ये जीवन परमपिता की अदभुद देन है , इस जीवन का एक एक क्षण उस ईश्वर की कृपा पर निर्भर है , उसके उपकारों की सीमा नही
हम सब कुछ भूल चुके हैं , बस शिकायतें करते रहते हैं , जो मिला है उसके लिए कभी उसका धन्यवाद किया है , कभी सोचा है कि जो कुछ जीवन के लिए ज़रूरी है वह तो वो फ्री में ही दे रहा है , हम सब स्वयंभू भगवान बन गये हैं जो बिना कीमत के मिल रहा है उसे हम अपना अधिकार मानते हैं और जो नही मिल रहा उसके लिए झींकने लगते हैं , एक व्यक्ति स्वस्थ्य है तो वो धन दौलत का रोना रोने लगता है , और शरीर का कोई अंग खराब हो जाये तो धन दौलत भूलकर सिर्फ उसे ठीक करने की गुहार लगाने लगता है , जितना मिलता है एहसान फरामोशी उतनी बढ़ती चली जाती है , यदि सब कुछ ठीक है तो फिर उसकी याद नही आती रिश्तेदार नातेदार अच्छे हैं तो उनके प्रति कभी अहोभाव नही जागता , रिश्ते ख़राब हो जायें तो फिर उसकी कीमत पता चलती है , जो ठीक है अच्छा है उसके लिए उपकार कभी नही मानते , कृतज्ञता कोई एक्ट नही भाव है जो बाहर से नही अंदर से पैदा होना चाहिए , जिस दिन ये भाव जाग गया , इसका झरना फूट गया तो फिर चमत्कार होने लगता है वरना तो वो खुदा रसद पानी भी रोकने लगता है , हम मगन हो जायें , कृत कृत्य हो जायें , रम जायें , बह जाये उस भावना में जिसे कृतज्ञता कहते हैं , फिर एक नई दुनिया का अहसास होने लगता है , फिर नई नई अनुभूतियां होने लगती हैं , जीवन में जिसकी कमी थी , जिसका प्रवाह रूका हुआ था वो बहने लगता है
हम सब कुछ भूल चुके हैं , बस शिकायतें करते रहते हैं , जो मिला है उसके लिए कभी उसका धन्यवाद किया है , कभी सोचा है कि जो कुछ जीवन के लिए ज़रूरी है वह तो वो फ्री में ही दे रहा है , हम सब स्वयंभू भगवान बन गये हैं जो बिना कीमत के मिल रहा है उसे हम अपना अधिकार मानते हैं और जो नही मिल रहा उसके लिए झींकने लगते हैं , एक व्यक्ति स्वस्थ्य है तो वो धन दौलत का रोना रोने लगता है , और शरीर का कोई अंग खराब हो जाये तो धन दौलत भूलकर सिर्फ उसे ठीक करने की गुहार लगाने लगता है , जितना मिलता है एहसान फरामोशी उतनी बढ़ती चली जाती है , यदि सब कुछ ठीक है तो फिर उसकी याद नही आती रिश्तेदार नातेदार अच्छे हैं तो उनके प्रति कभी अहोभाव नही जागता , रिश्ते ख़राब हो जायें तो फिर उसकी कीमत पता चलती है , जो ठीक है अच्छा है उसके लिए उपकार कभी नही मानते , कृतज्ञता कोई एक्ट नही भाव है जो बाहर से नही अंदर से पैदा होना चाहिए , जिस दिन ये भाव जाग गया , इसका झरना फूट गया तो फिर चमत्कार होने लगता है वरना तो वो खुदा रसद पानी भी रोकने लगता है , हम मगन हो जायें , कृत कृत्य हो जायें , रम जायें , बह जाये उस भावना में जिसे कृतज्ञता कहते हैं , फिर एक नई दुनिया का अहसास होने लगता है , फिर नई नई अनुभूतियां होने लगती हैं , जीवन में जिसकी कमी थी , जिसका प्रवाह रूका हुआ था वो बहने लगता है

मान लीजिये जीवन का मूल्य 100 रुपये है , इसकी हर एक आवश्यकता की कीमत आप तय करें ,
1 : जो सांसे ईश्वर दे रहा है उसका कितना मूल्य रखेंगे आप ?
2: जो रोशनी सूर्य हमे दे रहा है उसका मूल्य क्या है 100 में से
3: जो भोज्य पदार्थ ये धरती हमे दे रही है उसका कितना मूल्य रखेंगे आप
4: ये जो पानी आपको मिल रहा है उसे 100 में से कितने देंगे
5: ये जो शरीर आपको मिल है इसकी आंखों की क्या कीमत है
6: हाथ, पैर, दिमाग, लिवर, हार्ट, जीभ, कान की क्या कीमत है
क्या आपके माता, पिता ,दोस्त, पत्नी, पति ,बेटे , बेटी हैं इनकी जीवन में 100 में से कितनी कीमत रखी है आपने ?
इन सबका मिलाकर 100 में से क्या मूल्य निकला ? क्या आपके पास ये सब है ?
बाकी बचे , सोफा ,पलंग ,फ्रीज़ ,टीवी, कार, मकान इन वस्तुओं को पहले दी गयी केटेगरी की तुलना में कितना मूल्य देंगे , यदि आप जीवन में मिल रही ऑक्सीजन की 20 रुपये कीमत रख रहे हैं और धन ,कार ,मकान सबको मिलाकर 20 रुपये कीमत रख रहे हैं तो क्या 20 रुपये की इन वस्तुओं से आप जीवन में नॉन स्टॉप मिल रही प्राण वायु खरीद सकते हैं ? ईश्वर ने जीवन के लिए सबसे ज़रूरी शरीर और शरीर चलाने वाली हवा पानी भोजन वायु और रिश्तेदार नातेदार फ्री में दे रखे हैं, जिनकी कीमत 100 में से 99 है I आपका और हमारा कष्ट और शिकायत सिर्फ 100 में से एक रुपये कीमत रखने वाली चीजों के लिए है ,
बाकी बचे , सोफा ,पलंग ,फ्रीज़ ,टीवी, कार, मकान इन वस्तुओं को पहले दी गयी केटेगरी की तुलना में कितना मूल्य देंगे , यदि आप जीवन में मिल रही ऑक्सीजन की 20 रुपये कीमत रख रहे हैं और धन ,कार ,मकान सबको मिलाकर 20 रुपये कीमत रख रहे हैं तो क्या 20 रुपये की इन वस्तुओं से आप जीवन में नॉन स्टॉप मिल रही प्राण वायु खरीद सकते हैं ? ईश्वर ने जीवन के लिए सबसे ज़रूरी शरीर और शरीर चलाने वाली हवा पानी भोजन वायु और रिश्तेदार नातेदार फ्री में दे रखे हैं, जिनकी कीमत 100 में से 99 है I आपका और हमारा कष्ट और शिकायत सिर्फ 100 में से एक रुपये कीमत रखने वाली चीजों के लिए है ,
आपके कौन से काम नही हो रहे
क्या आपको भोजन नही मिल रहा ?
क्या आपको ऑक्सीजन नही मिल रही ?
क्या आपके अपने आपको छोड़कर चले गए ?
आप कितने दिन से भूखे हैं ?
आपको कितने दिन से पानी नही मिला ?
आपको क्या रुक रुक कर हवा मिल रही है ?
जो मिला है उसके लिए कृतज्ञ रहेंगे तो मेरा दावा है बाकी 1 फीसदी कीमत वाली चीज़े ज़रूर मिलेगी
भगवान ही कर्त्ता करवन-हार हैं, यह भाव पैदा हो गया तो फिर किसी चीज़ की कमी नही रहेगी , दुनिया के संपन्न लोगों की जि़ंदगी को जानेंगे तो पायेंगे कि वे कृतज्ञता के दम पर ही उन्नति कर पाये हैं , कोई काम करने से पहले , होते समय और बाद में ये भाव बना रहे , जब ये भाव प्रबल होगा तो अहंकार बहुत कम हो जायेगा ,अपना कर्म करते हुए ईश्वर के प्रति शरणागत हो जाना है , प्रार्थना करें या कृतज्ञता व्यक्त करें पूरी तरह समर्पण के भाव से करें ,
ग्रेटीटयूड का जादुई असर होता है , जो मिला है उसके प्रति ऋणी हो जाना सम्मान और आदर व्यक्त करना , गीता में कृतज्ञता को दैविय गुण कहा गया है , ये आपके जीवन में अभाव आने शुय हो गये हैं यदि ईश्वर की कृपा रूकने लगी है तो मान लेना कि आपने कृतज्ञ होना छोड़ा दिया है ईश्वर भी चाहता है कि जो तुझे दिया है पहले उसके लिए तो खुश होजा फिर और मांगना मेरे पास कमी नही है लेकिन अहसानफरामोशों को मैं कुछ नही देता छीनने और लगता हूं , हमारी सदी में अगर कुछ खो गया है, तो कृतज्ञता खो गयी है, ग्रेटीटयूड खो गया है। हमारे पैदा होने में हमारा कोई हाथ नही है , हमे जो श्वास मिल रही है उसमें हमारा कोई योगदान नही है उलटा श्वास के ईश्वर के बनाये सिस्टम को ज़रूर हम बिगाड़ रहे हैं , हमे कितना कुछ दिया गया है , ये पेट कितना अदभुद है कुछ भी खाओ बेचारा पचाने में लग जाता है आपने जो मशीने बनाई उसे यदि ज़रा भी इम्प्योर इंधन देदो तो वो काम करना बंद कर देती है , क्या ये सोचकर हम इस पेट के लिए कृतज्ञता से नही भर जायेंगे , हम इन आखों को , इन हाथों को इन पैरों को इन अंगो को कितना प्रेम देते हैं इनके प्रति हमारे मन में कितना अहोभाग्य है , पहले अपने शरीर के प्रति ग्रेटीटयूड फिर दूसरे लोगों के प्रति , एक रोटी जो हम खाते हैं कितने हाथों का योगदान है उसमें किसान वो चक्कीवाला , वो रसोई गैस बनाने वाला वो खेती के उपकरण बनाने और उन्हे इज़ाद करने वाला , ये वाहन जो हम चलाते हैं उसका ये स्वरूप किसकी कल्पना से निकला फिर परिष्कृत हुआ उसके प्रति कोई कृतज्ञता का भाव है क्या , ये सूरज जो रोज़ हमे रोशनी देता है , ये धरती जो इतने अत्याचार के बाद भी हमे जल और अन्न देती है , ये मौसम जो हम चार महिने में चले आते हैं , ये रिश्तेदार ये नातेदार , ये तकिया ये पलंग , इस कृतज्ञता को फील करें आप हैरान हो जाएंगे, हमारी क्या हैसियत थी , कि ये सारी चीजे़ हमे मिलती , ये मोबाईल कितनी आसान कर दी इसने हमारी दुनिया , सब कुछ हाथों में है अब , क्राइस्ट को सूली पर लटकाया। तो क्राइस्ट जब मरने लगे तो उन्होंने कहा, ‘हे परमात्मा, इन्हें क्षमा कर देना। इन्हें क्षमा कर देना और दो कारणों से क्षमा कर देना। एक तो ये जानते नहीं कि क्या कर रहे हैं।’ इसमें तो उनकी करुणा थी। ‘और एक इस कारण से कि मेरे और तेरे बीच जो फासला था, वह इन्होंने गिरा दिया। परमात्मा के और मेरे बीच जो फासला था, इन्होंने गिरा दिया। इसके लिए इनके प्रति कृतज्ञता है। कृतज्ञता के साथ एक्सेप्टेंस स्वीकृति, संतोष, सहिष्णुता एवं शालीनता है तो फिर कहने ही क्या । कृतज्ञता के लिए आप सुबह का वक्त चुन लें बिस्तर छोड़ते ही पहला काम ये करें हो सके तो एक सूचि बना लें
पहली लिस्ट – ईश्वर के लिए उस परमपिता के लिए एक आभार सूचि बनायें – उस भगवाल के प्रति जीवन में आप जिस के लिए भी आभारी हैं उनकी एक लिस्ट बनाएं। आप स्वास्थ्य, घर, कपड़े , भोजन, परिवार, अवसर , बिजनेस नौकरी , या जो कुछ भी आप के लिए बहुत इंपोटेंट हो उसके लिए आभार व्यक्त करें
दूसरी लिस्ट – दूसरों के लिए – उन लोगों की सूची बनाएं जो आप के जीवन में बहुत महत्व रखते हैं, जिन व्यक्तियों ने आप के जीवन को प्रभावित किया है, जिन के कारण आप का जीवन बदल गया है। वे आप के पति अथवा पत्नी हो सकते हैं अथवा माता-पिता, शिक्षक, मित्र, साथी, यहाँ तक कि ऐसे व्यक्ति हो सकते हैं जिन से आप की कभी भेंट ही ना हुई हो लेकिन जिन्होंने आप को प्रेरित किया है।
दूसरी लिस्ट – दूसरों के लिए – उन लोगों की सूची बनाएं जो आप के जीवन में बहुत महत्व रखते हैं, जिन व्यक्तियों ने आप के जीवन को प्रभावित किया है, जिन के कारण आप का जीवन बदल गया है। वे आप के पति अथवा पत्नी हो सकते हैं अथवा माता-पिता, शिक्षक, मित्र, साथी, यहाँ तक कि ऐसे व्यक्ति हो सकते हैं जिन से आप की कभी भेंट ही ना हुई हो लेकिन जिन्होंने आप को प्रेरित किया है।
असल में हम शुक्रगुजारी को अपनी कमजोरी मान लेते हैं। हम ऊपरी मन से भी थेंक्स तभी कहते हैं, जब उसकी जरूरत या उपयोगिता नजर आए वरना अपने को मिली प्रत्येक सौगात या अपने प्रति की गई सेवा को हम बड़े-ठंडे व अनमने भाव से लेते हैं, मानो यह तो हमारा हक ही हो।
यह हमारा बैड लक ही होगा अगर भगवान या प्रकृति की कोई देन हमें रोमांचित नहीं करती या हमारे मन में आनंद और उल्लास का आवेग नहीं पैदा होता। हमारे मन में उसके प्रति ऋणी होने व नतमस्तक होने की इच्छा नहीं जगाती। अपनी शारीरिक, भौतिक या आर्थिक जीवन में जरा-सी भी न्यूनता को लेकर हम दुःखी हो जाते हैं और कभी-कभी तो भगवान को भी कोसने लगते हैं। सच तो यह है कि अपनी खुशी, अपना सुख, अपनी नियामतें देखने के लिए कभी-कभी अपनी आँखें बंद कर लेना पड़ती हैं और फिर बंद आँखों से देखें कि आपके पास ऐसा क्या-क्या है, जो कइयों के पास नहीं है। आपकी उँगलियों में अँगूठियाँ भले ही न हों, पर उँगलियाँ तो सही सलामत हैं। आपकी थाली में पाँच पकवान न सही साधारण भोजन तो है, जो लाखों को नसीब नहीं होता। यही सोच आपको उस विधाता के प्रति कृतज्ञता से भर देगी। अतः यदि जीवन खुशगवार नहीं रहे, उसमें से रस, रंग, महक खत्म हो जाए तो कारण है आपके मन से कृतज्ञता का भाव नष्ट हो गया है। याद रखिए कृतज्ञता व्यक्त करने से भी ज्यादा इसे महसूस करना जरूरी है।
कृतज्ञता (gratitude )ये जादूई शब्द है यह हमारे जीवन मे जादू कि तरह काम करता है और बहुत से लोगो ने इसका अपने जीवन मे उपयोग कर के अपने जीवन को समृद्धिशाली,खुशहाल ,आनंदित , एवं अनुकरणीय बनाया है
इतिहास मे ऐसे बहुत से महापुरुष हुये हैं जिन्होने कृतज्ञता का अभ्यास अपने जीवन मे किया है
अतुल विनोद
