प्रेमी कौन ?
किससे प्रेम करना चाहिए ?
कैसे पहचाने कि प्रेम सच्चा हैं ?
वैसे तो जीवन में हम प्रेम को कई रूपों में देखते हैं कई बार हम किसी को प्रेम करते दिखाई देते हैं तो कई बार प्रेम की अनुभूति करते दिखाई देते हैं l
जन्म से मृत्यु तक हमारी मात्र एक ही आशा, एक ही इच्छा होती हैं प्रेम का अनुभव करने की !
आइये जानते हैं प्रेम क्या हैं ?
असल में तो प्रेम मनुष्य के ह्रदय की वो अभिव्यक्ति है, जो हमें अंधकार में प्रकाश दिखाती है। हमारे खोये एहसासों को ताज़ा कर देती है। हम ताजगी को भी प्रेम का रूप समझ सकते हैं....
प्रेम की किरण हर तरह की थकान मिटा देती है। प्रेम हर तरह के खालीपन को दूर कर देता है।
प्रेम हर ओर है बस दृष्टि चाहिए । दुर्भाग्य से हम इसे कभी अवेयर होकर नहीं देखते।
हम जीते हैं शिकायतों में, असंतुष्टि और बेवजह के मानसिक अभाव में। हम जीवन की छोटी छोटी चीज़ो को गौर से देखें तो हम पाएंगे की शिकायत की कोई वजह ही नहीं है।
जब हम प्रेम में होते हैं तो आसपास कुछ अच्छा ना भी हो तो भी वो प्रेम की शक्ति से अच्छा हो जाता हैं !
प्रेम बेहद शक्तिशाली है।
कैसे पता करें प्रेम सच्चा हैं कि नहीं ? दूसरा हम जिससे प्रेम करते हैं वो भी हमसे प्रेम करता हैं या नहीं ?
असल में हम इस तरह के सवाल जब करते हैं तब हम गलत ट्रैक पर जा रहे होते हैं !
ये जीवन हैं जीवन मतलब जो कुछ बनाता हैं जो खुद भी वास्तव में प्रेम हैं जो प्रेम को चाहता नहीं हैं l
जीवन स्वयं प्रेम हैं !
अब आप सोचेंगे की अगर जीवन स्वयं प्रेम हैं तो पूरी दुनिया प्रेम पाना क्यों चाहती है?
फिर क्यों एक प्रेमी प्रेमिका के पीछे इतना दीवाना हो जाता हैं !
यहां पर जितने भी प्रेमी प्रेमिका हैं जो आपस में प्रेम करते हैं वो ज्यादातर मामलों में सिर्फ अट्रेक्शन होता है। गहरे में दोनों प्रेमी जानते हैं। उन्हें एक दूसरे से कुछ चाहिए ये लेनदेन का खेल है लेकिन उसे वो प्रेम का नाम दे रहे हैं !
जब दोनों को जो एक दूसरे से चाहिए वो मिल जाता है और आगे कुछ मिलने की गुंजाइश न हो तो वही एकदूसरे की शक्ल भी नहीं देखते !
सच्चा प्रेमी वो नहीं जो आपके लिए सुख सुविधाओं का इंतज़ाम करे।
और सच्चा प्रेमी वो भी नहीं जो आपके लिए किसी से भी टकरा जाये, जो आपको चाँद तारे तोड़कर लाने की बातें करे बल्कि - सच्चा प्रेमी तो बस प्रेमी होता हैं वो तो खुद प्रेम होता हैं !
उसके पास जाकर हमें बिना कुछ कहे ही प्रेम का एहसास हो जाता हैं सच्चा प्रेमी हमें निशब्द कर देता हैं और वो तो करता भी नहीं हैं उसकी नजदीकियों से ये स्वतः हो जाता हैं
सच्चा प्रेमी तो हमसे कहता भी नहीं हैं की मैं प्रेम करता हूँ !
वो तो बस अनभूति देता है। अपनी आत्मा की गहराई से हमें पुकारता हैं और हम उसमे डूब जाते हैं। जहां ना कोई इच्छा होती हैं ना ही आकांक्षा बस प्रेम ही होता हैं !
यही है सच्चा प्रेम जो आपको बांधता नहीं मुक्त कर देता हैं !
प्रेम से ही जीवन है, प्रेम ही शक्ति है, प्रेम ही संसार हैं !
अतुल विनोद :-
किससे प्रेम करना चाहिए ?
कैसे पहचाने कि प्रेम सच्चा हैं ?
वैसे तो जीवन में हम प्रेम को कई रूपों में देखते हैं कई बार हम किसी को प्रेम करते दिखाई देते हैं तो कई बार प्रेम की अनुभूति करते दिखाई देते हैं l
जन्म से मृत्यु तक हमारी मात्र एक ही आशा, एक ही इच्छा होती हैं प्रेम का अनुभव करने की !
आइये जानते हैं प्रेम क्या हैं ?
असल में तो प्रेम मनुष्य के ह्रदय की वो अभिव्यक्ति है, जो हमें अंधकार में प्रकाश दिखाती है। हमारे खोये एहसासों को ताज़ा कर देती है। हम ताजगी को भी प्रेम का रूप समझ सकते हैं....
प्रेम की किरण हर तरह की थकान मिटा देती है। प्रेम हर तरह के खालीपन को दूर कर देता है।
प्रेम हर ओर है बस दृष्टि चाहिए । दुर्भाग्य से हम इसे कभी अवेयर होकर नहीं देखते।
हम जीते हैं शिकायतों में, असंतुष्टि और बेवजह के मानसिक अभाव में। हम जीवन की छोटी छोटी चीज़ो को गौर से देखें तो हम पाएंगे की शिकायत की कोई वजह ही नहीं है।
जब हम प्रेम में होते हैं तो आसपास कुछ अच्छा ना भी हो तो भी वो प्रेम की शक्ति से अच्छा हो जाता हैं !
प्रेम बेहद शक्तिशाली है।
कैसे पता करें प्रेम सच्चा हैं कि नहीं ? दूसरा हम जिससे प्रेम करते हैं वो भी हमसे प्रेम करता हैं या नहीं ?
असल में हम इस तरह के सवाल जब करते हैं तब हम गलत ट्रैक पर जा रहे होते हैं !
ये जीवन हैं जीवन मतलब जो कुछ बनाता हैं जो खुद भी वास्तव में प्रेम हैं जो प्रेम को चाहता नहीं हैं l
जीवन स्वयं प्रेम हैं !
अब आप सोचेंगे की अगर जीवन स्वयं प्रेम हैं तो पूरी दुनिया प्रेम पाना क्यों चाहती है?
फिर क्यों एक प्रेमी प्रेमिका के पीछे इतना दीवाना हो जाता हैं !
यहां पर जितने भी प्रेमी प्रेमिका हैं जो आपस में प्रेम करते हैं वो ज्यादातर मामलों में सिर्फ अट्रेक्शन होता है। गहरे में दोनों प्रेमी जानते हैं। उन्हें एक दूसरे से कुछ चाहिए ये लेनदेन का खेल है लेकिन उसे वो प्रेम का नाम दे रहे हैं !
जब दोनों को जो एक दूसरे से चाहिए वो मिल जाता है और आगे कुछ मिलने की गुंजाइश न हो तो वही एकदूसरे की शक्ल भी नहीं देखते !
सच्चा प्रेमी वो नहीं जो आपके लिए सुख सुविधाओं का इंतज़ाम करे।
और सच्चा प्रेमी वो भी नहीं जो आपके लिए किसी से भी टकरा जाये, जो आपको चाँद तारे तोड़कर लाने की बातें करे बल्कि - सच्चा प्रेमी तो बस प्रेमी होता हैं वो तो खुद प्रेम होता हैं !
उसके पास जाकर हमें बिना कुछ कहे ही प्रेम का एहसास हो जाता हैं सच्चा प्रेमी हमें निशब्द कर देता हैं और वो तो करता भी नहीं हैं उसकी नजदीकियों से ये स्वतः हो जाता हैं
सच्चा प्रेमी तो हमसे कहता भी नहीं हैं की मैं प्रेम करता हूँ !
वो तो बस अनभूति देता है। अपनी आत्मा की गहराई से हमें पुकारता हैं और हम उसमे डूब जाते हैं। जहां ना कोई इच्छा होती हैं ना ही आकांक्षा बस प्रेम ही होता हैं !
यही है सच्चा प्रेम जो आपको बांधता नहीं मुक्त कर देता हैं !
प्रेम से ही जीवन है, प्रेम ही शक्ति है, प्रेम ही संसार हैं !
अतुल विनोद :-

