, नाक सूंघ रही है, जीभ स्वाद ले रही है| ये चेतना के बहुत सामान्य काम हैं जिन्हें इसकी जाग्रति नहीं माना जाता| चेतना की सामान्य अवस्था में मन इसके ऊपर नियंत्रण करता है| लेकिन मन आन्तरिक शक्ति को बाहर की गतिविधियों में उलझा कर नष्ट करता रहता है| “मन” आंख, नाक, कान, जीभ और त्वचा के जरिए शक्ति को बाहर प्रवाहित करता है| मैंने पहले ही बताया था कि चेतना मन + प्राण और आत्मा से मिलकर बनी है|
चेतना = मन+प्राण+आत्मा
चेतना की प्रसुप्त अवस्था में “मन”, प्राण और आत्मा पर सवार होता है| जब चेतना जागृत हो जाती है “आत्मा” मन और प्राण पर सवार हो जाती है| उस वक्त आत्मा की सत्ता शक्तिशाली हो जाती है|इसीलिए चेतना की इस जागृति को आत्मशक्ति का जागरण भी कहा जाता है| जब चेतना यानी कुंडलिनी जागृत हो जाती है, वह अपनी क्रियाशीलता से अंदर दबे हुए संस्कारों को उखाड़ कर बाहर फेंकना शुरू करती है| चेतना की जागृति का अर्थ ये नहीं कि हम लक्ष्य तक पहुंचना गए हैं| यहां से तो यात्रा की शुरुआत होती है| जागृत चेतना से अंदर के बुरे संस्कार डर जाते हैं और वो उसे फिर से सुलाना चाहते हैं| नकारात्मक संस्कार बार बार आन्तरिक शक्ति की राह में रोढा खड़ी करते हैं| जन्म जन्मांतर के काम, क्रोध, मद, मोह, लोभ के संस्कार इतनी आसानी से नहीं जाते उन्हें बाहर निकालने के लिए जागृत कुंडलिनी शक्ति विभिन्न क्रियाओं का सहारा लेती है| योग के आसन, कंपन, मुद्राएं, प्राणायाम, बंध जैसी बहरी और आंतरिक क्रियाओं के ज़रिये कुंडलिनी संस्कारों को मिटाने का काम करती है| जागृत कुंडलिनी को मनुष्य को संस्कारों और रोगों से मुक्ति दिलाने में बहुत मशक्कत करनी पड़ती है| अलग-अलग तरह की शारीरिक क्रिया-प्रतिक्रिया, हाव-भाव, ऊर्जा का आवागमन, यह सब शक्ति की जागृति के संकेत होते हैं| संस्कारों का प्रभाव खत्म करने के बाद यह आंतरिक शक्ति शरीर के विभिन्न शक्ति केंद्रों(चक्रों) को शक्तिशाली बनाती है| धीरे धीरे यह आत्मशक्ति अपने ऊपर के सारे आवरणों को हटा देती है| जब आत्मा के ऊपर से सभी आवरण हट जाते हैं तो हम उसे शुद्ध रूप में देख पाते हैं इसी को आत्म-ज्ञान, आत्म दर्शन या आत्म-साक्षात्कार कहते हैं| शक्ति की जागृति के बाद लक्ष्य तक पहुंचना कठिन होता है| यदि हम शक्ति को पूरा सहयोग करते हैं तो वह हमारा रास्ता आसान कर देती है| जागृत कुंडलिनी शक्ति मां की तरह है, जो हमें धो-पोंछकर साफ सुथरा बनाती है|जागृत शक्ति के आगे समर्पण करने वाला साधक अपनी आध्यात्मिक यात्रा को आसानी से पूरा कर लेता है| पहले यह शक्ति अपने आप से अलग नजर आती है लेकिन पूर्णता की स्थिति में वही शक्ति हमारी आंतरिक शक्ति नजर आने लगती है और वह शक्ति पूरे विश्व में दिखाई देती है|
