नज़रिया
ATUL VINOD:-
इस दुनिया को बनाने वाली शक्ति एक ही है| विज्ञान धीरे-धीरे उस तत्व की तरफ पहुंच रहा है जिस तत्व ने इस पूरी दुनिया की रचना की| विज्ञान उस तत्व को डार्क मैटर कहता है उसे ही हिग्स बोसोन या गॉड पार्टिकल कहा जाता है| नॉर्मल मैटर को सुगठित कर अलग अलग आकाशगंगायें बनाने वाला यह डार्क मैटर विलक्षण है| इसी डार्क मैटर से नॉर्मल मैटर उत्पन्न हुआ| विज्ञान जिसे डार्क मैटर कहता है| ये एक अदृश्य सत्ता है जो दिखाई नहीं देती लेकिन निर्माण नियंत्रण करती है|
इस विश्व का नियंता निर्माण और नियंत्रण करने वाला परमपिता परमेश्वर कौन है? इसके बारे में अलग-अलग धर्म ग्रंथ अपने-अपने अनुसार व्याख्या करते हैं| ब्रह्मांड के सिद्धांत, संरचना और शुरुआत से लेकर अब तक की जानकारी, इस दुनिया में मौजूद प्रत्येक डीएनए में कोडेड हैं |
अध्यात्म के शिखर पर पहुंचे हुए व्यक्तियों को सृष्टि के निर्माण से लेकर अब तक की यात्रा के बारे में कुछ संकेत मिलते हैं| इन्हीं संकेतों को अपनी उच्च रचनात्मक शक्ति से डीकोड करके वे मानव जाति को इस रहस्य के बारे में बताने की कोशिश करते हैं| हालांकि ब्रह्मांड जितनी विलक्षण,अद्वितीय और अनंत सत्ता के बारे में अभिव्यक्ति मनुष्य की सीमाओं से परे है|
उच्च चेतना शक्ति संपन्न मनुष्यों ने ईश्वरीय रहस्य और सिद्धांतों को अपनी भाषा में, सुगम और सरल तरीके से, कुछ उदाहरण कथा और कहानियों के साथ आम लोगों तक पहुंचाने की कोशिश की|
यह बातें सबसे पहले विश्व की सबसे प्राचीन भाषा संस्कृत में लिपिबद्ध की गई| बाद में इन्हें अन्य भाषाओं के जानकार विद्वानों ने अपने अपने अनुसार परिवर्तित और परिष्कृत किया| हर एक विद्वान ने अपने-अपने देशकाल परिस्थितियों के अनुसार ईश्वरीय ज्ञान को वहां के रीति-रिवाजों परंपराओं और मान्यताओं के अनुरूप समझाने की कोशिश की|
मूल ईश्वरीय ज्ञान देश काल और परिस्थितियों के अनुसार बदलता चला गया| बाद में मनुष्य की संकुचित बुद्धि ने उस ज्ञान पर अपना अधिकार जमाना शुरू कर दिया| संभव है लिखने वालों ने अपनी श्रेष्ठता साबित करने के लिए अपनी ओर से कुछ बातें जोड़ दी| लोगों को उस धर्म को मानने के लिए कुछ डराने वाली बातें भी जोड़ दी गयी|
धर्म ग्रंथों का प्रकाशन कब शुरू हुआ? अब से कुछ सौ साल पहले जब प्रिटिंग प्रेस का आविष्कार हुआ इससे पहले हजारों साल तक एक कान से दुसरे तक फिर लिपि का अविष्कार हुआ तो इन्हें लिखा गया|
मूल ईश्वरीय ज्ञान में थोड़े थोड़े परिवर्तन के साथ अलग-अलग धर्म, मत, पंथ, संप्रदायों का निर्माण होता चला गया, बात वही थी, ज्ञान वही था लेकिन, स्थानीय संस्कृति सभ्यता और भाषा के आधार पर उसमें जो परिवर्तन किए गए, उससे ईश्वरीय ज्ञान अलग-अलग धर्मों में बट गया|
एक इस्लाम के अनुयायी नकीबुल हक लिखते हैं, एक ईश्वर ने जो धर्म स्थापित किया था उसमें आगे चल कर अनेक कमियां आ गयीं. इसलिए उसी प्राचीन, शास्वत,सनातन धर्म को स्थापित करने के लिए मनु (हज़रत नूह अलैहिस्सलाम) को भेजा जिन्होंने धर्म ग्रन्थ (संभवतः) वेद संसार को दिए. फ़िर उसी ईश्वर की इच्छापूर्ति के लिए हज़रत मुसा अलैहिस्सलाम धर्म ग्रंथ "तौरेत" के साथ आये. हज़रत मुहम्मद (ईश्वर की उन पर शान्ति हो) ने कुरआन के साथ उसी सन्देश, उसी धर्म को स्थापित करने आये|
अब सवाल उठता है की क्या एक ईश्वर की इच्छा प्रत्येक युग के मनुष्यों के लिए अलग अलग हो सकती है? मूल मान्यताएं? एक ही होंगी. फ़िर ये कैसे हुआ कि आदि काल में मनु (हज़रत नूह अलैहिस्सलाम) ने मनुष्यों को हिन्दू धर्म सिखाया, हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने हजारों साल बाद आकर उन्हें यहूदी बना दिया, हजरत ईसा अलैहिस्सलाम ने उन्हें ईसाई बना दिया और अंत में हज़रत मुहम्मद ने उन्हें मुसलमान बनाने को कहा|
ऐसा हो ही नहीं सकता. यह अतार्किक सा है. विज्ञान के युग में लकीर पर चलने की बजाये धर्म की नयी इबारत लिखी जा सकती है| हम से ज़रूर भूल हुई है, जिससे उबरना अब बहुत ज़रूरी हो गया है. हमारे लिए, मानवता के लिए, इस संसार के लिए, ईश्वर के लिए! यदि यह सभी ईशदूत, यह सभी ऋषिगण सच्चे थे और सच्चे ही थे, उनके अपने जीवन इसके साक्षी हैं, उनके लाये हुए ईश्वरीय ग्रन्थ इसके गवाह हैं तो उन सभी ने एक ही धर्म की शिक्षा दी होगी...
आखिर फ़िर इतना मतभेद क्यूँ???
फिर यह इतनी भारी भूल कैसे हुई कैसे आखिर? इतने सारे धर्म, सबकी अलग अलग मान्यताएं, यह कैसे हुआ?इसका कारण है, अपने अपने मान्य ग्रन्थों से धर्म को न समझ पाना!
मुसलमान कुरआन पढ़ते तो हैं मगर उसका अर्थ नहीं जानते हैं. कितने ही मुसलमान हैं जिनको कुरआन ज़ुबानी याद है, कितने मुसलमान है जो रोज़ कुरआन पढ़ते हैं, पढ़ते हैं, मगर समझ कर नहीं पढ़ते हैं ! और कितने ही मुसलमान हैं जिनके घर में कुरआन सादर कपडे में लिप्त हुआ तो रखा है मगर वह इसे पढ़ते नहीं है और वैसे भी बिना समझे पढना, न पढने के बराबर ही है. वे कुरआन को इतनी इज्ज़त 'अति-इज्ज़त' दे देते हैं कि उसका मकसद ही फ़ौत(ज़ाया) हो जाता है.
उधर हिन्दू, करोड़ों हिन्दू संसार में आते हैं और वेदों के एक बार भी दर्शन करे बगैर ही इस दुनिया से चले जाते हैं.
प्रत्येक हिन्दू देव-वाणी केवल वेद को ही मानता है. रामायण और महाभारत को ऋषियों की कृति कहता है, उनके घर में रामायण और महाभारत तो होती हैं मगर वेद नहीं होते हैं।
एक विचारक का मत है कि धर्म को "देव-कृत" धर्म ग्रन्थों से न प्राप्त करने से इतने बहुत से धर्म बन गए. यदि ऐसा न हुआ होता तो सारी मानवजाति आज एक धर्म पर होती क्यूंकि सारे धर्म ग्रन्थ एक दुसरे की पुष्टि करते हैं
एक जानकार लिखते हैं –
कुरआन सभी देव-कृत धर्म ग्रन्थों में सबसे अंत में आया. अपने से पहले सारे ग्रन्थों की पुष्टि करते हुए आया. एक मुसलमान पर उन सभी पिछले ग्रन्थों पे आस्था और यकीन रखना ज़रूरी है. अन्यथा कुरआन के अध्याय 2 के श्लोक संख्या 285 के अनुसार वह मुसलमान नहीं हो सकता. कुरआन कहता है कि--
"और हमने सत्य के साथ (ऐ मुहम्मद सल्ल०) तुम पर किताब (कुरआन) उतारी जो इससे पहले आने वाले सभी ग्रन्थों की पुष्टि करती है और उन पर निगराँ है... (कुरआन- अध्याय 5 श्लोक संख्या 48)
नकीबुल हक कहते हैं कि आज तक कुरआन के विद्वानों ने यह नहीं सोचा कि जिस आदि ग्रन्थ के बारे में बताया गया है वह कौन है? उन्होंने तो यह भी विचार नहीं किया कि संसार में मात्र एक ही ऐसी क़ौम है जो आदि ग्रन्थ रखने का दावा करती है, उन्होंने वेदों को इस दृष्टि से देखने का प्रयत्न ही नहीं किया कि कुरआन के बताये आदि ग्रन्थ वेद ही तो नहीं? वे ये हमेशा से समझते चले आ रहे हैं कि जिन आदिग्रन्थों का ज़िक्र कुरआन में है वे इस संसार में कभी थे और अब उनका कोई अस्तित्व नहीं है। सर्वधर्म समभाव के समर्थक यहाँ तक कहते हैं कि कुरआन वेदों की पुष्टि करता है|
प्रयोगवादियों के निष्कर्ष :
निष्कर्ष ये निकलता है कि यह समस्त ईश्वरीय ग्रन्थ जिनके एक सिरे पर वेद है दुसरे सिरे पर कुरआन; एक ही धर्म को लेकर आये थे। यह पूरा एक क्रम है। इन सभी में आस्था रखनी सभी के लिए अति आवश्यक है। इनकी सहायता से ही हम सत्य सनातन धर्म को समझा जा सकता है, जो ईश्वर की इच्छा है और जो हमेशा से चला आ रहा है; सत्य धर्म है.
जब संसार का धर्म एक होगा, घृणायें समाप्त हों जाएँगी। यही समाधान है.
ईश्वर के नियम नहीं बदलते– ऋग्वेद (१:२४:१०) अर्थात जो यह कहते है कि हमारा धर्म परिवर्तनशील है वह अन्धकार में है, क्यूंकि यह स्पष्ट है कि ईश्वर के नियम कभी नहीं बदलते बल्कि हर युग हर काम में एक से ही होते हैं.

