रिलेशनशिप और बॉउंडेशन ... P ATUL VINOD


#PATULVINOD

अक्सर हमारे रिश्ते कभी न कभी बंधन का कारण बन जाते हैं| बॉउंडेशन किसी को पसंद नहीं आती\ रिश्ते में स्वतंत्रता और उन्मुक्त वातावरण सब चाहते हैं| लेकिन जब रिश्ते की डोर बंधती है तो कैसी स्वतंत्रता? क्या ये सच है रिश्ते परतंत्र करते हैं? नहीं| रिश्ते नही रिश्तों को निभाने वाले? चारों तरफ बाउंडेशन, ट्रैपिंग नजर आने का अर्थ यह है कि आप उस रिश्ते से उकता गए| दरअसल आप रिश्ते से नही ऊबे उस रिश्ते को गलत ढंग से निभाने से ऊबे इसके पीछे दोनों हो सकते हैं आप या वो .. एक भी रिश्ते को सही रूप से नहीं निभाता उसमे ऊंच नीच कर देता है उसमे अपनी परिभाषा शर्त या बंधन थोप देता है तो वहीँ मुसिबत! रामकृष्ण परमहंस ने कहा कि तुमने रिश्तो को बंधन बना लिया है| तुम अपनी जिम्मेदारी को भी मजबूरी समझते हो| जिस दिन तुम जिम्मेदारी को सेवा समझने लगोगे, रिश्तो को अपना कर्तव्य, उसी दिन तुम ईश्वर के मार्ग पर आगे बढ़ जाओगे | जैसे-जैसे तुम्हारे कर्तव्य पूरे होते जाएंगे वैसे वैसे ही तुम आध्यात्मिक उन्नति भी करते जाओगे| कर्तव्य से विमुख होकर कोई आध्यात्मिक नहीं बन सकता| वास्तव में "रिश्ते" ट्रैपिंग और बॉउंडेशन की वजह नहीं हैं| रिश्तो को गलत ढंग से लेना ही खुद को या सामने वाले को उलझा हुआ महसूस कराता है| कई बार तो व्यक्ति खुद ही अपने आपको रिश्ते में गहराई से अटैच कर लेता है और कई बार अगला आपको उस रिश्ते के दम पर घेर लेता है| दोनों ही स्थिति में रिश्ता सताने लगता है| रिश्ते में किसी भी व्यक्ति को ना तो खुद फंसना है ना ही किसी और को फसाना है| रिश्तेदार एक स्वतंत्र व्यक्तित्व है, वो आपका गुलाम नहीं, उससे उतनी ही अपेक्षाएं रखिए जितनी जरूरी हो| जरूरत से ज्यादा एक्सपेक्टेशन रिश्ते को बोझिल बनाती है| अपने आप को ऐसा मत बनाइए कि आपकी नजदीकी से ही किसी को घबराहट होने लगे| रिश्ते को जितना बांधने की कोशिश करेंगे उतना ही वो टूटने को कसमसायेगा| खुद को भी रिश्ते में ट्रैप मत होने दीजिए, खास तौर पर भावनात्मक रूप से इतना मत जुड़िए कि आप उन भावनाओं और अपने मोह के कारण उस रिश्ते के गुलाम हो जाए|फिर वो भावनाएं और वह आपको अपनी उंगलियों पर नचाये|डोर को छोड़ देंगे तो पतंग गिर जाएगी और ज्यादा खींचेंगे तो टूट जायेगी|रिश्ते में ज्यादा अपना -पराया ... जीवन की जटिलता को बढ़ाता है| जैसे जैसे आपकी आध्यात्मिक चेतना ऊपर उठती है वैसे वैसे अपने और पराए का भेद कम होते चला जाता है| आपकी सद्भावना सिर्फ अपनों के लिए ही नहीं दूसरों के लिए भी हो| तब आपका दायरा बढ़ता जाता है| एक सामाजिक, धार्मिक और आध्यात्मिक व्यक्ति बहुत बड़े समूह को अपने साथ जोड़ लेता है,एक पॉलीटिशियन भी अपने रिश्ते का दायरा काफी बड़ा लेता है| ये लोग लाखों करोड़ों समर्थकों का दिल जीतने और उसे बरकरार रखने में कामयाब होते हैं कैसे? कहां तो व्यक्ति से एक दो लोग नहीं सम्भलते और ये नेता, धर्मगुरु, समाजसेवी अनेक लोगों को साध लेते हैं|दरअसल साधने का फार्मूला ही गलत है| रिश्ते में साधने की जरूरत नहीं होनी चाहिए, रिश्ते में बांधने और जाल में फंसाने की जरूरत भी नहीं| ना ही रिश्ते को बरकरार रखने के लिए दिन-रात देखरेख की जरूरत है| रिश्ते दिल से हों, उनमें पर्याप्त स्पेस और स्वतंत्रता हो, ईमानदारी और सहजता हो तो आसानी से अनेक लोग बिना किसी बंधन के लंबे समय तक जुड़े रह सकते हैं|अपने प्रेम के दायरे को बढ़ाइए|सहयोग और समर्थन को रिश्तो से थोड़ा आगे ले जाने की कोशिश कीजिए फिर देखिए कि आपका परिवार कितना बड़ा हो जाता है| रिश्तो को बाहर से कंट्रोल करने या मैनेजर बनने की वजह नेतृत्वकर्ता की तरह अंदर से जुड़कर प्रभावकारी बनाया जा सकता है|लीडर बनें मेनेजर नहीं, रिश्तो को मैनेजर की तरह निभाने की कोशिश करेंगे तो दिन रात उन्हें मैनेज करने में ही बीतते रहेंगे|रिश्तो के प्रति नजरिया थोड़ा सा बदलना पड़ेगा| भौतिक रूप से भले कोई व्यक्ति आपसे खून या सात फेरों के बंधन से बंधा हुआ है| लेकिन हर व्यक्ति आध्यात्मिक रूप से एक अलग सत्ता है| उस आध्यात्मिक महा जीवन में न जाने कितने ऐसे छोटे-छोटे शारीरिक जीवन आए और चले गए| हर जन्म में अलग अलग रिश्तो में अलग अलग व्यक्ति मिला| फिर उस शरीर के छूटने साथ ही बिछड़ गया| यही वजह है कि शारीरिक रिश्ते स्थाई नहीं होते| वो कुछ समय के लिए होते हैं एक समय के अंतराल के बाद किसी न किसी रूप में रिश्ते में बंधा हुआ व्यक्ति हमसे दूर हो जाएगा |इस सच्चाई को अंगीकार करके रिश्तो को सहजता से निभाए| जिम्मेदारियों को पूरा करें लेकिन बहुत ज्यादा अटैचमेंट ना रखें\ उम्मीदें और भावनात्मक दबाव भी कम से कम रखें|हर रिश्ते में स्वार्थ होता है| लेकिन स्वार्थ की भी सीमा होती है| स्वार्थ से थोड़ा सा ऊपर उठें| हर चीज इसलिए ना करें कि उससे बदले में आपको कुछ मिलेगा|रिश्तो में आप जितना देते हैं उतना समृद्ध बनते हैं| देने में कभी कंजूसी ना भर्ती लेने में कंजूस हो जाए|अधिक लोगों से प्रेम रखने का अर्थ शारीरिक स्तर पर भी समझा जा सकता है, शारीरिक स्तर का प्रेम सिर्फ शारीरिक रसायनों पर निर्भर करता है लेकिन प्रेम नहीं वो आकर्षण है| प्रेम का हार्मोन और कामुकता से कोई लेना-देना नहीं|प्रेम, सद्भाव, सद्भाव और सहायता के लिए आपको मोटिवेशन की जरूरत नहीं हो ये सहज रूप से प्रभावित हो|

#PATULVINOD