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किशोरावस्था का प्यार या आकर्षण💑

किशोरावस्था कल्पना की दुनिया होती है|  बालमन अचानक बड़ा होने लगता है, रोमांच से भरी अवस्था अपने आसपास के वातावरण से प्रभावित होती है| किशोर मन सपने संजोने लगता है|  इस अवस्था में बच्चे परिपक्व नहीं होते, लेकिन खुद को मैच्योर समझते हैं,  प्यार दुनिया की सच्चाई है और किशोर स्वाभाविक रूप से प्यार चाहते हैं, इस दौर के आकर्षण को प्यार नहीं कह सकते, ये नदी के वेग के कारण उठने वाले बुलबुले जैंसा होता है| 
जोश जुनून आशा और उत्साह से भरे हुए मन में उठने वाली प्यार की तरंगों को, किसी शख्स से जोड़ लेना किशोर  बुद्धि का सहज स्वभाव होता है| वह जिस से जुड़ जाता है उसे सब कुछ समझने लगता है और इस तात्कालिक प्यार के लिए वह सब कुछ दाव पर लगाने को तैयार होता है| इस समय उसे कोई बंदिश नहीं रोक सकती|  उन्मुक्त किशोर मां-बाप से विद्रोह करने से भी नहीं डरता|

किशोरावस्था हार्मोंस में बदलाव की अवस्था होती है, भावुकता और संवेदनशीलता का एक तूफान सा आता है| इस आवेग में यौन आकांक्षाएं भी जोर मारने लगती है| नई उम्र का जोश जुनून बन जाता है और फिर परिणाम की परवाह नहीं होती| 
शाश्वत प्यार का स्थान वासना ले लेती है| लड़की अपने ख्वाबों का राजकुमार देखने लगती है तो लड़का परियों सी राजकुमारी| एक और खास बात है कि गर्लफ्रेंड और बॉयफ्रेंड बनाना एक तरह का ट्रेंड बन गया है| जिसके गर्लफ्रेंड या बॉयफ्रेंड नहीं है उसे हीन कहा जाता है| साथ में घूमने-फिरने के लिए पार्टी करने के लिए मौज मस्ती के लिए हर लड़के को एक लड़की चाहिए और हर लड़की को एक लड़का | और लड़के-लड़की जब साथ रहेंगे, इस तरह की एक्टिविटी में इन्वॉल्व होंगे तो इसका अंजाम क्या होगा आप समझ सकते हैं|
इंटरनेट पर बढ़ती अश्लील सामग्री, म्यूजिक एल्बम, न्यूज़पेपर और मैगजीन की कवर फोटोज,अनर्गल सामग्री से भरा हुआ सोशल मीडिया, यह सब बच्चों को इस दिशा में जाने के लिए प्रवोक करते हैं| कई बार तो बच्चे होमोसेक्सुअलिटी की तरफ भी बढ़ जाते हैं|  मां-बाप की अनदेखी भी बच्चों को बाहर की दुनिया की तरफ आकर्षित करती है|

बच्चों के मन में यह बात बैठाने की कोशिश करें कि अगले छह-सात साल उसकी जिंदगी के लिए कितने अहम है, वह चाहे तो इन छः- सात सालों में अपनी पूरी जिंदगी की बुनियाद रख सकता है. या फिर परेशानी, हार, या कम आमदनी में पूरी जिंदगी गुजारने को तैयार रहे|

बच्चों को बताएं कि जिन लोगों ने भी अपनी जिंदगी के इस दौर में मेहनत की है पूरी उम्र वो सुख से रहे हैं, और जिन्होंने ऐसा नहीं किया वे जीवन भर पछताते रहे हैं|आपकी और बच्चों के बीच में बेहतर कम्युनिकेशन होना चाहिए, उन्हें जरूरी संसाधन उपलब्ध करा कर अपने कर्तव्य की इतिश्री ना समझ लें| 
बच्चों से आपका जितना अच्छा तालमेल होगा वह बाहर की दुनिया से उतने कम आकर्षित होंगे | बच्चों को बात-बात पर स्पीच ना दें सिर्फ आपका प्यार और समय ही काफी है| बच्चों को हर बात पर डांट ने फटकार या मारने पीटने से वो बागी हो जाते हैं| बच्चों को अपने जमाने की सीख ना दें,  ना ही वो कहानियां सुनाएं जिनमें आप मिट्टी के खिलौने से खेलते थे और बड़े होने तक  आप प्यार मोहब्बत जैसे चक्कर में नहीं पड़े|
हो सके तो बच्चों को मोबाइल से दूर रखें | कंप्यूटर मोबाइल शायद ही कभी पढ़ाई में काम आते हैं, बच्चे अक्सर पढ़ाई का बहाना करके मोबाइल और कंप्यूटर खरीदने का दबाव बनाते हैं | बच्चे को वक्त की जरूरत के बारे में बताएं, बीता हुआ वक्त कभी लौटकर नहीं आता, उन्हें छोटी-छोटी गलतियों के बड़े-बड़े  नुकसान के बारे में भी बताएं| यदि बच्चा प्यार/ मोहब्बत के चक्कर में पड़ गया है तो उसे तुरंत डांट डपट करने की बजाय, उससे पहले नजदीकी बढ़ाएं, अपनी कमजोरियों को पहले दूर करें, उसकी भावनाओं को समझें|
बच्चों के साथ ऐसा माहौल रखें कि वह कोई भी बात आपसे छुपाए नहीं | आप अपने बच्चों के आदर्श हैं, आप जो भी करते हैं उसका असर उन पर पड़ता है, उस तरह का व्यवहार कतई ना करें जो आप अपने बच्चों में ना देखना चाहें | बच्चों को स्कूल से शिक्षा तो मिल सकती है लेकिन संस्कार मां-बाप ही दे सकते हैं, अपने बच्चों को कभी भी बड़े बुजुर्गों से दूर ना रखें, बड़े बुजुर्गों के साथ रहने वाले बच्चे ज्यादा संस्कारित होते हैं, यदि आप अपने बच्चों को उनके दादा-दादी या नाना-नानी के साथ रखते हैं तो यह उनके भविष्य के लिए आप का एक बड़ा योगदान होगा|
अतुल विनोद