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रहस्मयी ॐ 🕉

Unlocking the Mystery of ॐ--- BY  P ATUL VINOD 



रहस्मयी ॐ, इसी से पैदा हुआ यूनिवर्स..इसी से चलते हैं अणु-परमाणु.. 

ओंकार…  इस छोटे से अक्षर में  न जाने कितनी ताकत है…. इसे अक्षर कहें या शब्द? …

ॐ शब्द या अक्षर नहीं  ये साक्षात परम ब्रह्म परमेश्वर है|

विज्ञान की दुनिया में ये बात अजीब लगती है|

भारतीय सनातन धर्म में ॐ को प्रणव कहा जाता है| प्रणव को ही परम शिव कहा जाता है|

ग्रंथ पुराण वेद उपनिषद हर जगह ॐ ही ओम है|

ॐ इतनी महिमा क्यों है?
कुछ तो है इस एक ओंकार में…   कि अध्यात्म के शिखर पर पहुंचा हुआ हर व्यक्ति  इससे सराबोर हो जाता है|  जब आध्यात्मिक साधनाएं फलीभूत होती है तो यही ओंकार स्वतः ही रोम-रोम में गुंजायमान होने लगता है| साधना के शिखर पर अंदर से भी ओंकार निकलता है और बाहर भी ओंकार  सुनाई देता है|

Why Omkar?

ये सच्चाई है “ॐ” सिर्फ उच्चारण नहीं, ओम सिर्फ वाणी नहीं, ओम सिर्फ शब्द या अक्षर नहीं है|  ॐ ही सुपर पावर है| ओम की ही शक्ति से  इस यूनिवर्स का जन्म हुआ|

इसी ओम की शक्ति से  पूरा यूनिवर्स चलाएमान(गतिशील) है|

आप कहेंगे इस एक ओम की ध्वनि से कैसे सृष्टि पैदा हुई और कैसे इसी से दुनिया चल रही है?

यूनिवर्स  के निर्माण से पहले सिर्फ और सिर्फ ॐ ही मौजूद था| इस ॐ के नाद से ही  ब्रह्मांड में मौजूद पदार्थ गतिशील होकर इकट्ठा हुआ| शून्य में मौजूद सारा मैटर एक जगह इकट्ठा हो गया|

ये मैटर अंडाकार था. इसे हिरण्यगर्भ, शिवलिंग, परम शिव और परम ज्योति कहते हैं| विज्ञान इसे कॉस्मिक एग, यूनिवर्सल एग कहता है|  ॐ से उस पदार्थ का तापमान बढा, पदार्थ में विस्फोट हुआ और यूनिवर्सल एग टूटकर गैलेक्सी (ग्रह नक्षत्र तारों) में बदल गयी|


मैटर को गर्म किसने किया फिर वो फूटकर कैसे गृह नक्षत्र तारों में बदला? कौन था इसके पीछे?

विज्ञान कहता है इंविजिबल फ़ोर्स है इस सबके पीछे .. गोड पार्टिकल , इनविजिबल मैटर या हिग्स बोसॉन

वेद कहते हैं वही ॐ है| ओम के कारण सृष्टि में मौजूद प्रत्येक परमाणु गतिशील है|

ॐ है जो परमाणु के नाभिक के चारों ओर इलेक्ट्रॉन प्रोटॉन और न्यूट्रॉन को गतिशील रखता है|  ये वही है जो हमारे अंदर के सेल्स को  चलाएमान रखता है|

ओम है इसलिए वाइब्रेशन है|  ओम की शक्ति से अलग-अलग वाइब्रेशन पर परमाणु जुड़ते और टूटते हैं|

परमाणुओं के खास वाइब्रेशन पर जुड़ने से ही आकृतियों का निर्माण होता है|

हम बने हैं परमाणुओं के ख़ास स्पंदन के कारण, वो वाइब्रेशन ओम ही है|

जिस तरह दो परमाणुओं की टक्कर से ध्वनि(साउंड) पैदा होती है ठीक उसी तरह ओम की ध्वनि से दो परमाणुओं की टक्कर होती है|

श्री कृष्ण ने श्रीमद्भागवत गीता में  ओंकार को वाणी  के प्रारंभ का पहला अक्षर बताया है|

इतना ही नहीं श्रीकृष्ण कहते हैं कि ये जो पहला अक्षर है “ओंकार” वो और कोई नहीं मैं खुद हूँ|

“गिरारम्भेम्येकम अक्षरम”



यजुर्वेद कहता है ओम ही ब्रह्म है “ॐ खं ब्रह्म”

ऐसा क्या है ॐ में जो ॐ को ब्रह्म कहा जा रहा है|

एक जगह कहा गया है किस संपूर्ण जगत ही ओम है|

“ॐ इति सर्वं” 

THE SECRET OF OM MANTRA

इस ॐ के अक्षर में  बड़ा रहस्य छिपा हुआ है|

ॐ  ओम वो अक्षर है  जिसमें परमात्मा की सारी शक्तियां रिफ्लेक्ट होती हैं|

ॐ  में ही परमात्मा छिपा हुआ है और ॐ ही उस परब्रह्म परमेश्वर का प्रकाश और शक्ति का व्यक्त स्वरूप है|

और यदि ओम इतना शक्तिशाली है तो क्यों ना उसका पूरा लाभ लिया जाए?

ओम को समझा जाए, ओम को पूजा जाए, और ओम को ही अंगीकार कर ॐ में मैं, और मैं  में ॐ, को साकार कर दिया जाए|

हम ॐ को जितना समझेंगे, जितना स्वीकार करें, जितना ॐमय बनेंगे उतना ही परमात्मा हामारे अंदर उतरेगा, या हम उस परमात्मा के अंदर अभिव्यक्त होंगे|

ओंकार संकोच नहीं, ओंकार सीमा नहीं, ओंकार परिधि नहीं, ओंकार की कोई व्याख्या नहीं, ओंकार, अपरिमित, असीम,  अविनाशी है  यही ओंकार सर्व शक्तिशाली, सर्वव्यापक और सर्वग्राही है|  यही ओंकार सर्व कल्याणकारी है|  ये ओमकार ही है जो सर्वाधार  है|

ॐ का “अ” अहम् है यही मैं हूँ|

“अ” का प्रवेश करते ही “उ” मिलता है जो उसके साथ सम्बन्धित होने का संकेत देता है, जैसे दूध और पानी मिल जाते हैं वैसे ही मेरा अहम् और उसकी उर्जा में समाहित हो जाता है| क्षुद्र विराट में मिल जाता है, व्यष्टि समष्टि हो जाती है|

इससे आगे है “म”का म जो मोक्ष है “म” जो मुक्ति है “म”का ही मिलन है| तब द्वैत (Duality) खत्म हो जाता है बस अद्वैत रह जाता है|