( क्या धर्म ख़तरे में है? )
बिल्कुल कथित ढोंगियों ने इस दुनिया में मौजूद सभी धर्मों को खतरें में डाल दिया है दरअसल धर्म और धार्मिक किताबों की आड़ में लोगों की आस्था से खेलने का खेल आज का नही है , सदियों से ये चला आ रहा है , और इसका शिकार हो रही है भारत सहित उन गरीब और मध्यम वर्गीय देशों की जनता !
जो गरीबी , बेरोजगारी और स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का ईश्वरीय हल चाहती है ! कहां तो ये धर्म मानवता को जीवित रखने के लिए गढ़े गये थे और कहां इन्ही धर्मों ने मानवता को खतरें में डाल रखा है यही कथित धर्म हैं जिनकी वजह से इंसान इंसान नही है कोई बौध है कोई सिख है कोई हिंदू कोई इसाई और मुसलमान , आदमी तो कहीं खो गया इंसान कहीं मिलता नही आज किसी व्यक्ति में ये साहस देखने को नही मिलता कि वो खुद को अपने उपर लादे गये
पैदायशी जाति धर्म से मुक्त कर सके !
क्या धर्म के नाम पर लोग किसी ख़ास मत संप्रदाय और विचारधारा के गुलाम बनाये जा रहे हैं
आज किसी हिंदू मुसलमान ईसाई में ये हिम्मत नहीं कि वो कह सके कि मैं हिंदु मुस्लिम ब्राम्हण बनिया नहीं ' मै 'तो सिर्फ एक आदमी हूं अब ये हो भी नही सकता क्योंकि सिस्टम ने भी हम सबको जाति धर्मों से बांध दिया है एक व्यक्ति जो साधारण सा दिखता है यदि संत का आवरण ओढ़ ले तो उसके सामने भीड़ खड़ी होने लगती है असली धर्म प्रवर्तकों ने सूली पाई है पांव में कांटे चुभोये हैं और नकली बाबा साधू फूलों की सेज पर सोकर लोगों के दुख
दर्द का सौदा कर रहे हैं खुद के अनुभव से धर्म की परिभाषा गढ़ने वाले कहां हैं ?
हैं तो सिर्फ पोथी पत्रा दोहराने वाले बच्चा पैदा होते ही उसे जो विरासत में ज्ञान मिला वो उसी को जिंदगी भर ढोने को मजबूर है और तो और उसके उपर अपने कथित ईश्वर , धर्म और जाति को बचाने का बोझ भी है उसे बताया जाता है कि सत्य वो है जो तुझे बताया जा रहा है ! और खुद सत्य खोजने की तुझे इजाज़त नही है गुरू की महिमा का बखान कर खुद गुरू बनकर लोगों को मूढता में फसांये रखना और अपनी जेबें भरते रहना
खतरा दिखाकर अपनी जमात को एक बनाये रखना ये सोची समझी रणनीति होती है जो धर्म ख़तरे में पड़ जाये जिस ईश्वर को बचाने की जरूरत पड़ जाये वो कितना सत्य हो सकता है , धर्म का मार्ग बताने वाले कष्ट का भागी बने और उनके नाम को लेकर साधु संत पोप मौलवियों ने अपनी दुकाने चलानी शुरू कर दी
क्या राम क्रष्ण जीसस मोहम्मद गलत थे ?
जी नही , राम , कृष्ण , शिव , बुद्ध, जीसस, मोहम्मद, जलालुद्दीन, नानक, कबीर इन्होने धर्म को जिया और धर्म का रास्ता बताया लेकिन इन्हे मानने वालों ने लोगों को धर्म का नही इनके भक्त बनने का रास्ता दिखाया वे इनके प्रतिनिधि बन गये खुद कुछ नही खोजा और इनके नाम पर अपनी जमातें खड़ी कर दीं अब लोगों के इनके नाम से डराया जाता है !
किसी को टीका टिप्पणी सवाल जवाब करने की अनुमति नही है बस लकीर के फकीर बनों और लादी गई मान्यताओं को ढोते रहो l
क्या धर्म को नये सिरे से परिभाषित करना होगा ?
जी नहीं धर्म अपने आप में परिभाषित है दूसरों के बताये या बनाये नियमों पर चलना बुरी बात नही लेकिन उसे अपनी कसौटी पर परखना भी पाप नही सब कुछ बदल रहा है पहले कुछ धार्मिक किताबों में प्रथ्वी अलग अलग आकार की बताई गई लेकिन वो गोल निकली जिस तरह नित नये अविष्कार हो रहे हैं नये सूत्र बन रहे हैं धार्मिक मान्यताओं और विचारों को परिष्कृत करना कहां गलत है !
क्या साधू संन्यासी मौलवी सब गल़त हैं ?
नहीं लेकिन जो राष्ट्र में अराजकता व द्वेष की भावना का प्रचार प्रसार करते हों वे सन्यासी या योगी हो ही नहीं सकते | राजनैतिक मकसद के लिए ज़हर उगलने वाले साधू-संत और योगी तो कतई नही हो सकते जो लोगों को जोड़ने या सर्वधर्म समभाव की बात करे वो पाखंडी हो गया है धर्म हो या धर्म के प्रवर्तक मानव मानव में भेद नही हो सकता सिर्फ अंहकार के चलते खुद को बेहतर मानना जायज़ नही ठहराया जा सकता l
असल धर्म क्या है ?
ये गीता कुरान वेद बाईबिल सबमे मिल जायेगा बस चश्में पर दूसरों की चढ़ाई धूल साफ करने की ज़रूरत है एक दार्शनिक ने कहा है कि
जिस व्यक्ति ने स्वयं सत्य को जाना है वह धर्म को जीवित करता है—सिर्फ वही केवल वही
उसके छूने से ही धर्म जीवित हो उठता है और उस धर्म को मारने वाले वे लोग हैं जिन्होंने स्वयं तो अनुभव नहीं किया है लेकिन जो
दूसरों के उधार वचनों को दोहराने में कुशल होते हैं।
-अतुल विनोद

