ATUL VINOD

ईश्वर के साथ हमारा गहरा नाता है| श्री कृष्ण ईश्वर के पूर्ण अवतार हैं| कृष्ण हमारे हृदय में पहले से ही बैठे हुए हैं|दुनियादारी में हम अपने अंदर बैठे हुए कृष्ण को भूल जाते हैं|जब कृष्ण की भक्ति पैदा होती है तो उनके कीर्तन और नृत्य में डूबा हुआ भक्त कितने घंटे आनंद में बिता देता है पता ही नहीं चलता| यह झूठा आनंद नहीं है, यह भाव है जो पैदा होता है तो अनवरत चलता है| विदेशी, जो कृष्ण के बारे में जानते तक नहीं एक बार वह कृष्ण की भक्ति का रस चख लेते हैं तो उसमें डूब जाते हैं ऐसा क्या है कृष्ण रस में? कृष्ण इतने सहज है कि भक्ति के किसी खास मार्ग की जरूरत नहीं| बस प्रेम भर से उन्हें पाया जा सकता है|कृष्ण के प्रति भक्ति कई माध्यम से जागृत होती है| जहां भी कृष्ण के भक्त मिलेंगे वहां कृष्ण का भाव अमृत प्रवाहित होगा| इनके संपर्क में जो आएगा वह संक्रमित हो जाएगा|भगवान से रोजी रोटी के लिए प्रेम करना प्रेम नहीं| आप उस से प्रेम नहीं करेंगे तब भी वह आपकी रोजी-रोटी की व्यवस्था करेगा| प्रेम में लोभ लालच या मांग होती नहीं| ईश्वर को प्राप्त करने के कई रास्ते बताए जाते हैं कर्म, ज्ञान योग और भक्ति| श्रीकृष्ण को प्राप्त करने का सर्वश्रेष्ठ तरीका है भक्ति|कर्म ज्ञान और योग के मार्ग में अहंकार आ सकता है, लेकिन भक्ति में अहंकार नहीं होता, भक्ति में लोभ नहीं होता, भक्ति में कुछ प्राप्त करने की इच्छा नहीं होती|कर्म, ज्ञान और योग से तब तक भगवान की प्राप्ति नहीं हो सकती जब तक उसमें भक्ति ना जोड़ें| भक्ति के साथ किया जाने वाला कर्म, ज्ञान, योग ही ईश्वर से जोड़ सकता है| श्री कृष्ण भगवत गीता में कहते हैं “भक्तया माम्भिजानाति” सिर्फ भक्ति के माध्यम से ही भगवान को समझा जा सकता है| भक्ति के माध्यम से भगवान के भाव में डूबा हुआ व्यक्ति जल के समान निर्मल हो जाता| जैसे समुद्र के भूतल पर खजाना हैं जो पानी के गंदलेपन के कारण नजर नहीं आता, उसी तरह व्यक्ति के अंदर भगवान रूपी खजाना मौजूद है, लेकिन उसके व्यक्तित्व पर जमी कीचड़ उसके अस्तित्व को देखने नहीं देती|
जैसे ही चेतना जल के समान पारदर्शी हो जाती है| ईश्वर अपने अंदर ही दिखाई देने लगता है|
