सफलता, ईश्वर प्राप्ति, आध्यात्मिक रूपांतरण, कुंडलिनी जागरण, आत्म साक्षत्कार
क्या इतनी प्यास है?
एक शिष्य गुरु के पास गया और बोला, गुरुदेव, मुझे धर्म चाहिए। मुझे ईश्वर चाहिए। गुरुजी उस युवक की ओर देखकर कुछ नहीं बोले, केवल मुस्करा दिए। युवक प्रतिदिन आता और जोर देकर कहता, मुझे धर्म चाहिए-ईश्वर चाहिए। एक दिन बहुत गर्मी पड़ रही थी। गुरु ने युवक से कहा, चलो नदी में डुबकी लगा आएं। वे नदी में गए। वहां पहुंचते ही युवक नदी में कूद पड़ा और गुरुजी उसके बाद पानी में उतरे। गुरुजी ने बलपूर्वक उस युवक का सिर कुछ समय तक पानी के अंदर ही दबाकर रखा और जब कुछ देर बाद वह युवक पानी के भीतर छटपटाने लगा, तब छोड़ दिया। गुरुजी ने पूछा, पानी के अंदर तुम्हें सबसे अधिक आवश्यकता किस बात की थी? शिष्य ने उत्तर दिया, गुरुजी, मुझे सबसे जरूरत सांस लेने की थी। गुरुजी बोले, क्या तुम्हें इतनी ही आवश्यकता ईश्वर की है? यदि है तो तुम उसे एक ही क्षण में पा जाओगे। जब तक तुममें वही पिपासा, वही तीव्र व्याकुलता, वही लालसा नहीं होती, तब तक तुम अपनी बुद्धि, पुस्तकों या अनुष्ठानों के सहारे कितना भी खटपट करो, तुम्हें धर्म की प्राप्ति नहीं होगी। जब तक तुममें धर्म पिपासा जाग्रत नहीं होती, तब तक तुममें और नास्तिक में बस इतना अंतर होगा कि नास्तिक निष्कपट है और तुममें वह गुण भी नहीं है।
यदि हमारे अंदर सिर्फ प्राप्ति की सतही इच्छा है तो कुछ हासिल नही होगा, कुछ प्राप्त करने के लिए तड़प, संकल्प और उसका मूल्य चुकाने का भाव नही होगा तो सोचना भी व्यर्थ है।
मुह खोलकर बैठने से अमृत की बूंदें नही गिरती। पुरुषार्थ त्याग और तपस्या चाहिए।
