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असली धर्म क्या है ?

आज किसी नए पंथ Dharma या संप्रदाय की आवश्यकता नहीं है|
आज लोगों के सम्प्रदायों की ट्रेपिंग से मुक्त करने की ज़रूरत है|
बुद्ध ने एक नए धर्म का सूत्रपात किया, लेकिन धर्म पीछे हो गया बुद्ध आगे हो गए और बुद्ध के मानने वाले बुद्ध की मूर्ती के बंधन में बंध गए| मुक्ति सिखाने वाले बुद्ध ही बंधन का कारण बन गए| उनकी ही मूर्तियाँ बन गयी| बुद्ध-धर्म के अनुयायियों को बुद्ध की शिक्षाओं से शायद ही कोई लेना देना है| और जिन्हें लेना देना है वह शायद ही बुद्ध-धर्म से बंधे हों| इसी तरह इस्लाम,हिन्दू या इसाई धर्म की कट्टरता में बंधे लोगों को उस धर्म कि मूल शिक्षाओं से शायद ही कोई वास्ता हो, जो सत्य से जुड़ गया वह किसी आभासी संगठन का हिस्सा कैसे हो सकता है?
इसलिए कोई भी नया धर्म नए बंधन का कारण बनेगा वह लोगों को ट्रैप करेगा जैसे अन्य धर्म-संप्रदाय ट्रैप कर रहे हैं|
आज आवश्यकता है सभी तरह के पंथ, संप्रदाय या तथाकथित धर्म को विघटित करके उन्हें पूरी तरह से शून्य में विलीन कर देने की, नया आन्दोलन कथित धर्मों से मानवों को मुक्त कराने के लिए होना चाहिए|
ऐसा नहीं है कि मत-संप्रदाय या प्रचलित धर्म गलत हैं| निश्चित ही इन सब का गठन पवित्र कार्यों के लिए हुआ था, लेकिन सेवा-कार्यों की बजाए यह सब लोगों का गिरोह बन गए और इनके संदेश ना जाने कहां विलुप्त प्रजातियों की तरह लुप्त हो गए| सभी प्रचलित मान्यताओं में कुछ ना कुछ बेहतर है|
ईश्वर हम सब के अंदर चेतना के रूप में मौजूद है|प्रकृति विश्व के कुछ सिद्धांतों से चलती है, वही सिद्धांत मूल रूप से धर्म हैं जो प्रकृति और परमेश्वर से जुड़े हुए हैं| मूलभूत तथ्यों व सिद्धांतों को समझकर उनके आधार पर सभी धर्मों को छोड़कर मानव जाति को चलाना ही आज का असली लक्ष्य होना चाहिए|
मूल रूप से सत्य एक ही है| सभी धर्मों ने अंत में यह माना है कि परमात्मा मूल रूप से एक ही है और वह विश्व शक्ति हर एक स्तर पर समान रूप से कार्य करते हुए इस सृष्टि को चलाती है| उस सत्य को अलग-अलग तरह से अभिव्यक्त किया गया है|
भारतीय सनातन सभ्यता ने इस सत्य को वेदों के माध्यम से अभिव्यक्त किया था| लेकिन अभी इस सत्य रुपी धर्म की स्थापना का समय नहीं आया क्यूंकी ज्यादातर लोग अभी स्वयं के मूल स्वरूप को नहीं जानते हैं और जब तक व्यक्ति अपने मूल को नहीं जानेगा तब तक वह धर्म के वास्तविक स्वरूप को भी नहीं जान सकता और खुद से अनजान व्यक्ति कभी भी उस परम धर्म के बारे में कुछ समझ नहीं सकता इसलिए यह सारे धर्म संप्रदाय मत परंपराएं फिलहाल चलती रहेंगी, लेकिन धीरे-धीरे जब चेतना का विस्तार होगा तब स्वतः ही सत्य का साक्षात्कार होने लगेगा|
भारत में भले ही आज नए-नए धर्म प्रचलित हो गये हों, लेकिन भारत मूल रूप से किसी धर्म के नाम की पहचान से बंधा हुआ नहीं है, भारत अनादिकाल से सनातन सत्य से जुड़ा हुआ है| सनातन धर्म का अर्थ यह है कि जो आदि से अंत तक बदलता नहीं है, जो सत्य के बेहद नजदीक होता है, और जिसके सिद्धांत परमात्मा व प्रकृति के सिद्धांतों से मेल खाते हैं| इस सनातन शब्द का अर्थ ही है जिसमें सब कुछ समाहित है जिसमें से सब कुछ निकला है जो सब का मूल है|
ऋग्वेद की ऋचा कहती है -
इन्द्रं मित्रं वरुणमग्निमाहुरथो दिव्य: स सुपर्णो गरुत्मान्।
एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्त्यग्निं यमं मातरिश्वानमाहु:॥
इसका अर्थ है- 'जिसे लोग इन्द्र, मित्र, वरुण, अग्नि कहते हैं, वह सत्ता केवल एक ही है, ऋषि लोग उसे भिन्न-भिन्न नामों से पुकारते हैं।' इस श्लोक से सब कुछ स्पष्ट हो जाता है|
जैसे मानव खुद को किसी ना किसी पहचान से बांध लेता है, इसी तरह से वह परमात्मा को अग्नि, वायु, आकाश, प्रथ्वी , जल मानने की बजाय किसी ना किसी रूप या नाम से जोड़ देता है यह उसकी स्वभाविक और सहज प्रकृति है |
यह जीवन मिथ्या कहा गया है? क्योंकि शरीर की पहचान शाश्वत नहीं है, वह कभी भी मिट सकती है, नष्ट हो सकती है पूरा शरीर वापस पंच-तत्व में विलीन हो जाता है| इसलिए मूल रूप से शरीर भी सत्य नहीं है| शरीर में विद्यमान जो पांच तत्व है वही सत्य हैं| क्योंकि वही मूल हैं लेकिन किसी जीवित व्यक्ति से आप कहें कि आप धरती, आकाश, पानी, अग्नि और वायु हैं तो क्या वह मानेगा? नहीं क्योंकि इन पांच तत्व से मिलकर भी एक पहचान रूपी नए तत्व का निर्माण कर लेता है जो स्थाई नहीं है लेकिन जब तक है तब तक वह सत्य मालूम पड़ती है|
इसी तरह से प्रचलित धर्म है जो मूल रूप से परमात्मा के मूल सिद्धांतों को लेकर बने हैं लेकिन उन्होंने अपनी एक नई पहचान बना ली है जब तक यह पहचान नष्ट नहीं होगी तब तक उन धर्मों में निहित मूल उद्देश्यों और सिद्धांतों का उद्घाटन नहीं होगा|
परमात्मा आदि से अंत तक हर एक व्यक्ति में विद्यमान होते हैं लेकिन जब तक जीव रूप में हमारी सत्ता का भ्रम है, तब तक क्या हम इस जीवन को मिथ्या कह सकते हैं? जीवन को मिथ्या तभी माना जा सकता है जब हम इसके भ्रमजाल से ऊपर उठ जाए|
जब भी हम अपनी आभासी पहचान रुपी मानसिक बंधन से ऊपर उठ जाएंगे तब हम सत्य का साक्षात्कार कर सकेंगे|
सभी प्रचलित धर्म पंथ संप्रदाय एक तरह का बंधन बन चुके हैं| इस बंधन को हटाकर ही वास्तविक ईश्वरीय धर्म का सूत्रपात किया जा सकता है|
रही बात हमारी तो हम लोगों कि चेतना के विस्तार में एक अल्प भूमिका के निर्वहन की चाह में दिव्य जीवन आन्दोलन चला रहे हैं जिसके बारे में आपको नीच विस्तृत जानकारी मिलेगी
About Our Mission & vision
आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत के लिए एक व्यक्ति में जिज्ञासा और आत्म सुधार के लिए कमिटमेंट होना जरूरी है|
आध्यात्मिक यात्रा में सफलता तब मिलती है जब हम श्रद्धा, विश्वास, ज्ञान और भक्ति के मार्ग पर चलते हैं, लेकिन खुले मन से|
अध्यात्म के मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए भक्ति, स्वाध्याय और सेवा जरूरी होते हैं|
स्टडी करके, रीड करके ईश्वर की अनुभूति हासिल नहीं की जा सकती| ज्ञान के साथ भक्ति जरूरी है| तभी परमात्मा का अनुग्रह मिलता है| इसी तरह सेवा भी आवश्यक है| यदि मन में सेवा का भाव नहीं होगा आध्यात्मिक शक्ति भी पूरी तरह जागृत नहीं होगी| संतुलित प्रयास ही अच्छे परिणाम ला सकता है| दिव्य जीवन अन्दोल (Wom Guru “Hiranyagarbham” Divine Life Movement) आध्यात्मिक रूपांतरण की प्रक्रिया है, इसमें हम अपने व्यवहार में अमूल चूल परिवर्तन लाने की कोशिश करते हैं|
इस कार्यक्रम से जुड़कर हम बेफिजूल की जानकारियों/सूचनाओं से अपने दिमाग को ठूंसते नहीं है, हमारा लक्ष्य सूचना संग्रहण नहीं रूपांतरण होता है, सैद्धांतिक ज्ञान बोझ है जब तक कि उसे व्यवहार में नहीं लाया जाएगा|
दिव्य जीवन आंदोलन हमें विचारों, प्रेरणा और संकल्पों से चार्ज करता है| योग उपासनाओं की प्रक्रियाओं के अभ्यास से आंतरिक तन्त्र को व्यवस्थित व विकसित करता है| जब हम थक कर बैठ जाते हैं और भटक जाते हैं तो यह हमें राह दिखाता है| यह हमारा मार्गदर्शन करता है| हमें प्रकाश दिखाता है|
प्रक्रिया बहुत आसान है लेकिन इसके नतीजे बहुत विलक्षण है| यह हमें प्रेरणा का शुद्ध प्रकाश, ज्ञान की खाद और आत्मविश्वास का जल उपलब्ध कराता है| प्रकाश,खाद और जल मिलते ही मिटटी में पड़ा बीज अंकुरित होने लगटी है| हम बढ़ते हैं, प्रगति करते हैं, ज्ञान में हमारा विश्वास बढ़ता है, दृष्टिकोण विशाल होता है  तो पूरी दुनिया में अनेक आध्यात्मिक और सेवा से जुड़े कार्यक्रम, संगठन, आंदोलन और विचारधाराएं काम कर रही है| इनमे दिव्य जीवन आंदोलन कुछ नया या बहुत बड़ा करने का प्रयास नहीं है| बल्कि हमारी मूल आध्यात्मिक शिक्षाओं को सहज और सरल ढंग से एक आम मानव के रूप में अंगीकार करके आध्यात्मिक उन्नति करने का छोटा सा प्रयास है|
यह भक्ति का मंदिर है और सामाजिक रूपांतरण का उपकरण| हमारा मकसद है जिज्ञासु साधकों अंतर में छिपे देवत्व को पहचानने में मदद करना, इस सहायता को प्राप्त करने के लिए हमें कहीं जाने की जरूरत नहीं है| आधुनिक टेक्नोलॉजी के जरिए हम अपने घर पर बैठकर ही अपने भौतिक और आध्यात्मिक रूपांतरण के साक्षी बन सकते हैं|
हम इस छोटे से मंच पर स्वयं को और सदस्यों को अपने अंदर की देवत्व को जागृत करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं|
जब हम सब एक दूसरे में ईश्वर की छाया देखने लगेंगे तो धरती पर शांति और सद्भाव का माहौल बनने में देरी नहीं लगेगी |
इस दुनिया में भ्रम और संघर्ष की मूल वजह पृथकतावाद और भ्रान्ति है| जब ह्रदय अशुद्ध होगा तो दिव्य-दृष्टि की जगह भ्रांति-दृष्टि पैदा होगी और यही बढ़ेगी|
पूरी दुनिया विविधता से भरी पड़ी है लेकिन विविधता के अंदर भी एकता है| द्वेत के अंदर भी अद्वेत है|
दूसरों को बदलने से पहले हमें खुद को बदलना पड़ेगा अपने अंदर छिपे हुए दैवीय संस्करण को स्फुरित करना पड़ेगा| यदि एक व्यक्ति रूपांतरित होगा तो वह अनेक व्यक्तियों को रूपांतरित करने की क्षमता हासिल करेगा|
यदि वास्तविक रूप से ऐसे चंद लोग भी रूपांतरण की प्रक्रिया से परिष्कृत होकर समाज में खड़े हो जाएं तो देश-काल-परिस्थितियों से जुड़ी हुई समस्याएं निश्चित रूप से कम होंगी|
हम सब एक ही पिता की संतान हैं| हम सब के अंदर पारिवारिक भावना व एकात्मकता का संचार होना बहुत जरूरी है|
वोम-गुरु की सदस्यता के लिए व्यक्ति में सत्य, निष्ठा, सद्गुण और विश्वास का होना जरूरी है| भले ही हमारे पास शैक्षणिक योग्यता पैसा और पद नहीं हो लेकिन हमारे अंदर उस सच को जानने अनुभव करने इच्छाशक्ति और प्रयास का होना जरूरी है|
हम सबको अपनी आध्यात्मिक उन्नति के लिए जिज्ञासु होना चाहिए| हमारे अंदर बेवजह के संदेह और तर्क नहीं होने चाहिए| दुनिया में सद्गुरुओं की कमी नहीं है| हर युग में सद्गुरु हुए हैं| हम सबके अंदर एक सद्गुरु बैठा है, और हर सद्गुरु के अंदर एक असद-गुरु भी बैठा है| हमें हर व्यक्ति के अंदर मौजूद सद्गुरु से नाता जोड़ना है और असदगुरु की चिंता नहीं करनी, क्योंकि दिन के साथ रात, सच के साथ झूठ, सुख के साथ दुख, आनंद के साथ विषाद हमेशा जुड़ा रहता है| इसी तरह से एक अच्छे व्यक्ति में भी कुछ कमियां और बुराइयां हो सकती है| लेकिन हमें हर व्यक्ति की अच्छाइयों को देखना परखना और उन्हें बढ़ाना है| किसी का तिरस्कार नहीं करना |
हम सब एक दूसरे की भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति में मदद कर सकते हैं| और करना चाहिए| परस्पर सहयोग से ही यह दुनिया चलती है| यदि आप यह सोचे कि आप किसी की मदद क्यों करेंगे? सोचिए मोबाइल, टेलीविजन, कार, बाइक आदि जिन चीजों का उपयोग कर रहे हैं उन्हें बनाने वालों ने ऐसा ही सोचा होता तो क्या हम इतनी अच्छी जिंदगी जी रहे होते? इतनी अच्छी टेक्नोलॉजी से लैस होते?
हर व्यक्ति के अंदर देवियों और आध्यात्मिक शक्तियां छिपी होती हैं| जैसे बीज अनुकूल वातावरण मिलते ही अंकुरित होने लगता है वैसे ही व्यक्ति के अंदर छिपी हुई आध्यात्मिक ऊर्जा सही वातावरण मिलने पर अपने आप को प्रकट करने लगती है| इस वातावरण का निर्माण करना ही दिव्य जीवन आंदोलन का मकसद है|
जब हमारे खुद के जीवन व्यवस्थित होंगे तभी हम दूसरों की सेवा और सहायता कर सकेंगे| जब हमारे कार्य और जीवन अच्छा और निष्कपट होगा तभी हम दूसरों का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं| सीखने और सेवा करने का मौका ईश्वर की कृपा से ही मिलता है| साधना का अवसर भी हर किसी के भाग्य में नहीं होता इस सागर में गोता लगाने के लिए प्रबल इच्छा-शक्ति, संकल्प और मूल्य चुकाने का इरादा होना चाहिए|
अतुल विनोद *