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ब्रह्म की सोलह कलाएं🏵

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जैसा कि वेदों में वर्णन है परमपिता परमात्मा परिपूर्ण है सर्वव्यापी है सर्वज्ञ है और सर्व शक्तिशाली है| इस सृष्टि को चलाने वाला परम शिव अति सूक्ष्म भी है और अति विशाल भी है| इस सृष्टि का कर्ता हर जगह व्याप्त है|  इसीलिए कहते हैं कि कण-कण में भगवान है| भगवान सृष्टि के अंदर भी है और सृष्टि के बाहर भी| वह सभी को बल बुद्धि और तेज देता है वही पालनहार है| परमात्मा की सभी शक्तियों को जो व्यक्ति जानता है और अभिव्यक्त कर सकता है उसी को सोलह कलाओं से युक्त कहा जाता है|
इन सोलह कलाओं के नाम अलग-अलग ग्रंथों में अलगे अलग मिलते हैं।
1.अन्नमया, 2.प्राणमया, 3.मनोमया, 4.विज्ञानमया, 5.आनंदमया, 6.अतिशयिनी, 7.विपरिनाभिमी, 8.संक्रमिनी, 9.प्रभवि, 10.कुंथिनी, 11.विकासिनी, 12.मर्यदिनी, 13.सन्हालादिनी, 14.आह्लादिनी, 15.परिपूर्ण और 16.स्वरुपवस्थित।

1.श्री, 3.भू, 4.कीर्ति, 5.इला, 5.लीला, 7.कांति, 8.विद्या, 9.विमला, 10.उत्कर्शिनी, 11.ज्ञान, 12.क्रिया, 13.योग, 14.प्रहवि, 15.सत्य, 16.इसना और 17.अनुग्रह।

1.प्राण, 2.श्रधा, 3.आकाश, 4.वायु, 5.तेज, 6.जल, 7.पृथ्वी, 8.इन्द्रिय, 9.मन, 10.अन्न, 11.वीर्य, 12.तप, 13.मन्त्र, 14.कर्म, 15.लोक और 16.नाम।
जो 16 कलाओं से युक्त है वही परब्रम्ह है वही सर्वत्र है| जैसे 16 आने में एक रुपया होता है उसी तरह जिस मनुष्य में उस परमात्मा की  100 प्रतिशत शक्तियां होती है, उसे परमात्मा का पूर्ण अवतार माना जाता है| वैसे तो पूर्ण ब्रह्म निराकार परमेश्वर का कोई पारावार नहीं है|  वह अंश और कला रूप से सभी प्रकार के चराचर जीव जंतुओं में प्रकाशित हो रहा है| वह परमात्मा निर्जीव में भी है सजीव में भी है| जैसे-जैसे परमात्मा की कलाएं अधिक मात्रा में अभिव्यक्त होती चली जाती है| निर्जीव से जीव, जीव से मानव, मानव से महामानव, और मानव में भी ब्रह्म और परम ब्रह्म के रूप में परमात्मा की अभिव्यक्ति है|

इस जगत में दिखाई देने वाला स्थूल संसार परमात्मा की एक कला है| जीव जंतु कीट पतंग परमात्मा की चार कलाएं  अभिव्यक्त करते हैं| पशु-पक्षी ईश्वर की छह कला के सामर्थ्य को प्रकट करते है| मनुष्यों में आमतौर पर ईश्वर की छह से आठ कलाएं अभिव्यक्त होती हैं, इसलिए मनुष्य को ईश्वर की आधी सामर्थ्य का प्रतीक बताया जाता है| जो व्यक्ति ईश्वर की 8 से 10 कलाएं व्यक्त कर पाता है उसे देवता कहते हैं|  जो ईश्वर की 12 कलाओं को अभिव्यक्त कर सकता है उसे सिद्ध पुरुष कहते हैं|

जो ईश्वर की 12 से 14 कलाएं प्रदर्शित करते हैं उन्हें भगवान या अवतार कहा जाता है| जिनमें ईश्वर की 16 की 16 कलाएं अभिव्यक्त होती हैं उन्हें पूर्ण ब्रह्म कहा जाता है| इसीलिए श्रीकृष्ण को पूर्ण ब्रह्म की संज्ञा दी गई क्योंकि वह ईश्वर की सोलह कलाओं को अभिव्यक्ति करने में सक्षम थे| हालाकि यहां एक बात ध्यान देने की है कि 16 कलाओं से युक्त अवतार भी हमेशा ब्रह्म में संलग्न नहीं रहते| जब महाभारत का युद्ध खत्म हो गया तब  अर्जुन श्रीकृष्ण के पास पहुंचे और फिर से गीता का ज्ञान देने का आग्रह किया| अर्जुन ने कहा केशव गीता का जो ज्ञान आपने मुझे दिया था वह नष्ट हो गया इसलिए फिर से मुझे वह ज्ञान दीजिए|

तब श्रीकृष्ण बोले हे अर्जुन तुमने बड़ी भूल की जो उस ज्ञान को अच्छी तरह याद न रख सके| वह गूढ़ ज्ञान मैंने उस समय योग में स्थित होकर तुम्हें दिया था लेकिन अब वह दिव्यज्ञान मैं तुम्हें नहीं दे सकता क्योंकि आज उसका स्मरण मुझे भी नहीं है| श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि अवतारी पुरुष भी अष्ट प्रहर योग में संलग्न नहीं रहते इसी तरह व्यक्ति भी हमेशा ब्रह्म में नहीं रह सकता जब तक शरीर के साथ आत्मा का संबंध है तब तक मनुष्य को जरूरत के मुताबिक सभी कर्म करने पड़ेंगे|
अतुल विनोद