Atul vinod
आज ध्यान में बैठा हुआ था और अचानक मेरा परमात्मा से सामना हो गया , मैं रोज ध्यान में बैठता और परमात्मा से दर्शन देने की प्रार्थना करता , सुबह आंख बंद करके बैठा था अचानक एक आकृति दृष्टि पटल पर उभरी , वह न मनुष्य की तरह दिख रही थी ना ही वह किसी ग्रह नक्षत्र तारे की तरह नज़र आती थी , उस आकृति के बारे में लिखना बहुत मुश्किल है वो आगे से बिंदु के आकार थी लेकिन पीछे बड़ी होते होते अनंत तक विस्तारित थी ।
मैंने पूछा कौन हो तुम ?
उसने बोला बेटे अतुल विनोद मैं परमात्मा हूँ , मैं वही हूं जिससे मिलने के लिए तुम हमेशा बेकरार रहते हो , मैं बोला तुम कैसे दिखते रहे हो मैं नहीं मानता कि तुम परमात्मा हो , न तो तुम मनुष्य की तरह दिखते हो ना किसी जीव जंतु की तरह दिखते , हम हम लोग भगवान को जिस तरह से देखते हैं पूजते हैं उस तरह तो तुम दिखते नही , वह आकृति बोली बेटा यह तुम्हारी मान्यता है तुम मुझे जिस रूप में देखते हो देख सकते हो , मैं सबसे छोटा वो बिंदु भी हूँ जिसे तुम गॉड पार्टिकल कहते हो और मैं वो सबसे बड़ा वो आकार भी हूँ जिसके अंदर ये सारी दुनिया बनी हुई है । यानी इस दुनिया मे सबसे छोटा भी में ही हूँ और सबसे बड़ा भी मैं ही हूँ । तुम मुझे किसी भी रूप में मानो मुझे उससे कोई एतराज नहीं क्योंकि हर रूप में मैं ही हूँ , सच बताऊँ तो मेरा वास्तविक स्वरूप तो कुछ है ही नहीं । सब कुछ ही मैं हूँ । मैं सबके अंदर हूँ और सब मेरे अंदर प्रिय अतुल मैं सिर्फ पृथ्वी बासी मनुष्यों का परमात्मा नहीं , मैं तो इस पूरे ब्रह्मांड का स्वामी हूं । इस ब्रह्मांड में पृथ्वी जैसे कई ग्रहों से मिलकर बने सौरमंडल हैं , असंख्यों सौरमंडल से बनी आकाशगंगाएं हैं , असंख्य आकाशगंगा से मिलकर बना एक यूनिवर्स है , असंख्य यूनिवर्स से मिलकर बना एक क्लस्टर है , इन क्लस्टर्स से मिलकर बना महायूनिवर्स है , तुम्हे मुझे देखना है तो यूट्यूब पर यूनिवर्स के रियल फुटेज देख लो , जिस सृष्टि का आदि है न अंत , जो अनेक रूप में इस संसार में व्याप्त है उस परमात्मा का आकार क्या हो सकता है , तुम कल्पना भी नहीं कर सकते ।
मैंने कहा चलो मान भी लेते हैं कि तुम परमात्मा हो और इतनी शक्तिशाली हो कि तुमने इतनी बड़ी सृष्टि की रचना की ।
क्या तुम मुझे कुछ वरदान दे सकते हो ?
परमात्मा बोले नहीं पुत्र अतुल विनोद मैं तुम्हें कोई वरदान नहीं दे सकता
मैंने कहा चलो छोटी मोटी कोई सिद्धि ही दे दो , कोई ऐसी ताकत दे दो जिससे मैं बाकी लोगों से थोड़ा ज्यादा बढ़ जाऊं , अपनी मनचाही चीजें हासिल कर लूं ?
बेटा ऐसा भी नहीं हो सकता ! मैं बहुत लाचार हूं ! मैं तुम्हें कुछ भी नहीं दे सकता । मैंने कहा क्यों ? हद है ये तो ,
परमात्मा बोले अतुल विनोद रूपी तुम्हारे इस शरीर के अंदर अनगिनत संरचनाएं हैं। कोशिकाएं , अस्थियां , नाड़ियाँ , अंग प्रत्यंग , इंद्रियां है सब तुम्हारी ही हैं लेकिन जब उनमें से कोई कोशिका रोग ग्रस्त हो जाये तो क्या तुम उसे सीधे ठीक कर सकते हो ? क्या तुम अपने भीतर के किसी अंग को वरदान देकर बाकी अंगों से ज़्यादा शक्तिशाली बना सकते हो मैंने कहा नही मैं आपने अंदर सीधे नही जा सकता ।
परमात्मा बोले मैं भी इसी तरह व्यवस्था से अपने ही नियमों से बंधा हुआ हूँ , मैं सिर्फ सृजन कर सकता हूं , मैं सिर्फ नियम बना सकता हूं । लेकिन निर्माण भी वैसा नही जैंसा तुम सोचते हो , सब कुछ मेरे शरीर के अंदर है और एक एक चीज़ के अंदर मैं ही हूँ । करोड़ों अरबो साल लगते हैं एक एक चीज़ बनाने में , जैंसे तुम्हे अपने अंदर बदलाव लाने में समय लगता है । तुम सोचते हो मैं सब कुछ चुटकियों में बना सकता हूँ नही बनाने में करोड़ो साल लगते हैं हां मिटा तो मैं पल भर में सकता हूँ , 1300 करोड़ साल पहले मैं एक पिण्ड था फिर मैं खुदमे विस्फ़ोट करके एक से अनेक हो गया , तुम्हे इस रूप में लाते लाते 1300 करोड़ साल लग गए ।
मैने इस दुनिया में हर एक के अंदर रहते हुए व्यवस्थाएं भी बनाई है नियम भी बनाये हैं , लेकिन उन व्यवस्थाओं और नियमों को तोड़ने का अधिकार मुझे भी नहीं है। मैं तो हर जगह हूं कंकड़ में भी हूं पत्थर में भी हूं , मैं तुम्हारे पास बह रहे नाले में मौजूद कीड़े मकोड़े छोटे छोटे जीव जंतुओं में भी हूं। लेकिन मेरी मजबूरी यह है कि सब में होते हुए भी मैं बाहर से एकदम कुछ नही कर सकता। मेरी शक्ति तुम सबमे निहित है ।
मैंने कहा यह कैसी बात हुई यह तो बहुत अजीब बात है आप सबके अंदर भी हो और बाहर भी और आपके अंदर इतनी शक्ति भी नहीं है कि आप किसी को बदल सको ?
परमात्मा बोले नहीं यदि ऐसा मैं कर सकता तो मेरी ही बनाई इस सृष्टि नियमों को तोड़ देती । मैं नियमो के विरुद्ध यदि किसी को ज्यादा शक्ति दे देता , किसी ग्रह को ज्यादा तेजी से चला देता तो सृष्टि के नियम भंग हो जाते और व्यवस्था इस कदर टूटती कि पूरी सृष्टि तहस नहस हो जाती । मेरा काम था का निर्माण करना , शुरुआत से ही सृजन की प्रक्रिया में लगा हूँ और दुनिया को गढ़ते जा रहा हूँ । जैंसे पैदा होते ही तुम खुदको बनाने में लग जाते हो ।
उनकी बातें सुनकर मेरे दिमाग के तार हिल रहे थे।
मैंने उनसे हाल ही में हुई एक धार्मिक नेता के मर्डर केस का ज़िक्र किया मैंने पूछा आपको मानने वाले इस व्यक्ति की हत्या हो गई आपने कुछ नहीं किया ?
परमात्मा ने कहा बेटा मैं लाचार हूँ क्योंकि मैं अपने आपसे बंधा हुआ और मैं यह देखकर भी बहुत दुखी होता हूं कि मनुष्य अज्ञानता की जंजीरों से इतना ज्यादा बंधा हुआ है|
मेरे बारे में वो जरा भी नहीं जानता और सब कुछ जानने का दावा करता है, खास बात यह है कि मैं पापियों में भी हूं और पुण्य आत्माओं में भी हूं। मेरे नाम से जो मारकाट चल रही है वह मुझे भी हैरत में डाल देने वाली है। मनुष्य अपने ही अंदर की उस कोशिका की तरह हो गया है जो सिस्टम से हटकर अजीब व्यवहार करने लगती है उसे ही हम कैंसरग्रस्त कोशिका कहते हैं। इस धरती पर मौजूद मनुष्य में से कई मनुष्य पृथ्वी के लिए कैंसरग्रस्त कोशिका की तरह हो गए हैं। जिनका इलाज मेरे पास भी नही है ये खुद ही सम्भल जाएं तो ठीक है वरना पूरी धरती को कैंसरग्रस्त कर देंगे।
उत्तरप्रदेश के एक धर्म के नेता ने दूसरे धर्म के अवतारी पुरुष जी को अपशब्द कहे थे जिसकी वजह से उनकी हत्या कर दी गयी। मैंने कहा जिनके बारे में भला बुरा कहा गया था वो तो आपके ही रूप माने जाते हैं क्या आपको उनके बारे में गलत कहने से कोई फर्क पड़ा था?
परमात्मा बोले नहीं पड़ा , मेरे साथ तो ऐसा होता ही रहता है मैं इस संसार में कई रूपों में पूजा जाता हूं। एक धर्म के लोग मुझे जिस रूप में पूजते हैं दूसरे धर्म को मानने वाले लोग उस रूप को गालियां देते हैं , भला बुरा कहते हैं मुझे पूजने वाले मुझे ही गाली देते हैं।
लेकिन मैं मेरे किसी रूप को अपशब्द कहने वाले का भी बुरा नहीं करता, क्योंकि मैं जानता हूं कि यह सब लोग मेरे बारे में सही से जानते ही नहीं , इनकी अज्ञानता पर मुझे प्रतिक्रिया क्या करना। वैसे भी मैं बाहर से सीधे कुछ कर भी नहीं सकता
मैंने सवाल किया कि क्या एक धर्म के पीर पैगंबर को भला बुरा कहने वाले दूसरे धर्म के धार्मिक नेता की की हत्या करने वाले सही हैं ?
परमात्मा ने कहा कि वह भी सही नहीं है। मैंने कहा न जो लोग भी मेरे नाम से हिंसा फैला रहे हैं, दरअसल वह भी मुझे जानते ही नहीं है, यह सब लोग और तुम्हारे TV चैनल्स तक , सब सिर्फ अपना सिक्का जमाने के लिए मेरे नाम का इस्तेमाल करते हैं। यदि वाकई यह लोग मुझे जानते और मुझे मानते तो यह हर उस कृति से प्रेम करते जो इन्हें दिखाई देती। क्योंकि मुझे मानने वाला मेरी किसी दूसरी रचना से नफ़रत कैसे कर सकता है ।
संसार की हर कृति में मैं हूं, और मुझे मानने वाला, मुझे जानने वाला किसी से भी हिंसा नहीं करता । यहां तक कि 2 देशों की लड़ाई भी मुझे दुख देती है क्योंकि सारी पृथ्वी मेरी है और सारी पृथ्वी में मैं ही हूं।
मैंने तो किसी देश की कोई सीमा नहीं बनाई , मेरे लिए तो पूरी धरती एक है। फिर भी लोग आपस में देश की, राज्य की, गांव की , घर की सीमाओं के लिए लड़ते हैं। वह भी मुझे दुख देती है लेकिन मैं कुछ कर नहीं सकता मैं तो मूकदर्शक बनकर अपनी ही इस मनुष्यरूपी कृति पर रोना रोता हूँ । लोग ये भी नही समझते कि मेरे नाम का सबसे ज़्यादा इस्तेमाल करने वाले देश सबसे ज़्यादा तंगहाल और दुखी क्यों हैं ? क्योंकि वो मुझे मानने का दावा तो करते हैं लेकिन मेरी बातों को नही मानते इसलिए कष्ट में हैं। मनुष्य को मैंने सबसे बुद्धिमान बनाया मनुष्य को इस स्तर तक ले जाने में मुझे लाखों साल लग गए लेकिन मनुष्य ही मेरा सबसे बड़ा दुश्मन बन गया है । मैंने सोचा था कि मनुष्य मेरा सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधी है तो मेरी रचना की रक्षा करेगा लेकिन रक्षक ही भक्षक बन गया है। क्या तुम्हें मालूम है जो निर्जीव है वहां भी मैं हूं वहां मैं अव्यक्त हूँ, और मनुष्यों में सबसे ज्यादा व्यक्त हूँ।
मेरी प्यारी पृथ्वी को तोड़ने में और तहस-नहस करने में मनुष्य का ही सबसे बड़ा योगदान है।
मैंने मनुष्य को क्या नहीं दिया ? उसके भोजन पानी रहने खाने की सारी व्यवस्थाएं की। लेकिन मनुष्य जिस डाल पर बैठा है उसी को काटने में लगा हुआ है।
मनुष्य को मैं नित नई टेक्नोलॉजी देता हूं लेकिन यह टेक्नोलॉजी भी मेरे दुरुपयोग और मेरे बहाने इस धरती पर नफरत फैलाने का सबब बन गई है । मैं सोचता था कि इस तकनीकी के जरिए लोग एक दूसरे से जुड़ेंगे सच को जानेंगे , मुझे जानेंगे , मेरे संदेशों का प्रचार-प्रसार करेंगे, लेकिन वह मेरे नाम से नफरत और घृणा फैलाने में लगे हैं , यह सोशल मीडिया मेरी और बड़ी दुश्मन बन गई है पता नहीं क्या होगा मेरी इस धरती का!
मैंने पूछा आपका वास्तविक रूप यह है तो जो लोग अलग-अलग रूपों में आपको पूजते हैं वह क्या गलत है ?
परमात्मा बोले बिल्कुल नहीं है, मुझे जिस रूप में भी पूजोगे , जिस रूप में भी देखोगे सब सही है , मैं सबके अंदर हूँ , मैं एक तत्व हूँ । जो अपने अंदर के इस तत्व का ज़्यादा विकास करेगा उतना बेहतर बनेगा।
जो ईश्वर तत्व को बहुत अधिक विकसित कर लेता है उसमे मेरा ऐश्वर्य दिखाई देता है और वो मेरा अवतार कहलाता है , कई मनुष्य मेरे अवतार कहलाए , हालाकि अवतार भी पूर्ण नही होते क्योंकि वे होते तो मनुष्य ही हैं इसलिए उनमें और उनके कुछ कार्यों में त्रुटियां रह जाना स्वाभाविक होता है।
मनुष्य को मनुष्य की गलतियों की जगह उनकी खासियतों पर ध्यान देना चाहिए , सभी धर्मों में अच्छी बातें कही गयी हैं लेकिन उनमें मनुष्यो ने अपने फायदे के लिए कुछ गलत बातें भी जोड़ दी हैं । अब भी समय है अपने अपने धर्मो में फिर से मंथन करो , अमृत को निकालो और पियो लेकिन विष को अलग कर दो क्योंकि ये विष ही मनुष्य को पृथ्वी की कैंसर कोशिका बना रहा है । मुझे फर्क नही पड़ता पृथ्वी जैंसा एक ग्रह मेरे शरीर की एक कोशिका के बराबर भी नही , मेरी ये दुनिया बहुत बड़ी है एक धरती मिट भी जाये तो मुझे क्या ? लेकिन तुमतो अपनी और अपनी भावी पीढ़ियों की चिंता करो । तुम मुझसे बहुत उम्मीद मत करना क्योंकि मेरे नाम की रट तुम्हे कुछ नही देने वाली हां मैंने तुम सबके अंदर ऐसे बीज डाले हैं जिनका तुम विकास करके बहुत कुछ कर सकते हो।
तुम्हारे घर मे कितने जीव जंतु रहते हैं क्या तुम उनकी बहुत ज़्यादा फिक्र करते हो ? नही । लेकिन जैसे ही कोई चींटा , कॉकरोच , चूहा , छिपकली तुम्हारी व्यवस्था भंग करता है तुम उसे मार देते हो । तुम सब भी अपने घर मे रहने वाले जीव जंतुओं की तरह एक दायरे में ही सुरक्षित हो जैंसे ही तुम इस धरती के आंख की किरकिरी बन गए वो तुम्हे मसल देगी मैं तुम्हे नही बचा पाऊंगा , जब तुम हिन्दू , मुस्लिम ईसाई आदि धर्मो के लोग किसी एक बस में जाते हो और बस दुर्घटना हो जाये तो सब मारे जाते हो किसी को कोई देवता बचाने नही आता ? आता हो तो बताओ ? अपने झगड़ो में मुझे तो घसीटा ही मत करो।
इतना कहते ही वो आकृति गायब हो गयी मैंने कुछ और पूछना चाहा लेकिन वो कथित परमात्मा जा चुके थे। मैं सोच में पड़ गया ये सच हैं या हमारे ?

