कुण्डलिनी ही आनंत जन्म मरण में किए गए हुए सभी पाप जलाकर भस्म कर सकती है , इसलिए कुण्डलिनी योग ही परम योग विद्या है|
आध्यात्मिक यात्रा तभी संभव है, जब व्यक्ति की कुंडली जागृत हो जाए, कुंडलिनी योग है, परम योग है| कुंडलिनी की साधना भौतिक शरीर से लेकर आत्मिक शरीर के विकास की यात्रा है| शरीर अंदर जो चेतना मौजूद है, उस चेतना का विकास कुंडलिनी के जागरण से ही संभव है| कुंडलिनी के माध्यम से ही हम सूक्ष्म में जगत में प्रवेश कर सकते हैं| मन, प्राण और आत्मा का विकास कुंडलिनी योग के जरिए ही संभव है| इस योग से हमारा वाह्य और आंतरिक रूपांतरण हो जाता है| हमारे अंदर जो आत्मा है वह विस्मृत है, हमें उसकी जानकारी है, लेकिन उसका बोध नहीं है, जब तक आत्मा पूर्ण रूप से चैतन्य नहीं होगी, तब तक हम अपनी आत्मा से नहीं मिल सकेंगे, कुंडलिनी जागरण ही आत्म जागरण है, जिससे हमें आनंद शांति और प्रेम हासिल होता है| कुंडलिनी जागरण से हम अपने अस्तित्व के रहस्य तक पहुंच जाते हैं| जब हमें वह परम सत्य उपलब्ध होता है| तब हमारी आंतरिक शक्तियां भी जागृत हो जाती हैं| और हमारा हर स्तर पर रूपांतरण होने लगता है| जागृत कुंडलिनी हमारे स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर, मन शरीर और आत्म शरीर को रूपांतरित करती है| यही कुण्डलिनी जागृत होकर बुरे कर्म संस्कारों को जलाकर हमे निष्पाप बनाती है
अतुल विनोद *
अतुल विनोद *

