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भक्ति क्या है ? 🌸

भक्ति 🌻
हम ईश्वर की भक्ति क्यों करे ?  जब मनुष्य अपने आस पास नजर आने वाली चीजों से और जीव- जन्तुओ से ज्यादा उस परमात्मा को चाहने लगता  है तब उसे भक्ति कहते है l

प्रेमी और प्रेमिका में एक दूसरे के प्रति जो चाह होती है वही मनुष्य और ईश्वर  के बीच में हो जाये तो उसे भक्ति कहते है l
भक्ति कभी भी हमारे सांसारिक जीवन की राह में बाधा नहीं बनती🙏
  भक्ति हमारे नेचर को परिष्कृत (अपडेट और अपग्रेट )करती है lहम अपने नाक, कान, आंख, जीभ और स्किन से जो देखते है महसूस करते हैं  वही हमे बेहतर नज़र आता है l हम उसके गुलाम बन जाते है हर एक अच्छी इकाई के लिए हमारे मन में एक खास तरह का अटैचमेंट होता है l यह अटैचमेंट कई बार बाउंडेशन बन  जाता है इसे ही आसक्ति कहा जाता है l

हमारा मन जड़ (भौतिक )चीज़ो से बंधना चाहता है इस बंधन से मुक्त होकर परमात्मा से बंधना ही भक्ति है l दुनिया की सारी सुख सुविधाएं व्यवस्थाएं संसाधन मनुष्य हमारा लक्ष्य नहीं है l
यह सब हमारी यात्रा के सहभागी है हमारी सर्वोच्च मंजिल की राह में हमारे संसाधन और मानवीय सम्बन्ध साधन बनना चाहिए इनमे से कोई भी हमारी असली मंजिल में सहायक नहीं हैं l तो उससे पिंड छुड़ाना बेहतर है l

हमारा जीवन हवा के झोंके की तरह है l एक पल में उछलने लगते है दूसरे ही पल में रोने झींकने लगते है
अब सवाल उठता है कि भक्ति का मार्ग क्या है ?
ईश्वर की भक्ति क्या है ?
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ईश्वर से प्रेम करना है या इससे आगे भी कुछ है ?
भक्त का पहला कर्तव्य तो ईश्वर के प्रति प्रेम रखना है l
दूसरा उसकी बनाई इस दुनिया से प्रेम रखना है l
तीसरा ऐसे कर्म करना है जिससे परमात्मा के विधान में सहयोग हो l अपने मन को अच्छी बातो से पोषित करना, अच्छे लोगो का सम्मान करना, उनकी सहायता करना, अपने से नीचे के स्तरों पर जीने वाले लोग और वन्य जीव -जन्तुओ का ख्याल रखना उनकी देखभाल करना, उनकी मदद करना l

हमे जो भी मिला है उस पर इस दुनिया के दूसरे लोगो का भी अधिकार है l हमे मिलने वाला अन्न हो या पैसा इसका एक हिस्सा दान और कल्याण के लिए है l सच्चाई, निष्कपटता, सरलता, दया, प्रसन्नता, समभाव ईश्वर की भक्ति का अभिन्न हिस्सा है l धर्मांध और कट्टरपंथी बाते तो बड़ी बड़ी करते है लेकिन इनका काम लड़ाई झगड़े कराना होता है, भगवान के नाम पर दुनिया की व्यवस्था बिगाड़ना होता है l

ऐसे लोग ईश्वर के भक्त नहीं कहला सकते जो मुँह में राम बगल में छुरी lखुद को दुखी मानने वाले, दुर्बल, कमजोर, हताश और निराश लोग ईश्वर से नहीं जुड़ सकते l सबसे पहले व्यक्ति को खुद को सफल बनाना पड़ेगा l रस्ते में आने वाले दुःख को भी सहज स्वीकारना होगा l

हम ईश्वर की भक्ति क्यों करे ?
सब कहते है की ईश्वर की भक्ति करो लेकिन ईश्वर की भक्ति क्यों करे ?ईश्वर की भक्ति से हमे क्या मिलेगा ?
क्या हमारी समस्याओ का समाधान होगा ?
मन की मुराद पूरी होगी, या आज से ज्यादा बेहतर जीवन होगा ?
बड़ी मुश्किल से यह जीवन मिला है तो फिर सारे सुखों का उपभोग क्यों ना किया जाये ? सच भी है मनुष्य को जीने के लिए जरूरी व्यवस्थाएं संसाधन रिश्ते नाते तो मिलने चाहिए l
मनुष्य वर्तमान को बेहतर करने और अगले जीवन में और अच्छे लोक में जाने के लिए ईश्वर की भक्ति करता हैl

आप अपने घर में किसी पालतु -पशु को देखो जब तक आप उसे कुछ देते हो तो कैसे खाता है ?जब तक वो आपके दिए खाने को ग्रहण करता है तब तक सबसे सुखी नज़र आता है l
क्युकि वो शरीर के स्तर पर जीता है उसे थोड़ी भी व्यवस्थाएं मिल जाये तो उसमे वो बहुत आनंद लेता है l पाला गया कुत्ता अपने आपको शहंशाह से कम नहीं समझता l
हम भी यदि छोटी छोटी चीज़ो में इतना ही रस लेते है तो हमे समझ लेना चाहिए की हमारी िस्थति क्या है ?

खाने पीने और रहने की चीज़ो में ज़िंदगी लगा देने वाले लोग पशुओं की तरह माने गये है l मनुष्य पशु के स्तर से उपर सोचने के लिए है l
आत्मा परमात्मा की बाते पशु पक्षियों के लिए नहीं है इन बातो को समझने की क्षमता का उपयोग आत्मा परमात्मा के विज्ञान को समझने में भी करें l
स्वर्ग -नरक सुख -दुःख हमारे जैसे साधारण मनुष्य के खेल है l
स्त्री पुरुष के पीछे धन के पीछे मान सम्मान के पीछे भागने वाले लोग जीवन के मर्म को समझने में अभी पीछे है l
यूँ भक्ति मार्ग में लाखो लोग चलते है लेकिन सफल बहुत कम होते है क्युकि उन्होंने परमात्मा को कभी निस्वार्थ प्रेम नहीं किया l

स्वार्थ और प्राप्ति की अभिलाषा में किया गया परमात्मा प्रेम कभी फल नहीं देता l
जो लोग आज हमारी ज़िंदगी में बहुत महत्व रखते है, कल वह हमसे दूर हो सकते है सोचे कुछ साल पहले जो लोग हमे बहुत अच्छे लगते थे आज वो हमारी जिंदगी में नहीं भी है तो भी हमें फर्क नहीं पड़ता l
हमें ऐसा लगता है कि हमारे आस पास जो कुछ है वही सब कुछ है लेकिन हमसे हमारी प्रिय चीज़े छीन भी जायेगी तो भी हम जी लेंगे l

पति के मरने पर पत्नी जीती है और पत्नी के मरने पर पति भी जीता है कुछ दिन बाद तो लोग दुसरी शादी रचा लेते है l
दुनिया के तमाम तत्वदर्शी एक ही नतीजे पर पहुंचे है भौतिक जरूरत अपनी जगह है लेकिन इंसान को  अपनी आध्यात्मिक जरूरत पर भी ध्यान देना होगा l
अतुल विनोद *