ग्रस्त होने की ज़रूरत नही| भारत में कभी भी काम का विरोध नहीं किया गया| इसलिए कामसूत्र लिखने वाले व्यक्ति को “ऋषि” वात्सायन कहा गया| भारतीय सनातन धर्म में मर्यादा में स्थापित किये गए काम सम्बन्ध भगवान की आज्ञा के विरोध में नहीं माने जाते|
"For a householder, fulfillment of sexual desire (kama) is one of the chief aims of human life"
इसके उलट काम को ईश्वर की सृष्टि के क्रम को चलाने की श्रंखला के लिए जरूरी बताया गया है|
हमारे यहां काम और रति, देवता और देवी के अंतर्गत आते हैं|
Sanatana Dharma does not ascribe sexual desires to the demons only. Gods, humans and demons all engage in it
कहा जाता है कि भारतीय आध्यात्मिक और धार्मिक परंपरा में कामसूत्र नामक ग्रंथ अद्भुत है| अनेक शिल्पी और चित्रकार इसी ग्रंथ से प्रेरणा लेकर अपनी कृति निर्मित करते हैं l
जो मानवीय कल्पना ओं का उत्कृष्ट स्वरूप दिखाई पड़ता है| हमारे देवी देवताओं को मंदिरों में नायक नायिकाओं के रूप में इसलिए प्रस्तुत किया गया है क्योंकि हमारे धर्म शास्त्रों में प्रणय को पूरी तरह मान्यता दी गई है|
भारतीय सनातन सभ्यता तालिबानी निष्ठुर परंपरा नहीं है जिसमें मनगढ़ंत बातों के आधार पर कठोर अंकुश लगा दिए गए हों| भ्रमित होने की जरूरत नहीं है भोग और योग दोनों ही एक दूसरे के विरोधी नहीं है| इन दोनों को एक दूसरे के विरोध में खड़े करने वाले अपने अपने दृष्टिकोण से बातें प्रस्तुत करते हैं|
हलाकि दोनों ही अपनी जगह सही हैं बस समझ का फेर है| दोनों के आयाम और पात्र अपात्र अलग अलग हैं| भेद की दृष्टि हमारी समझ के स्तर के अंतर से पैदा हुयी| काम और भोग दोनों एक दूसरे के सापेक्ष हैं| चेतना की उच्च अवस्था में भेद खत्म हो जाते हैं|निन्दा करने वाले भी काम की प्रक्रिया से पैदा हुए फिर भी उसकी निंदा करते हैं क्योंकि वो निंदा करने के लिए प्रशिक्षित हैं|
उन्हें उस तरह का मटेरियल मिला जिसमें इस प्रक्रिया की घोर निंदा की गई है| उन्होंने जो सीखा वही दूसरों को सिखा रहे हैं| यदि वो इस प्रक्रिया की निंदा करते हैं तो सबसे पहले उन्हें खुद की निंदा भी करनी पड़ेगी, खुद से घृणा करनी पड़ेगी क्योंकि खुद भी उसी प्रक्रिया की देन है|उनके माता पिता में काम की भावना प्रबल हुई तभी उनके पैदा होने की संभावना बनी|
एक गृहस्थ भी ब्रम्हचर्य धारण कर सकता है और एक सन्यासी भी| गृहस्थ का ब्रम्हचर्य काम-युक्त होगा और सन्यासी का ब्रम्हचर्य काम-मुक्त होगा|काम को बहुत सीमित और संकुचित कर दिया गया है| हम यही मानते हैं कि काम यानी सेक्स, जबकि काम में अच्छे खान-पान, रहन-सहन, अच्छे कपड़े, मनोरंजन, आराम, सुगंध, प्रेम, ऐश्वर्य, सौन्दर्य भी शामिल हैं|
भव्यता, सौंदर्य, आकर्षण और विलासिता से भरे हमारे प्राचीन मन्दिर और महल “काम” समर्थक ही थे| भव्यता के साथ शालीनता, सौंदर्य के साथ सहजता, प्रेम के साथ मर्यादा काम को भोग से योग तक ले जाती है|काम भाव मनुष्य की सहज स्थिति है|
एक बच्चा बच्चा किशोरावस्था आते-आते तक काम से जुड़ी हुई भावना से स्वाभाविक रूप से प्रभावित होगा| यदि उसके प्रति निंदा से भरा होगा तो अपराध बोध से ग्रस्त होकर पूरा जीवन नर्क बनाने लेगा| लेकिन काम के रूप में वो प्रेम और सौंदर्य के साथ शालीनता का आचरण सीखेगा तो यही काम “राम” में परिवर्तित हो जायेगा|

